क्या है Operation Lotus, क्यों हो रही है इस शब्द की चर्चा जानें?

एक शब्द कई दिनों से राजनीतिक गलियारों में चर्चा में है (Operation Lotus) आज हम आपको बताएंगे की इसका क्या मतलब है। ये शब्द सुनने में तो ऐसा लगता है कि मानों किसी सकारात्मक मिशन की तैयारी हो रही हो या सरकार देश के लिए विकास की एक नई नींव रखने जा रही हो। ऐसा बिल्कुल नहीं है। सरल भाषा में कहें तो इस शब्द का सीधा सा मतलब है कि सत्ता पाने के लिए दूसरे दलों को कथित रूप से अपने पाले में कर लेना चाहें तरीका कुछ भी हो इसमें खरीद फरोख्त भी शामिल है।
Operation Lotus की खास बातें
आपको बता दें कि 2004 में जब कर्नाटक में धरम सिंह मुख्यमंत्री बने थे, तब भाजपा ने सरकार गिराने की जो कवायदें की थीं, तब ये शब्द ऑपरेशन लोटस पहली बार चर्चा में आया था। विपक्ष ने भाजपा पर अपने आधार के साथ ही विधायकों की संख्या बढ़ाने की कवायद को ऑपरेशन लोटस शब्द दिया था। ये भाजपा का कोई ज़ाहिर अभियान नहीं है बल्कि विपक्ष और मीडिया भाजपा की कवायद को इस नाम से सम्बोधित करता रहा है।
सुनने में शायद ऐसा लगे कि यह सेना या किसी सुरक्षा एजेंसी का कोई मिशन है, लेकिन ऐसा नहीं है वास्तव में, ये भारतीय जनता पार्टीकी एक कवायद के लिए गढ़ा हुआ शब्द है, जिसके तहत पार्टी राज्यों में अपनी सरकार के समीकरण साधने की कोशिश कर रही है। इस कथित ऑपरेशन के तहत पार्टी या तो दूसरी पार्टियों के विधायकों कथित रूप से खरीदती है या उन्हें प्रभावित करती है। आपको बता दें कि ये शब्द विपक्षी दल और मीडिया के द्वारा प्रयोग किया जाता है।
मिली जानकारी के हिसाब से ऑपरेशन लोटस के अंतर्गत बीजेपी के नेता पहले दूसरी पार्टियों के विधायकों से संपर्क करते हैं और फिर उन्हें इस्तीफ़ा देने के लिए प्रभावित करते हैं। इस्तीफे से विधानसभा की संख्या घट जाती है और दूसरी पार्टी की सरकार गिर जाती है।
कब और कैसा आया ये शब्द?
आपको बता दें कि 2004 में जब कर्नाटक में धरम सिंह मुख्यमंत्री बने थे, तब भाजपा ने सरकार गिराने की जो कवायदें की थीं, तब ये शब्द ऑपरेशन लोटस पहली बार सुर्खियों में तब से ही आया था। विपक्ष ने भाजपा पर अपने आधार के साथ ही विधायकों की संख्या बढ़ाने की कवायद को ऑपरेशन लोटस शब्द दिया था। भाजपा के हिसाब से ये शब्द सकारात्मक है, लेकिन मीडिया और विपक्ष ने इसमें राजनीतिक तड़का लगाते हुए इस शब्द को नई हवा दे दी है।
जानकारी के लिए बता दें कि कर्नाटक में कांग्रेस और जेडीएस के पास मिलाकर कुल 118 सीटें हैं जबकि राज्य की विधानसभा में कुल 224 विधायक हैं। बीजेपी के पास 2 निर्दलीयों के सहयोग को मिलाकर कुल 106 विधायक हैं।ऐसे में अगर बीजेपी के विरोधी विधायक इस्तीफ़ा देते हैं तो होता ये है कि विधानसभा में विधायकों की संख्या कम हो जाएगी और बीजेपी इस संख्या को अगर 210 तक लाने में सफल रही तो ऐसे में 106 विधायकों के साथ वह बहुमत में आकर कर्नाटक में अपनी सरकार बना सकती है।