COP28: जीवाश्म ईंधन के मुद्दे पर कहां खड़ा है भारत?

संयुक्त अरब अमीरात (United Nations Emirates) के दुबई (Dubai) शहर में हो रही यूएन क्लाइमेट समिट सीओपी28 (UN Climate Summit COP28) के दौरान जीवाश्म ईंधन (Fossil Fuels) से किनारा करने के लिए दुनिया के तमाम देशों के बीच एक आम सहमति हासिल की गई है.
सीओपी28 के अध्यक्ष सुल्तान अल जाबेर समेत कई पक्षों ने इसे एक ऐतिहासिक उपलब्धि बताया है. लेकिन इसके साथ ही इस आम सहमति को निंदा का सामना भी करना पड़ रहा है.
क्योंकि इस आम सहमति में सिर्फ ऊर्जा तंत्रों में जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को निशाना बनाया गया है. लेकिन प्लास्टिक (Plastic) और फर्टिलाइज़र उद्योग (Fertilizers Industry) में इस्तेमाल होने वाले जीवाश्म ईंधन पर बात नहीं की गयी है.
इसके साथ ही इस आम सहमति में पूर्ण रूप से चरणबद्ध तरीके से जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को बंद करने पर बात नहीं की गयी है.
COP28: ग्रीन हाउस गैसों के तीसरे बड़े उत्सर्जक
दुनिया में ग्रीन हाउस गैसों (Green House Gases) के तीसरे सबसे बड़े उत्सर्जक (Emission) भारत ने सीओपी28 के दौरान जीवाश्म ईंधन का चरणबद्ध ढंग से इस्तेमाल बंद करने के विवादास्पद मुद्दे पर अपेक्षाकृत रूप से चुप्पी साधी हुई है.
लेकिन भारत ने साल 2030 तक वैश्विक नवीनकरणीय ऊर्जा (Global Advanced Energy) की क्षमता को तीन गुना किए जाने के संकल्प पर सहमति नहीं जताई है. बीती 9 दिसंबर को 120 देशों ने यूएन क्लाइमेट मीट (Climate Meet) के दौरान ये संकल्प लिया था. इसकी वजह से ये है कि इस संकल्प के तहत नवीनकरणीय ऊर्जा का इस्तेमाल बढ़ाने के साथ-साथ चरणबद्ध ढंग से कोयले का इस्तेमाल (Use of Coal) बंद करना है.
भारत के ऊर्जा मंत्रालय ने COP28 शुरू होने से लगभग एक हफ़्ते पहले ऐलान किया था कि वह 2031-32 तक कोयला आधारित 80 GW थर्मल पावर (Thermal Power) जोड़ रहा है क्योंकि देश में बिजली की मांग “अभूतपूर्व दर” से बढ़ी है.
साल 2021 में ग्लासगो में हुए सीओपी26 के डिक्लेरेशन में कोयले को चरणबद्ध ढंग से शामिल करने की बात कही गयी थी. इस मौके पर चीन और भारत ने पश्चिमी देशों की ओर से शुरू किए गए इस अभियान का सामना किया था.
कोयले को अलग-थलग करके न देखा जाए
इसके बाद से भारत ने पश्चिमी देशों और तेजी से विकसित होते देशों ने तेल और गैस का उत्पादन बढ़ते देखा है. ऐसे में अब भारत का तर्क है कि कोयले को अलग-थलग करके नहीं देखा जाना चाहिए.
ऐसे में जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को लेकर भारत ने अपने रुख को स्पष्ट नहीं किया है और वह क्लाइमेट एक्शन के आधार के रूप में समानता और क्लाइमेट जस्टिस को माने जाने की बात कर रहा है.