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CAA से ममता को क्यों सता रही चिंता ? पश्चिम बंगाल की इन सीटों पर हो सकता है बीजेपी को सीधा फायदा!

CAA Rules Notification Impact: नागरिकता संशोधन कानून सोमवार को लागू होने के बाद से लगातार इस पर राजनीतिक गहमागहमी जारी है। कोई इसे चुनावी हथकंड़ा बता रहा है तो कोई इसे देश हित में बता रहा है। राजनीतिक पार्टियों में वार पलवार लगातार बढ़ता ही जा रहा है। पश्चिम बंगाल में इसको लेकर सियासत गरमा गई है। ममता बनर्जी ने इसका विरोध करते हुए चुनाव से पहले इसको एक लॉलीपॉप बताया है।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने देश में संसदीय चुनाव से ठीक पहले केंद्र सरकार के इस कदम पर भी सवाल उठाया। पर क्या नागरिकता संशोधन कानून से लोकसभा चुनाव में फायदा हो सकता है ? और क्या पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी को लोकसभा चुनावों में घाटा और भाजपा को फायदा हो सकता है? आइये इस खबर के जरिए CAA से पश्चिम बंगाल में लोकसभा का चुनाव में क्या फायदें हो सकते हैं उसको समझने का प्रयास करते हैं।

बांग्लादेश से लगी अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास के जिलों में रह रहे लोगों को फायदा

आपको बता दें कि नागरिकता संशोधन कानून CAA को लागू कराने की मांग भाजपा के कई सर्वेक्षणों में हो चुकी है। केंद्र सरकार के द्वारा हुए सर्वे में भी इसे लागू करने का फायदा बीजेपी को मिलता दिख रहा था। ऐसा माना जा रहा है कि इस कानून के लागू होने से बांग्लादेश से आए मतुआ, राजवंशी और नामशुद्र समुदाय के हिन्दू शरणार्थियों को फायदा होगा। पश्चिम बंगाल में बांग्लादेश से लगी अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास के जिलों में इन समूहों का बसाव है और ये लोग लंबे समय से भारतीय नागरिकता की मांग करते रहे हैं। अब इसके लागू होने से इनको फायदा होगा।

हिन्दू शरणार्थी कितने अहम

देश का बंटवारा होने और बाद के वर्षों में बांग्लादेश से आकर बंगाल के सीमा के जिलों में बसे मतुआ समुदाय की आबादी राज्य की आबादी की करीब 10 से 15 प्रतिशत मानी जाती है। राज्य के दक्षिणी हिस्से की पांच लोकसभा सीटों में इन समुदायों की आबादी काफी ज्यादा है, सर्वे के मुताबिक राज्य के दक्षिणी क्षेत्र में करीब 30-35 विधानसभा क्षेत्रों में मतुआ समुदाय की आबादी 40 फीसदी के करीब है। जहां से दो सीटों (गोगांव और रानाघाट) पर 2019 में भाजपा को जीत मिली थी।

राजबंशी और नामशुद्रा समुदाय की आबादी वाले तीन क्षेत्रों में दर्ज की थी जीत

इसी तरह उत्तरी बंगाल के जिस इलाके में राजबंशी और नामशुद्रा समुदाय की आबादी का बसाव है, वहां भी भाजपा ने 2019 में तीन सीटों पर जीत दर्ज की थी। जलपाईगुड़ी, कूच विहार और बालुरघाट संसदीय सीट पर इन हिन्दू शरणार्थियों की आबादी करीब 40 लाख से ऊपर है। यानी इतनी सीटों पर मतुआ समुदाय हार-जीत का फैक्टर तय करते हैं और 2019 से उनका झुकाव भाजपा की ओर रहा है। दक्षिण बंगाल में नादिया जिले में भी मतुआ समुदाय हार-जीत का निर्णायक फैक्टर है।

2019 के चुनाव में 17 विधानसभा क्षेत्रों में से केवल 6 में लीड कर सकी थी ममता

2019 के लोकसभा चुनावों में ममता बनर्जी की पार्टी ने 17 विधानसभा क्षेत्रों में से केवल 6 में ही लीड कर सकी थी, बाकी की बची हुई 11 सीटों में भाजपा ने लीड किया था। जाहिए है इस कानून के लागू होने से मतुआ और अन्य हिन्दू शरणार्थी समुदाय के प्रभाव वाले क्षेत्रों में भाजपा को सीधा चुनावी लाभ हो सकता है। अगर ये वोट भाजपा के पक्ष में गए तो ममता को पांच-छह सीटों का नुकसान हो सकता है।

33 में से 12 विधानसभा क्षेत्रों में पिछड़ गई थी ममता

दरअसल, 2016 में हुए विधान सभा के चुनाव में उत्तर 24 परगना के 33 विधानसभा क्षेत्रों में से 27 पर ममता बनर्जी की पार्टी की शानदार जीत हुई थी लेकिन, 2019 के आम चुनावों में टीएमसी को का वोट शेयर कम हो गया। जिसके चलते पार्टी 33 में से 12 विधानसभा क्षेत्रों में पिछड़ गई। इन क्षेत्रों में चार – बागदा, बोंगांव उत्तर, बोंगांव दक्षिण और गायघाटा ऐसी सुरक्षित विधानसभा सीटें हैं, जहां मतुआ संप्रदाय की आबादी 80 फीसदी से ऊपर है।

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