अजब-गजब : इस इलाके में दहेज में दिए जाते हैं सांप

Strange Story
Strange Story : दहेज देना कानूनन अपराध है. फिर भी शादियों में दहेज देने की प्रथा नहीं रुकती. लोग बेटियों को सुख सुविधा का सामान देने के नाम पर दहेज देते रहते हैं. आमतौर पर दहेज के नाम पर हमारे मन में कैश, घरेलू सुख सुविधा का सामान, घर या कोई वाहन आदि आते हैं. अगर हम आपसे कहें कि इसी भारत देश के छत्तीसगढ़ में एक जगह ऐसी है जहां दहेज में सुख सुविधा का सामान या कैश नहीं बल्कि सांप दिए जाते हैं तो आप विश्वास नहीं करेंगे लेकिन यह सच है.
दरअसल कवर्धा बोडला विकासखंड में गौरिया जाति के लोग आज भी अपनी परंपरा का निर्वाहन करते आ रहे हैं। यहां आज भी बेटी के विवाह में सांपों को दहेज में दिया जाता है। कबीरधाम जिले से लगभग 35 किलोमीटर दूर बोडला विकास खंड में रहने वाली यह जाति जो अपनी परंपरा के अनुसार बेटियों को शादी में 9 सांपों का दहेज देकर सुखमय जीवन जीने का आशीर्वाद देती है। यह रिवाज उनके समुदाय में वर्षों से चला आ रहा है। जिसका निर्वहन 21वीं सदी के चकाचौंध के बीच आज भी किया जा रहा है.
बता दें बोड़ला विकासखंड के ग्राम बांधाटोला से करीब दो किलोमीटर दूर सपेरों की बस्ती में आज भी यही परंपरा है। ये लोग बेटियों के विवाह में 9 सांपों का दहेज देते हैं। शादी से पहले जब कोई पिता अपनी बेटी के लिए अच्छे वर की तलाश करता है तो धन दौलत नहीं, बल्कि जहरीले सांप पूछता है। जिसके पास ज्यादा जहरीले सांप होते हैं, वही अच्छा वर होता है।
इस बस्ती में छोटे-छोटे बच्चे भी अक्सर सांपों से खेलते देखे जा सकते हैं. इसी परंपरा में गौरिया समुदाय में बेटी के विवाह पर पिता अपने दामाद को सांपों का दहेज में देता है. इस समुदाय में सांपों का उपहार ही दहेज है। पुरखों से चली आ रही इस परंपरा के बारे में बताया गया है कि यह प्रथा सदियों पुरानी है। मुख्य सड़क से करीब दो किलोमीटर पगडंडी से होते हुए इन सपेरों की बस्ती तक पहुंचा जा सकता है।
चंद घरों की इस बस्ती में हर घर में कई प्रजाति की सांप देखने को मिल जाएंगे। यहां के बच्चे बचपन से खिलौनों की जगह सांप के साथ खेलना शुरू कर देते हैं. और देखते ही देखते सांप ही इनके खास साथी बन जाते हैं। बच्चों को बचपन से ही सांप पकड़ने के गुर सिखाए जाते हैं।
वहीं नाग पंचमी बस्ती में रहने वाले लोगों ने बताया कि पहले वे अमरकंटक मार्ग के कोटा परिक्षेत्र के जंगल में रहते थे। वहां इनका डेरा था, लेकिन अब पिछले कई साल से यहां निवासरत हैं। उन्होंने बताया कि दो दिन पहले ही समुदाय के लोग रोजी रोटी के लिए निकल गए। पिटारे में सांप लेकर सभी परिवार अलग-अलग क्षेत्र में गए हैं.
रिपोर्ट : विपुल कनैया, संवाददाता, कवर्धा, छत्तीसगढ़
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