दिहाड़ी मज़दूर से लेखक बने युवक को मिला केरल साहित्य अकादमी पुरस्कार, जानें वजह

केरल के अखिल के. ने हाल ही में जीता है केरल साहित्य अकादमी पुरस्कार :trophy: 28 साल के अखिल कोई पेशेवर लेखक नहीं, बल्कि एक दैनिक मज़दूर हैं.. जिन्होंने अपने संघर्ष और अनुभवों को शब्दों को पिरोकर पुस्तक के रूप में प्रस्तुत किया। वह लिखने के साथ-साथ अपने घर के खर्च को चलाने के लिए अख़बार डालने से लेकर रात में जेसीबी चलाने तक का काम करते हैं।
केरल के रहने वाले 28 अखिल ने अपने परिवार की जिम्मेदारियों के चलते 12वीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी और दिहाड़ी मज़दूर के रूप में काम करने लगे। दिनभर पसीना बहाने के बाद रात में जब वह एकांत पाते तो अपने अनुभवों को कल्पना का रूप देकर कहानी लिखते थे।
बस रोज़मर्रा के इसी संघर्ष और हर दिन मिलने वाले लोगों को उन्होंने करीब से जाना और अपने शब्दों में कहानी का रूप देते गए। एक दिन इन सभी अनुभवों ने मिलकर ‘नीलाचदयन’ नामक लघु कथा संग्रह का रूप ले लिया। जिसके लिए अखिल को केरल के सर्वोच्च साहित्य अवॉर्ड से सम्मानित किया गया है।
किताब लिखने बाद इसके प्रकाशन के लिए भी उन्हें संघर्ष करना पड़ा। जाना-माना लेखक न होने कारण उन्हें कोई प्रकाशक नहीं मिला। लेकिन एक दिन उन्होंने फेसबुक पर एक ऐड देखा, जिसमें लिखा था कि 20000 रुपये देकर पुस्तक का प्रकाशन किया जाएगा। फिर अखिल ने अपने जमा किए हुए 10 हज़ार में अपनी माँ की भी जमापूंजी मिलाई और इस तरह उनकी किताब दुनिया के सामने आ सकी।
उनकी मेहनत और प्रतिभा का ही फल था कि उनकी किताब लोगों ने काफ़ी पसंद की और उन्हें इतने बड़े सम्मान से नवाज़ा गया। हम अखिल जैसे युवाओं को सलाम करते हैं, जो जीवन की मुश्किलों से हार मानने के बजाए उसे ही आगे बढ़ने की सीढ़ी बना लेते हैं।