दिल्ली के अलग-अलग मुद्दों पर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उपराज्यपाल वीके सक्सेना के बीच तरकरार देखने को मिलती है। आपको बता दें कि दोनों के बीच टकराव का मामला सुप्रीम कोर्ट में है, जिसपर आज यानी गुरूवार (11 मई) को फैसला सुनाया जाएगा। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रीय राजधानी में प्रशासनिक सेवाओं पर नियंत्रण को लेकर केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच विवाद पर गुरुवार को अपना फैसला सुनाएगा। इस मामले में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी की दलील सुनने के बाद 18 जनवरी को फैसला सुरक्षित रख लिया था। गुरूवार को चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा यह फैसला सुनाए जाएगा।
दिल्ली सरकार ने दलील दी थी कि सुप्रीम कोर्ट ने साल 2018 में फैसला सुनाया था, जिसमें कहा गया कि भूमि और पुलिस जैसे कुछ मामलों को छोड़कर बाकी सभी मामलों में दिल्ली की चुनी हुई सरकार की सर्वोच्चता रहेगी। दिल्ली का प्रशासन चलाने के लिए आईएएस अधिकारियों पर राज्य सरकार का पूरा नियंत्रण ज़रूरी है।
क्या है पूरा मामला
सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच जजों की बेंच को यह मामला रेफर किया गया था। संवैधानिक बेंच को यह मामला 6 मई 2022 को रेफर किया गया था। सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस एन.वी. रमण की अगुवाई वाली बेंच ने कहा था कि जस्टिस चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली संवैधानिक बेंच मामले में उठे सवाल पर सुनवाई करेगी। सिर्फ सर्विसेज मामले में कंट्रोल किसका हो, इस मुद्दे पर उठे संवैधानिक सवाल को संवैधानिक बेंच के सामने रेफर करते हैं। यानी जस्टिस चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली संवैधानिक बेंच दिल्ली और केंद्र सरकार के बीच सर्विसेज का कंट्रोल किसके हाथ में हो, इस मामले में फैसला देंगे।
दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के क्षेत्रधिकार बंटे हुए हैं। दरअसल, राजधानी दिल्ली में फैसले लेने का अधिकार केवल दिल्ली सरकार पास ही नहीं बल्कि कुछ क्षेत्र ऐसे हैं, जिनमें केंद्र सरकार फैसले लेती है। आपको बता दें कि दिल्ली में भूमि और पुलिस के मामलों में फैसला लेने का अधिकार केंद्र सरकार के पास है। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने साल 2018 में फैसला सुनाया था कि दिल्ली के एलजी स्वतंत्र रूप से कोई फैसला नहीं लेंगे यदि दिल्ली सरकार के कानून या पॉलिसी में कोई भी अपवाद है तो राष्ट्रपति को रेफर करेंगे। राष्ट्रपति जो भी फैसला लेंगे, उस पर अमल करेंगे।
दो जजों के अलग-अलग मत
इस पूरे मसले पर 14 फरवरी 2019 में फैसला दिया गया था लेकिन दो जजों के अलग-अलग मत रहे। जस्टिस सीकरी ने माना था कि दिल्ली सरकार को अपने यहां काम कर रहे अफसरों पर नियंत्रण मिलना चाहिए। हालांकि, उन्होंने भी यही कहा कि जॉइंट सेक्रेट्री या उससे ऊपर के अधिकारियों पर केंद्र सरकार का नियंत्रण रहेगा। उनकी ट्रांसफर-पोस्टिंग उपराज्यपाल करेंगे। उससे नीचे के अधिकारियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग दिल्ली सरकार कर सकती है। लेकिन जस्टिस भूषण ने यह माना था कि दिल्ली एक केंद्रशासित क्षेत्र है. उसे केंद्र से भेजे गए अधिकारियों पर नियंत्रण नहीं मिल सकता।
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