Advertisement

भारत का विलक्षण अजेय दुर्ग कालिंजर

Share
Advertisement


बाँदा: उत्तर प्रदेश के बाँदा जनपद में स्थित ऐतिहासिक कालिंजर दुर्ग विश्वकला धरोहर के लिए अनुपम कृति है। इस दुर्ग की गणना चन्देलों के 8 प्रमुख दुर्गों में की जाती है। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित यह दुर्ग एक सजग प्रहरी के रूप में चिरकाल से अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता आ रहा है।

Advertisement

वेदों, महाकाव्यों, पुराणों में वर्णित है महत्ता

समुद्र तल से 375 मीटर ऊंचाई पर 90 डिग्री पर खड़ी इसकी दीवारें आज भी कारीगरों को विस्मृत करती हैं। दुर्ग का मुख्य प्राचीर 25-30 मीटर नींव पर 30-35 मीटर ऊंचा शीर्ष में 8 मीटर चौड़ा तथा 7.5 मीटर लंबा चट्टानों व पत्थरों को एक के ऊपर एक रखकर अथवा चूने के जोड़ से बनाया गया है। दुर्गीकरण के पूर्व कालिंजर तपस्या स्थल, तीर्थ स्थल एवं आत्म साधना का केन्द्र था।

इसकी महत्ता वेदों, महाकाव्यों, पुराणों, के साथ-साथ बौद्ध, जैन एवं अन्य अनेक साहित्य कृतियों, आख्यानोंव लोक कथाओं में वर्णित है। यहां कालिंजर और शिव एक-दूसरे के पूरक एवं पर्याय हैं। अभिलेखों में इसे कालिंजर, कालिंजराद्रि, कालंजरगिरि एवं कालिंजरपुर आदि नामों से तथा शिव (नीलकण्ठ) के अधिवास के रूप में सुविख्यात कहा गया है।

शिव के विषपान से है कालिंजर का पौराणिक महत्व

कालिंजर का पौराणिक महत्व शिव के विषपान से है। समुद्र मंथन में निकले विष का पान करके जब भगवान शिव का कण्ठ नीला पड़ गया तो इसी स्थान पर विश्राम कर उन्होंने यहां उपस्थित औषधियों से काल पर विजय प्राप्त की थी। वहीं शिव यहाँ भगवान नीलकण्ठ के नाम से जाने जाते हैं। वेदों के अनुसार यह विश्व का प्राचीनतम दुर्ग है।

इस दुर्ग की सामरिक महत्व के कारण प्राचीन भारत के अनेक राजवंश इसे अधिकृत करने के लिए लालायित रहते थे। इसे प्राप्त कर वे कालंजरपुरवराधीश्वर, कालिंजर गिरिपति एवं कालंजराधिपति की उपाधियां धारण करते थे।

प्राचीन समय में यह जेजाकभुक्ति साम्राज्य के अधीन था। चन्देलों के बाद यह रीवा के सोलंकी राजवंश के अधीन रहा। इस पर महमूद गजनवी, कुतुबुद्दीन ऐबक, शेरशाह सूरी, हुमायूँ आदि ने आक्रमण किए पर विजय पाने में असफल रहे। शेरशाह सूरी तो यहीं पर तोप का गोला लगने से मृत्यु को प्राप्त हो गया था। मुगल शासनकाल में अकबर ने इस पर अधिकार किया पर जल्द ही यह महाराजा छत्रसाल के आधिपत्य में आ गया। अंग्रेजी शासन में इस पर अंग्रेजों का नियंत्रण हो गया। स्वतन्त्रता के बाद इसे ऐतिहासिक धरोहर के रूप में पहचान कर इसे पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को सौंप दिया गया।

कालिंजर दुर्ग का है सामरिक एवं प्रतिरक्षात्मक महत्व

भारत के इस बेजोड़ किले की प्रशंसा मुस्लिम साहित्यकारों ने सिकन्दर की दीवार कहकर की है। कालिंजर दुर्ग का जितना सामरिक एवं प्रतिरक्षात्मक महत्व था उससे कहीं अधिक यह वास्तु शैलवास्तु एवं कला केन्द्र के रूप में है। इस भव्य किले ‘कालिंजर’ पर शोध कार्य कर रहे वरिष्ठ आई.पी.एस. अधिकारी, विजय कुमार जी एवं बुन्देलखण्ड न्यूज डॉट कॉम के श्याम जी निगम बताते हैं कि चित्रकूट तथा खजुराहो आने वाले तमाम देशी-विदेशी पर्यटक बड़ी संख्या में कालिंजर के अजेय दुर्ग को देखने आते हैं। यहां (कालिंजर) के पर्यटन के विकास हेतु केन्द्र व राज्य सरकार दोनों ही प्रयासरत हैं। बुन्देलखण्ड न्यूज डॉट कॉम भी लगातार यहां के पर्यटन विकास के लिए लगातार प्रयास कर रहा है, जिससे अधिक से अधिक पर्यटक यहां पर आयें और इस क्षेत्र का पर्यटन विकास हो सके।

