SC/ST Act: यदि बाहरी व्यक्ति मौजूद नहीं हो तो अपराध नहीं
SC/ST Act: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही कहा कि अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य की जाति का नाम लेकर मौखिक दुर्व्यवहार अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (एससी/एसटी अधिनियम) के तहत अपराध नहीं होगा। यदि ऐसी घटना उस घर के भीतर घटती है जहां कोई बाहरी व्यक्ति मौजूद नहीं होता है। न्यायमूर्ति शमीम अहमद ने कहा कि किसी व्यक्ति पर एससी/एसटी अधिनियम की धारा 3(1)(एस) के तहत अपराध के लिए मुकदमा तभी चलाया जा सकता है, जब उसके द्वारा कही गई बातें किसी सार्वजनिक स्थान पर की गई हों।
SC/ST Act: जाति के नाम से अपमानित नहीं किया
बता दें कि अदालत ने एक स्कूल मालिक के खिलाफ एक मामले को रद्द करते हुए यह टिप्पणी की, जिस पर एक माता-पिता ने अपने बेटे और अन्य छात्रों को बारहवीं कक्षा की परीक्षा में फेल करने का आरोप लगाया था। शिकायत में आरोप लगाया गया कि आरोपी और उसके सहयोगियों ने छात्रों के परिणाम के खिलाफ उनके विरोध को चुप कराने के लिए शिकायतकर्ता को 5 लाख की पेशकश की। शिकायत में यह भी कहा गया है कि आरोपी ने शिकायतकर्ता को उसकी जाति के नाम का इस्तेमाल करते हुए गाली दी और जब वे उसके घर आए तो उसे धमकी दी। हालांकि, न्यायमूर्ति अहमद इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि आरोपी ने सार्वजनिक रूप से किसी भी स्थान पर शिकायतकर्ता को जाति के नाम से अपमानित नहीं किया था।
SC/ST Act: दुर्व्यवहार की प्रकृति के बारे में नहीं बताया
अदालत ने यह भी कहा कि शिकायतकर्ता ने दुर्व्यवहार की प्रकृति के बारे में कुछ भी नहीं बताया है। इस प्रकार, यह निष्कर्ष निकला कि आरोप एससी/एसटी अधिनियम की धारा 3(1)(एस) के तहत अपराध नहीं बनते हैं। कोर्ट ने कहा, “अधिनियम, 1989 के तहत अपराध तब माना जाएगा जब समाज के कमजोर वर्ग के किसी सदस्य को सार्वजनिक दृश्य में किसी भी स्थान पर अपमान और उत्पीड़न का शिकार होना पड़ेगा।” इस मामले में यह भी पाया गया कि स्वतंत्र गवाहों ने शिकायतकर्ता के मामले का समर्थन नहीं किया था और कथित घटना के समय वे घर के अंदर भी मौजूद नहीं थे।
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