माफिया अतीक के अतीत की कहानी, इतने सालों का साम्राज्य कैसे 36 महीने में हुआ जमींदोज

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बाहुबली माफिया अतीक अहमद इलाहाबाद के शहर पश्चिमी सीट से लगातार 5 बार विधायक रहे हैं। सांसद बनने के बाद अतीक का रसूख और बढ़ता चला गया।

माफिया अतीक
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यूपी में ऐसे कई खूंखार गैंगस्टर हुए जिन्होंने कई सालों तक अपने इलाके में किसी राजा की तरह शासन किया… दबंगई के दम पर इन्होंने बाहुबली का तमगा हासिल किया। उनके कारनामों ने हमेशा उन लोगों को सुर्खियों में बनाए रखा। यूपी की सियासत का एक ऐसा ही नाम है अतीक अहमद। जिसने कम उम्र में ही अपराध की काली दुनिया में अपने लिए जगह बना ली।

प्रयागराज जो उस दौर में इलाहाबाद हुआ करता था। कहानी सत्तर और अस्सी के दशक के बीच की है। जब तत्कालीन इलाहाबाद में माहौल बदलने लगा था। इलाहाबाद शिक्षा के हब के रूप में विकसित हो रहा था। उस दौर में आस-पास के लड़कों में अमीर बनने की चाहत जग रही थी। चाहे इसके लिए किसी भी हद तक जाना पड़े। इसी दौर में चकिया मोहल्ले में रहने वाले एक तांगेवाले का बेटा यानी अतीक अचानक से सुर्खियों में आया।

माफिया अतीक को पुलिस और नेता दोनों का शह मिलने लगा

अतीक अहमद का जन्म 10 अगस्त 1962 को हुआ था। मूलत वह उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती जनपद के रहने वाले है। पढ़ाई लिखआई में अतीक की कोई खास रूचि नहीं थी। इसलिए उन्होंने हाई स्कूल में फेल हो जाने के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी। 17 साल की उम्र में जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही अतीक अहमद के खिलाफ पहला मुकदमा दर्ज हुआ और वो भी हत्या का।

साल 1979 में 17 साल की उम्र में अतीक अहमद पर कत्ल का इल्जाम लगा। उसके बाद जुर्म जैसे अतीक का धंधा बन गया और उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा। पढ़ाई के पन्ने तो कोरे थे लेकिन साल दर साल उनके जुर्म की किताब के पन्ने भरते जा रहे थे। अतीक कैसे बना बाहुबली, कैसे फला फूला ये जानना भी बेहद दिलचस्प है।

कभी इलाहाबद में चांद बाबा का खौफ हुआ करता था.. जिसके सामने जाने से पुलिस भी कांपती थी। 80 के दशक में 22 साल के अतीक ने तेजी से लोकल गुंडागर्दी में अपने पैर जमाने शुरु कर दिए। अतीक को पुलिस और नेता दोनों का शह मिलने लगा। चांद बाबा का दबदबा कम होने लगा। उस वक्त तक अतीक ने अपना बड़ा गिरोह तैयार कर लिया था।

एक फोन से पुलिस ने अतीक को छोड़ दिया

बात 1986 के आसपास की है जब प्रदेश में वीर बहादुर सिंह की सरकार थी। केन्द्र में राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे। उस दौरान एक बार पुलिस बाहुबली अतीक को उठा ले गई। लेकिन दिल्ली से आए एक फोन से अतीक उसी दिन पुलिस की गिरफ्त से छूट गया। ऐसे में माफिया अतीक ने सियासत पर अपनी अच्छी पैठ बना ली थी। जो आगे चलकर उसके बाहुबल और अपराध की दुनिया के लिए संजीवनी साबित होने वाली थी।

अतीक अहमद का एक दौर ऐसा भी आया जब वो पुलिस तक के लिए नासूर बन गया। हत्या, अपहरण, फिरौती जैसे मामलों में मुकदमों की फाइल दर फाइल खड़ी होती जा रही थी। मगर अतीक का कोई कुछ नहीं बिगाड़ पा रहा था।

एक बड़ा दिलचस्प किस्सा है, अतीक ने एक दिन बुर्के में अपने साथी के साथ पहुंचा और पुराने मामले में सरेंडर कर दिया। जेल जाते ही पुलिस उस पर भिड़ गई और रासुका लगा दिया। बाहर संदेश ये गया कि पुलिस अतीक का उत्पीड़न कर रही है। जिसके बाद उसके पक्ष में सहानूभूति पैदा हो गई। हालांकि एक साल जेल में रहने के बाद वो बाहर आया गया।