देखने योग्य प्रमुख स्थान

• उत्तर की ओर से जाने पर दुर्ग में आलमगीर दरवाजा, गणेश द्वार, चौबुरजी दरवाजा, बुद्ध भद्र दरवाजा, हनुमान द्वार, लाल दरवाजा और बारा दरवाजा नामक सात द्वारों से प्रवेश किया जा सकता है
• राजा महल और रानी महल नामक शानदार महल
• पत्थर से बनी सीता सेज एवं सीता कुण्ड
• ‘बुड्ढा-बुढ़िया’ नाम के दो संयुक्त तालाब, चर्म रोगों के लिए लाभकारी हैं
• जहां सहस्त्रों तीर्थ एकाकार हों, ऐसा ‘कोटि तीर्थ’
• दुर्गम स्थान पर शिला खोदकर बनाई गई मांडूक भैरव एवं भैरवी की प्रतिमा
• पातालगंगा, पाण्डवकुण्ड, सिद्ध की गुफा, भैरव कुण्ड, रामकटोरा, सुरसरि गंगा, बल खण्डेश्वर, चरण पादुका, भड़चांचर आदि दर्शनीय स्थल
• नगर में स्थित हजारों वर्ष पुराने दो विशाल कल्पवृक्ष
• दुर्ग पर निर्मित भगवान शिव का पौराणिक नीलकण्ठ मंदिर
• रॉक-क्लाइम्बिंग के लिए सर्वाधिक उपयुक्त खड़ी पर्वतमाला

नीलकण्ठ मन्दिर

नीलकण्ठ महादेव कालिंजर के अधिष्ठाता देवता है। दुर्ग के पश्चिमी कोने पर स्थित सबसे प्राचीन, पवित्र एवं प्रख्यात स्थल नीलकण्ठ मंदिर ही है। यहां पर अनेक गुफाएं एवं मूर्तियां पर्वत को काटकर बनाई गई हैं। मन्दिर का मण्डप चन्देलकालीन वास्तुशिल्प का अद्वितीय उदाहरण है। इस मन्दिर का निर्माण नागवंशियों ने कराया था। इस मण्डप से लगा हुआ एक गर्भ गृह है जिसमें स्वयं-भू शिवलिंग प्रतिष्ठित है। मन्दिर के ऊपर पर्वत को काट कर दो स्वर्गारोहण जलकुण्ड बनाए गए हैं। इनके नीचे पर्वत को काटकर बनाई गई कालभैरव की विशाल प्रतिमा है।

रानी दुर्गावती का जन्मस्थान

चन्देल शासक राजा कीर्ति सिंह चन्देल की एकमात्र सन्तान वीरांगना दुर्गावती का यह जन्मस्थान भी है। कीर्ति सिंह की पुत्री रानी दुर्गावती के नाम से इतिहास में प्रसिद्ध हुई। नाम के अनुरूप तेज, साहस, शौर्य व सुन्दरता से प्रभावित होकर गोंडवाना राज्य के शासक दलपत शाह ने इनसे विवाह किया था। बाद में यह गोंडवाना राज्य की महारानी बनीं और अपनी वीरता से इतिहास में अपना नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित कराया।

कैसे पहुंचें कालिंजर

• वायुमार्ग- वायुयान से जाने के लिए निकटतम हवाई अड्डा खजुराहो और फिर कानपुर है।
• रेलमार्ग- निकटतम रेलवे स्टेशन बाँदा से इसकी दूरी 58 किलोमीटर तथा सतना से 85 किलोमीटर है।
• सड़क मार्ग- बाँदा एवं सतना से सीधी बस सुविधा है। खजुराहो, बाँदा और सतना से टैक्सी भी मिलती है।

(साभार: बुन्देलखण्ड न्यूज डॉट कॉम)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *