Delhi High Court: दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक केस की सुनवाई के दौरान यह स्पष्ट कर दिया है कि अगर पति और पत्नी की कमाई एक समान है तो महिला अंतरिम भरण-पोषण की अधिकारी नहीं हो सकती है। जस्टिस सुरेश कुमार कैत और नीना बंसल कृष्णा की बेंच ने यह टिप्पणी एक केस की सुनवाई के दौरान की। दोनों न्यायमूर्तियों ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम में भारतीय संविधान के अनुच्छेद-24 का मकसद यह है कि वैवाहिक मामले में पति-पत्नी को बाधाओं का सामना न करना पड़े। वैवाहिक केस में दोनों को वित्तीय बाधाओं से बचाना इसका मुख्य उद्देश्य है।
कोर्ट ने कहा कि अधिनियम को लेकर उनका कार्रवाई करने का इरादा नहीं है। मामले में कोर्ट पति और पत्नी की ओर से दायर अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। परिवार न्यायालय ने पति को बच्चे के भरण पोषण के लिए हर माह 40 हजार रुपये देने का निर्देश दिया था। लेकिन पत्नी के अनुरोध को भरण और पोषण के लिए मना कर दिया था। बता दे इनका विवाह 2014 में हुई थी और बेटे का जन्म 2016 में हुआ था। लेकिन दोनों साल 2020 में अलग हो गए थे।
इस मामले में पति ने कोर्ट से मांग की थी कि उसकी हर महीने भरण-पोषण की राशि को कम किया जाए लेकिन वहीं, पत्नी भरण-पोषण के लिए 2 लाख रुपये की मांग कर रही थी। पत्नी ने उच्च न्यायालय से डिमांड किया कि भरण पोषण की राशि को 40 हजार रुपये से बढ़ाकर 60 हजार रुपये तक किया जाए।
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