निर्दलीय विधायकी का चुनाव लड़ा

1989 के चुनाव में माफिया अतीक अहमद ने इलाहाबाद पश्चिमी से निर्दलीय पर्चा भर दिया। इस चुनाव में अतीक का सामना पुराने गैंगस्टर चांद बाबा से था, जिससे उसकी कई दफे गैंगवार हो चुकी थी। लेकिन अतीक ने चुनाव में ऐसा खेल खेला कि चांद बाबा हार गया। चुनाव के कुछ महीनों बाद ही चांद बाबा की हत्या हो गई।

जुर्म की दुनियां में अतीक लम्बी छलांगे मार रहा था। मगर उसे पता था कि उसका काला अतीत कभी भी उसके रास्ते का रोड़ा बन सकता है। अतीक पर सबसे पहले मुकदमा 1990 में हुआ। यह धूूमनगंज में हुई मारपीट, गालीगलौज व धमकी देने की घटना से संबंधित था।

पांचवी बार बना विधायक 

माफिया अतीक ने निर्दलीय रहकर 1991 और 1993 में भी लगातार चुनाव जीता. इसी बीच उसकी सपा से नजदीकी बढ़ी। 1996 में सपा के टिकट से चुनाव लड़ा और चौथी बार विधायक बना बाद में अतीक ने 1999 में अपना दल का हाथ थामा। प्रतापगढ़ से चुनाव लड़ा। लेकिन जीत नहीं पाया। इसके बाद 2002 में अपना दल से ही चुनाव लड़ा पुरानी सीट से और 5 वीं बार शहर पश्चिमी से विधानसभा में पहुंच गया।

इलाहाबाद के ही रहने वाले जिस सांसद ने अतीक पर हाथ रखा था, वो बड़े कारोबारी भी थे। इलाहाबाद के पुराने लोग बताते हैं कि उस वक्त शहर में सिर्फ उसी सांसद के पास निसान और मर्सिडीज जैसी विदेशी गाड़ियां होती थीं। माफिया अतीक को भी महंगी विदेशी गाड़ियों और हथियारों का शौक भी लग गया। कुछ ही दिन में उसने भी विदेशी गाड़ी खरीद ली। अब उसका नाम, सांसद के नाम से बड़ा होने लगा था। बावजूद इसके अतीक की सीरत नहीं बदली।

2003 में जब यूपी में सपा सरकार बनी तो अतीक ने फिर से मुलायम सिंह का हाथ पकड़ लिया। 2004 के आम चुनाव में फूलपुर से सपा के टिकट पर अतीक अहमद सांसद बन गए। इसके बाद इलाहाबाद पश्चिम विधानसभा सीट खाली हो गई थी. इस सीट पर उपचुनाव हुआ। सपा ने अतीक के छोटे भाई अशरफ को टिकट दिया था. मगर बसपा ने उसके सामने राजू पाल को खड़ा किया। और राजू ने अशरफ को हरा दिया।

लेकिन 25 जनवरी, 2005 को दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी गई। इस हत्याकांड में सीधे तौर पर सांसद अतीक अहमद और उनके भाई अशरफ को आरोपी बनाया गया था।

दिल्ली में किया था आत्मसर्मपण

इसके बाद उत्तर प्रदेश की सत्ता मई, 2007 में मायावती के हाथ आ गई। अतीक अहमद के हौसलें पस्त होने लगे. उनके खिलाफ एक के बाद एक मुकदमे दर्ज हो रहे थे। इसी दौरान अतीक अहमद भूमिगत हो गए। उनकी गिरफ्तारी पर पुलिस ने बीस हजार रुपये का इनाम रखा दिया। इनामी सांसद की गिरफ्तारी के लिए पूरे देश में अलर्ट जारी किया गया था। लेकिन मायावती के डर से अतीक अहमद ने दिल्ली में समर्पण करना बेहतर समझा।

साल 2013 में जब समाजवादी पार्टी की सरकार आई तो, एक बार फिर अतीक साइकिल पर सवार हो गए। फिलहाल वह जमानत पर बाहर आ गए और क्षेत्र में पार्टी के लिए काम करने लग गऐ थे।

इसके बाद अतीक अहमद ने जिस साम्राज्य को 36 साल में खड़ा किया, उसे योगी सरकार ने 36 महीनों में ध्वस्त कर दिया। शासन ने 2020 में उसके खिलाफ कार्रवाई शुरू की। जितने अवैध कब्जे थे उन्हें मुक्त कराकर सारे अवैध निर्माणों पर योगी सरकार ने बुलडोजर चलवा दिया। यहां तक कि जिस घर में अतीक अहमद का परिवार रहा करता था और कहां से चुनावी गतिविधियां संचालित होती थीं, उसे भी सरकार ने नेस्तनाबूद करवा दिया। समय के साथ अब न ही अतीक अहमद का वह रसूख रहा और न ही पकड़। अतीक अहमद इस समय अहमदाबाद जेल में है।