New Delhi: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें महाराष्ट्र राज्य को अनुचित अपशिष्ट प्रबंधन के लिए पर्यावरणीय मुआवजे के रूप में ₹12,000 करोड़ का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था। महाराष्ट्र सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने जुर्माने की राशि का विरोध किया और अदालत को सूचित किया कि एनजीटी के समक्ष समीक्षा लंबित है। उन्होंने कहा, “इतने सारे शून्य हैं कि मैं जुर्माने गिन भी नहीं सकता।”
पक्ष को सुनने के बाद भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के साथ-साथ न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने याचिका पर नोटिस जारी किया और एनजीटी के आदेश पर रोक लगा दी। 10 सितंबर, 2022 को एनजीटी ने महाराष्ट्र सरकार को ठोस और तरल कचरे के अनुचित प्रबंधन के लिए पर्यावरणीय मुआवजे के रूप में ₹12,000 करोड़ का भुगतान करने का आदेश दिया था।
चेयरपर्सन जस्टिस आदर्श कुमार गोयल, जस्टिस सुधीर अग्रवाल और विशेषज्ञ सदस्य प्रोफेसर ए सेंथिल वेल की खंडपीठ ने कहा था कि अपशिष्ट प्रबंधन में कमियों के कारण पर्यावरण को हो रहे लगातार नुकसान के समाधान के लिए एनजीटी अधिनियम की धारा 15 के तहत मुआवजा आवश्यक था। यह आदेश अल्मित्रा एच पटेल बनाम भारत संघ एवं अन्य और पर्यावरण सुरक्षा बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार पारित किया गया था, जिसमें ट्रिब्यूनल को ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन मानदंडों के प्रवर्तन की निगरानी करने की आवश्यकता थी।
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