ताकतवर सिस्टम को आंखें दिखाकर कैसें आगे बढ़े लालू यादव

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लाल कृष्ण आडवाणी के रथ को रोककर जहां एक तरफ लालू यादव ने राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में अपनी पहचान बनाई। लालू ने अपनी सूझबूझ से अपनी एक अलग पहचान बनाई।

लालू यादव
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गोपालगंज के बेहद ही गरीब परिवार में पैदा हुए लालू यादव सिर्फ अपने दम पर बिहार के मुख्यमंत्री बने और बाद में देश के रेल मंत्री। लालू यादव 1990 से 1997 तक बिहार राज्य के मुख्यमंत्री रहे। इस दौरान बिहार की सियासत में उनका दबदबा रहा। तमाम विवाद और आरोप के बीच आरजेडी प्रमुख लालू यादव इस देश का वो चेहरा है, जो हमारे देश के ताकतवर सिस्टम को आंखें दिखाकर आगे बढ़े।

लाल कृष्ण आडवाणी के रथ को रोककर जहां एक तरफ लालू यादव ने राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में अपनी पहचान बनाई। वहीं दूसरी तरफ इंदिरा गांधी का विरोध कर वो बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे। लालू ने अपनी सूझबूझ से अपनी एक अलग पहचान बनाई।

बिहार में कांग्रेस पार्टी के शासन का खातमा

माना जाता है बिहार की सियासत में लालू से ज्यादा जमीनी पकड़ और लंबा अनुभव किसी के पास नहीं रहा है। इसके साथ लालू यादव इस देश का वो चेहरा भी हैं जो सालों पुरानी व्यवस्था को कुचलकर आगे बढ़े है। लालू के साथ विवादों का नाता चोली-दामन का साथ जैसा रहा है।

10 मार्च 1990 को बिहार की सत्ता के शीर्ष पर लालू यादव काबिज हो चुके थे। जनता दल में पार्टी के अंदर हुई वोटिंग में पूर्व मुख्यमंत्री राम सुंदर दास को हराकर लालू मुख्यमंत्री भी बन गए। उस समय लालू बहुत कम उम्र के थे। इसके साथ ही लालू ने बिहार में कांग्रेस पार्टी के शासन का खातमा कर दिया था। जिसके बाद कांग्रेस कभी अपने दम पर सरकार नहीं बना सकीं।

उस समय केंद्र में भी वीपी सिंह की सरकार थी और उस सरकार को भी जनता दल और भाजपा का समर्थन था। उसी तर्ज पर बिहार में भाजपा ने लालू यादव के मुख्यमंत्री बनने का रास्ता साफ किया।

चारा घोटाले से लालू के राजनीतिक सफर पर लगा ब्रेक

लालू सिर्फ बिहार के सबसे युवा मुख्यमंत्री के रूप में पद पर आसीन हुए बल्कि उसके बाद अगले 15 साल तक बिहार में लालू-राबड़ी राज रहा। लालू प्रसाद के दोबारा सत्ता में आते ही चारा घोटाला उजागर होने लगा। थोड़ा फलैशबैक पर चलते हैं। 950 करोड़ रुपये से भी ज्यादा के चारा घोटाले की कहानी किसी से​ छिपी नहीं है। 1990 और 2000 के दशक में बड़ा खेल हुआ था।जिससे गरीबों का मसीहा कहे जाने वाले लालू प्रसाद के राजनीतिक सफर पर ब्रेक लगा दिया।

सीबीआई के मुताबिक उस वक्त राज्य के मुख्यमंत्री रहे लालू ने जांच की फाइलें अपने कब्जे में रखी थीं। लालू ने सोचा भी नहीं होगा कि घोटाले की पोल खुल जाएगी। इसका असर लालू को 1996 के आम चुनाव के बाद देखने को मिला, उनके सांसदों की संख्या 32 से घटकर 22 रह गई थी। बीजेपी के साथ गई समता पार्टी भी लालू के खिलाफ थी।

देवेगौड़ा और लालू के बीच घोटाले को लेकर हुई थी कड़वी बहस

उसके बाद सर्वसम्मति से एचडी देवगौड़ा प्रधानमंत्री बनाए गए। एचडी देवेगौड़ा और लालू यादव के बीच इस घोटाले को लेकर कड़वी बहस हुई थी। क्योंकि लालू प्रसाद यादव से CBI ने कड़ी पूछताछ की थी। तकरीबन 6 घंटे से अधिक समय तक रोक कर रखा था और करीब 400 सवाल पूछे थे CBI ने। सीबीआई के 400 सवालों से बौखलाए लालू यादव पूछताछ खत्म होते ही प्रधानमंत्री देवगौड़ा को फोन कर फटकार लगाई। कहा-“यह सब अच्छा नहीं हो रहा है जो आप करवा रहे हैं। इसका अंजाम बहुत बुरा होगा। साजिश करनी है तो भाजपा के खिलाफ करो हमारे पीछे क्यों पड़े हो? 

देवगोड़ा के अधिकारिक निवास पर भी दोनों के बीच बहस हुई थी। लालू ने तब कहा था, “की देवगौड़ा जी, इसलिए तुमको पीएम बनाया था कि तुम हमारे खिलाफ केस तैयार करो? बहुत गलती किया तुमको पीएम बना के। बाद में लालू ने समर्थन वापस लिया। देवगौड़ा को इस्तीफा देना पड़ा।  जिसका इशारा लालू ने अपने लहजे में कर दिया था.