
Supreme Court News : मुआवजे में 22 साल की देरी से जुड़ा एक मामला था। इसी कड़ी में सुप्रीम कोर्ट का एक ऐतिहासिक फैसला आया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संपत्ति का अधिकार एक संवैधानिक अधिकार है। किसी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से तब तक वंचित नहीं किया जा सकता है। जब तक उसे कानून के अनुसार उचित मुआवजा न दिया जाए।
जस्टिस बी. आर. गवई और जस्टिस के. वी. विश्वनाथन की बेंच ने कहा कि 1978 के संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम के तहत संपत्ति का अधिकार मौलिक अधिकार में नहीं आता है, लेकिन यह एक कल्याणकारी राज्य में मानव अधिकार और संविधान के अनुच्छेद 300-ए के तहत संवैधानिक अधिकार है। अनुच्छेद 300-ए के अनुसार, किसी भी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से केवल कानून के अधिकार के तहत ही वंचित किया जा सकता है।
भूमि अधिग्रहण से जुड़ा मामला
जानकारी के लिए बता दें कि कर्नाटक हाईकोर्ट के नवंबर 2022 का फैसला था। उसी फैसले को चुनौती दी गई थी, जो बेंगलुरु-मैसूर इन्फ्रास्ट्रक्चर कॉरिडोर प्रोजेक्ट (BMICP) के तहत भूमि अधिग्रहण से जुड़ा मामला था।
बेंच ने सक्त टिप्पणी करते हुए कहा कि पिछले 22 वर्षों से भूमि मालिकों को उनकी संपत्ति के बदले कोई मुआवजा नहीं दिया गया है। यह देरी राज्य और KIADB के अधिकारियों के सुस्तीपूर्ण रवैये के कारण हुई। अगर 2003 की बाजार दर पर मुआवजा दिया गया, तो यह न्याय का मजाक होगा।
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