कीमत तो चुकानी पड़ेगी !
युद्ध कहीं भी हो, किसी के भी बीच हो उसकी कीमत चुकानी ही होती है. इस वक्त केवल यूक्रेन ही नहीं कीमत चुका रहा है, बाकी दुनिया भी चुका रही है. भारत के मेडिकल छात्र नवीन की यूक्रेन में मौत इस बात का प्रमाण है कि युद्ध उन लोगों से भी कीमत वसूलता है जो न तो इसके लिए जिम्मेदार हैं और न ही इसमें शामिल हैं. वैसे, नवीन की मौत के लिए केवल युद्ध नहीं, बल्कि सरकारें भी जिम्मेदार हैं, चाहे वें मौजूदा सरकारें हों या इससे पहले की. युद्ध न होता तो कोई चर्चा भी नहीं करता कि भारत के हजारों छात्र यूक्रेन में हैं और हर साल इनकी संख्या बढ़ रही है.
क्या ये भारतीय छात्र शौकिया तौर पर यूक्रेन गए हैं या फिर यूक्रेन में मेडिकल की डिग्री फ्री में बंट रही है? दोनों सवालों के जवाब बेहद आसान है. ये भारत सरकार और राज्य सरकारों की नीतियों के कारण देश से बाहर जाने के लिए मजबूर हुए हैं.
सबको पता है कि भारत में मेडिकल डिग्री, खासतौर से MBBS में प्रवेश के लिए कितनी मारामारी है और उससे भी बड़ी बात ये है कि निजी क्षेत्र में इसकी कीमत इतनी बड़ी है कि कोई आम आदमी तो छोड़िए एक बड़ा सरकारी अधिकारी भी अपने वेतन के बल पर एक बच्चे की मेडिकल डिग्री का बोझ नहीं उठा सकते. अगर ईमानदार हैं तो नहीं करा सकते. जिनके पास आय के दूसरे ढके छिपे हुए स्रोत हैं, वे जरूर करा सकते हैं.
हमें ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं है यूपी के निजी मेडिकल कॉलेजों में एक साल की फीस 12 से 18 लाख के बीच में हैं. इसमें छिपे हुए खर्च शामिल नहीं हैं. पांच साल का अनुमान लगाना चाहे तो करीब एक करोड़ के आस पास तक खर्च हो जाएगा. असली मजबूरी यही है, जिसके चलते हजारों लोगों को अपने बच्चों को यूक्रेन, रूस, पोलेंड, हंगरी जैसे तुलनात्मक रूप से गरीब देशों में MBBS की पढ़ाई के लिए भेजना पड़ रहा है.
भारत में छात्रों को MBBS की पढ़ाई के लिए पांच साल में करीब एक करोड़ के आस पास तक खर्च करने पड़ रहे हैं. इन देशों में ये काम 20-25 लाख में हो रहा है. इस स्थिति का जिम्मेदार कौन है? कम से कम अभिभावक और छात्र तो नहीं हैं. कौन अभिभावक चाहेगा कि उसका बच्चा किसी अनजान देश में विपरीत परिस्थितियों में रहकर पढ़ाई करे. ऐसी कौन-सी वजहें हैं कि भारत के निजी मेडिकल कॉलेजों में इन देशों की तुलना में तीन से पांच गुना तक अधिक फीस है? यह सब सत्ता और सिस्टम की नाकामी है. जिसकी वजह से आज हजारों छात्र अपनी जान जोखिम में डालकर विदेशों में पढ़ाई कर रहे हैं.
देश की सरकारें अपनी आलोचना नहीं सुनती. वे किसी भी पार्टी की हों, उनका चरित्र एक जैसा ही होता है. भारत सरकार आज जो काम कर रही है, वो काम 15 दिन पहले से शुरू हो जाना चाहिए था. लेकिन आपात स्थिति वाला काम भी फुरसत से हुआ. इतनी समझ हम सभी को है कि 20 हजार छात्रों या अन्य भारतीय नागरिकों को युद्ध क्षेत्र से बाहर निकालने के लिए कम से कम सौ उड़ानों की जरूरत होगी.
हालांकि, आज गुरूवार को विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने दावा किया है कि अब तक करीब 18 हजार भारतीयों ने यूक्रेन छोड़ा है. भारत सरकार लगातार रूस और यूक्रेन सरकार के संपर्क है. शनिवार को करीब 18 फ्लाइट्स भारतीयों को वापस लाने के लिए काम करेगी. ऑपरेशन गंगा को तेज किया जा रहा है. सभी इस बात से वाकिफ है कि युद्ध क्षेत्र में हर एक मिनट कीमती है और लोगों को बाहर निकालने का काम जितना लंबा चलेगा, उतनी ही ज्यादा परेशानी बढ़ेगी.