45 रुपये कमाने वाले टीचर ने साइकिल से कैसे तय किया हज़ारों करोड़ के कारोबार तक का सफ़र !

महज़ 45 रुपये की सैलरी वाला एक टीचर क्या-क्या कर सकता है? बल्कि हमारा सवाल होना चाहिए कि ‘क्या नहीं कर सकता है?’ क्योंकि लक्ष्मणराव किर्लोस्कर ने ये साबित किया कि आगे बढ़ने के लिए जेब नहीं सोच बड़ी होनी चाहिए l
किर्लोस्कर समूह के संस्थापक लक्ष्मणराव किर्लोस्कर भारत के प्रसिद्ध उद्योगपतियों में से एक थे l 20 जून, 1869 को मैसूर के निकट बेलगाँव में पैदा हुए किर्लोस्कर ने भारत में उद्योगों का इतिहास रचा है l
किर्लोस्कर का बचपन से ही पढ़ने में मन नहीं लगता था. मुम्बई के जे.जे. स्कूल ऑफ़ आर्ट में उन्होंने मैकेनिकल ड्राइंग सीखी और मुम्बई के ‘विक्टोरिया जुबली टेक्निकल इंस्टीट्यूट’ में अध्यापक नियुक्त हो गए. जल्दी ही उन्हें मशीनों की जानकारी हुई l इन्होंने 1888 में अपने भाई रामुअन्ना के साथ मिलकर ‘किर्लोस्कर ब्रदर्स’ नाम से साइकिल की दुकान खोल ली l
जल्दी ही नौकरी छोड़ी और चारा काटने की मशीन और लोहे के हल बनाने वाला छोटा सा कारखाना खोल लिया l तमाम मुश्किलों के बाद औंध के राजा से उधार लेकर 32 एकड़ बंजर ज़मीन ख़रीदी और वहाँ फ़ैक्ट्री खोलकर ज़मीन की काया पलट कर दी l लेकिन मुश्किलें और भी थीं l किसानों को मशीनों के लिए मनाना बड़ा मुश्किल था l
किर्लोस्कर को अपना पहला लोहे का हल बेचने में 2 साल लग गए l लेकिन इन्होंने किसी भी क़ीमत पर हार नहीं मानीं l जवाहरलाल नेहरू से लेकर लोकमान्य तिलक तक किर्लोस्कर की कामयाबी से बहुत प्रभावित थे l किर्लोस्कर ने जो कंपनी बनाई आज वो 2.5 बिलियन डॉलर से भी ज़्यादा का विशाल समूह बन गया है l किर्लोस्कर ने दुनिया को सिखाया कि अगर हौसला बुलंद हो तो कोई मंज़िल मुश्किल नहीं होती l