सालों की परिश्रम से दिनेशचंद्र ने उगाए 6000 पौधे, बचाए सैकड़ों पक्षी

गुजरात का शंखेश्वर इलाका बंजर ज़मीन और कम बारिश के कारण ‘मिनी रण’ के नाम से जाना जाता है। यहाँ पक्षी भी बहुत कम ही नज़र आते हैं। लेकिन इसी इलाके में बसे धनोरा गाँव में हरियाली, पेड़-पौधे और ढेरों पक्षी आते हैं। वो कैसे?
बंजर क्षेत्र में यह मुमकिन किया है दिनेशचंद्र ठाकर और उनकी पत्नी देविंद्रा ठाकर ने। इस दंपति ने 25 साल की मेहनत से गाँव में ‘निसर्ग निकेतन’ बनाया है; जहाँ दूर-दूर से लोग हरियाली और दुर्लभ पक्षियों को देखने आते हैं। दिनेशचंद्र और देविंद्रा इसे लेकर कहते हैं- “हमने 1984 के अकाल के दौर में देखा कि बहुत सारे पक्षी मर रहे हैं। हमारी संवेदना जागृत हुई, हम यह स्थिति नहीं देख सके और निश्चय किया कि इन पक्षियों के लिए कुछ करना होगा; क्योंकि बिना पक्षियों के सृष्टि, सृष्टि ही नहीं कहला सकती।”
दोनों ने रिटायरमेंट के बाद धनोरा गाँव में 3 एक्कड़ ज़मीन खरीदी और उसपर पेड़-पौधे लगाना शुरू किया। इस इलाके के लुप्त हो चुके बेर, इमली और कचनार जैसे पौधे उन्होंने यहाँ उगाने शुरु किये। वे खुद ही एक झोपड़ी बनाकर यहाँ मिट्टी की सिंचाई करते और पौधे लगाते थे। जैसे-जैसे पेड़-पौधे बड़े होने लगे वैसे ही यहाँ पक्षियों की संख्या भी बढ़ने लगी।
आज आलम यह है कि यह पूरा इलाका करीबन 200 किस्मों के 6000 पेड़ों से भर चुका है। जिसमें मोर, तोता, बुलबुल, चिड़िया सहित कई किस्मों के सैकड़ों पक्षी कलरव करते नज़र आते हैं। अब निसर्ग निकेतन की तरह इस दंपति ने गाँव में ऐसे और भी मिनी जंगल बनाने का बीड़ा उठाया है। इसके लिए उन्होंने निसर्ग सेवा ट्रस्ट नाम से एक संस्था भी बनाई है।