राम मंदिर के लिए लगाई थी जान की बाजी, कारसेवक ने सुनाई 1990 की आंखों देखी
Ram Mandir Ayodhya: भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा की शुभ घड़ी नजदीक है। 10 दिन बाद प्रभु राम अपने गर्भगृह में विराजेंगे। लोगों में प्राण प्रतिष्ठा को लेकर खासा उत्साह देखा जा रहा है। लेकिन वो लोग जिन्होंने राम मंदिर के आंदोलन में अपनी जान की बाजी लगा दी थी, उन सभी कारसेवकों की आंखें खुशी से भर आई हैं।
33 साल से शुभघड़ी का कर रहे थे इंतजार
Ram Mandir Ayodhya: अयोध्या में भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा की शुभ घड़ी आते ही उत्तर प्रदेश के हमीरपुर के में खुशी का माहौल है। 33 साल पहले राम जन्मभूमि में कारसेवा के लिए पहुंचे हमीरपुर के एक गांव के तमाम रामसेवकों ने पंचकोसी परिक्रमा के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी थी। जब कारसेवकों पर लाठीचार्ज और फायरिंग हुई थी तो इन रामभक्तों ने नजदीक के ही एक गांव में शरण ली थी। तैंतीस साल बाद राममंदिर बनने का सपना साकार होने पर बुजुर्ग हो चुके रामभक्तों की आंखें आज खुशी से नम हैं।
‘दुनिया को मिलेगी मानवीय मूल्यों के प्रति सजग बनने की प्रेरणा’
1990 में कारसेवकों पर हुई गोलीबारी के गवाह कारसेवक मिथलेश कुमार द्विवेदी (स्थानीय निवासी) ने बताया कि युगों-युगों तक यह राममंदिर देश और दुनिया को मानवीय मूल्यों के प्रति सजग बनाने की प्रेरणा देगा। साथ ही धार्मिक, सामाजिक, नैतिक और आध्यात्मिक ऊर्जा भी प्रदान करेगा।
मिथलेश ने सुनाई आंखों देखी
मिथलेश कुमार द्विवेदी 33 साल पहले प्रदीप कुमार, रामशरण सिंह और बाकी कारसेवकों के साथ कारसेवा के लिए अयोध्या गए थे। मुलायम सरकार द्वारा कारसेवकों पर चलाई गई गोलियों के वो चश्मदीद गवाह हैं। उन्होंने बताया कि कारसेवा के दौरान निहत्थे रामभक्तों पर लाठियां बरसाई गई थी और अंधाधुंध फायरिंग की गई थी। हर तरफ सिर्फ खून का मंजर था। उन्होंने और उनके कुछ साथियों ने जान बचाने के लिए पास के एक गांव में शरण ली थी।
जान की परवाह किए बिना की थी परिक्रमा
लाठीचार्ज के बीच अपनी जान की परवाह किए बिना कारसेवकों ने पंचकोसी की परिक्रमा शुरू की थी। गोलीकांड के दस दिन बाद सभी कारसेवक अपने घर लौटे थे।
रिपोर्ट: आनंद अवस्थी
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