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NPA होने के बावजूद भी लोन की स्वीकृति, कोर्ट ने दिया जांच का आदेश

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Allahabad High Court: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने हाल ही में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को यह जांच करने का आदेश दिया कि सात बैंकों ने यह जानते हुए भी एक कंपनी को कई ऋण कैसे स्वीकृत किए है। जबकि यह कंपनी पहले से ही डिफॉल्टर है। न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की खंडपीठ ने इसे “बेईमान व्यवसायी और बैंकों की स्पष्ट मिलीभगत का चौंकाने वाला मामला” कहा। कोर्ट ने कहा कि यूपी स्थित कंपनी सिंभावली शुगर्स को “जानबूझकर” सार्वजनिक धन का लगभग ₹1,300 करोड़ निकालने की अनुमति दी गई है।

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Allahabad High Court: लोन नियमों का नहीं किया पालन

कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा, “यहाँ बैंकों ने याचिकाकर्ता कंपनी को इस तथ्य को जानते हुए सैकड़ों करोड़ रुपये अग्रिम दिए थे कि वे पहले ही अन्य बैंकों द्वारा लिए गए ऋणों में चूक कर चुके हैं और उन्हें एन.पी.ए घोषित कर दिया गया है, फिर भी बैंक कई सौ करोड़ रुपये के ऋण स्वीकृत किए और ऋण अनिवार्य प्रक्रियाओं का पालन किए बिना वितरित किया गया था, जो बैंकों को ऋण वितरित करने से पहले लेना चाहिए”। कोर्ट ने पाया कि बैंकों ने “कंपनियों को ऋण देने के लिए आरबीआई के दिशानिर्देशों का पालन किए बिना और पर्याप्त सुरक्षा के बिना ऋण सुविधाएं प्रदान कीं और कुछ मामलों में प्रमोटरों द्वारा कई बैंकों को व्यक्तिगत गारंटी दी गई थी”।

Allahabad High Court: बैंको ने नहीं उठाया कदम

बता दें कि कंपनी के खाते को एनपीए घोषित करने के बाद भी बैंकों ने रकम वसूलने के लिए कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया। ये सात बैंक हैं भारतीय स्टेट बैंक, यूको बैंक, आईसीआईसीआई बैंक, ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स, पंजाब नेशनल बैंक, बैंक ऑफ इंडिया और बैंक ऑफ बड़ौदा। न्यायालय ने सिंभावली शुगर्स की याचिका पर सुनवाई करते हुए ऋणों पर ध्यान दिया, जिसमें एसबीआई के निपटान प्रस्ताव को अस्वीकार करने के फैसले को रद्द करने की मांग की गई थी।

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