
अहम बातें एक नजर में –
- चुनाव आयोग का फैसला विवादों में
- ADR की सुप्रीम कोर्ट में याचिका
- 3 करोड़ मतदाता हो सकते हैं प्रभावित
- संविधान के अधिकारों का उल्लंघन
- नई प्रक्रिया से बढ़ी जनता की परेशानी
- मांगे जा रहे दस्तावेज
Bihar Election 2025 : बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव सर पर हैं वहीं उससे ठीक पहले चुनाव आयोग मतदाता सूची पुनरीक्षण का फैसला विवादों में घिरा है. चुनाव आयोग द्वारा विशेष सघन मतदाता सूची पुनरीक्षण का फैसला विवादों में घिर गया है. साथ ही इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने याचिका दायर की है. इस याचिका में कहा गया है कि यह निर्णय असंवैधानिक और लोकतंत्र के मूल अधिकारों का उल्लंघन कर रहा है.
क्यों उठी आपत्ति?
दरअसल ADR ने दावा किया कि इस फैसले से लगभग 3 करोड़ प्रवासी और गरीब मतदाता अपने मताधिकार से दूर हो सकते हैं. इस लिस्ट में खासकर ग्रामीण और कमजोर तबके के लोग शामिल हैं. जिनको भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि उनसे मांगे गए कई दस्तावेज उनके पास हैं ही नहीं.
बता दें कि चुनाव आयोग के इस कदम से संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 19 (स्वतंत्रता), अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता) और अनुच्छेद 325 व 326 (चुनावी अधिकार) का उल्लंघन किया जा रहा है. साथ ही यह जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 और मतदाता पंजीकरण नियम 1960 की धारा 21A के भी खिलाफ बताया जा रहा है.
विपक्ष ने भी जताई चिंता
हालांकि इस मामले में विपक्षी पार्टियों का आरोप लगाया कि यह प्रक्रिया गरीब, वंचित और अल्पसंख्यक मतदाताओं को सूची से बाहर करने की साजिश है. विपक्षी गठबंधन ने चुनाव आयोग से मुलाकात कर इसी मुद्दे को लेकर फैसला वापस लेने की मांग की थी. वहीं आयोग ने इसे खारिज कर दिया है.
मतदाताओं के लिए नई प्रक्रिया
इस पुनरीक्षण के तहत 8 करोड़ गणना फॉर्म बीएलओ को दिए गए हैं, जिन्हें अब घर-घर जाकर भरवाया जा रहा है.
- 1 जनवरी 2023 तक सूची में शामिल 3.16 करोड़ मतदाताओं को अपनी जानकारी की पुष्टि करनी होगी.
- करीब 4.74 करोड़ नए या अनिश्चित मतदाताओं को पहचान और निवास प्रमाण देना होगा.
मांगे जा रहे दस्तावेज
दूसरी और चुनाव आयोग ने 11 दस्तावेजों की सूची जारी की है, जिनमें आधार कार्ड, वोटर ID, राशन कार्ड, जाति प्रमाण पत्र, निवास प्रमाण पत्र, जन्म प्रमाण पत्र, 10वीं की मार्कशीट, ड्राइविंग लाइसेंस, मनरेगा जॉब कार्ड आदि शामिल हैं. गौरतलब है कि यह मुद्दा अब सिर्फ चुनाव का हिस्सा नहीं रह गया है, बल्कि लोकतंत्र, समानता और नागरिक अधिकारों से जुड़ा बड़ा सवाल बन चुका है. साथ ही अब सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि चुनाव आयोग का यह कदम कितना सही है या कितना नहीं.
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