Advertisement

जातीय जनगणना को लेकर बिहार में सियासत तेज, भाजपा के लिए कितना मुश्किल होगा काउंटर

Share
Advertisement

बिहार में जातीय जनगणना को लेकर सियासी हलचल तेज है। आरजेडी और जेडीयू का कहना है कि अगले कुछ दिनों में ही इस बारे में आगे की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी। वहीं हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट सोमवार को सुनवाई कर सकता है। बिहार सरकार का दावा है कि जातीय जनगणना का 80 फीसदी काम पूरा हो चुका है। इसके बाद हाई कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी। लेकिन पिछले हफ्ते कोर्ट ने रोक हटा दी। ऐसे में सरकार बाकी बचे काम को जल्द पूरा कर इसे अगले स्टेज पर ले जाना चाहती है। दरअसल, इस जनगणना के सियासी मायने हैं और आरजेडी-जेडीयू आम चुनाव से पहले अपने पक्ष में इसे सबसे बड़ा दांव मान रही है। वहीं कांग्रेस को भी लगता है कि यह दांव न सिर्फ बिहार, बल्कि उत्तर प्रदेश सहित कई दूसरे राज्यों के लिए बड़ा सियासी कदम होगा, जिसे बीजेपी के लिए काउंटर करना बिल्कुल आसान नहीं होगा।
दरअसल 2024 में होने वाले आम चुनाव से सालभर पहले विपक्षी दलों की यह पहल ओबीसी वोटों को प्रभावित करने की मंशा मानी जा रही है। पिछले कुछ दिनों से पूरे देश में अलग-अलग स्वरूप में ओबीसी को लेकर राजनीति तेज है। इससे केंद्र की बीजेपी सरकार पहले से ही दबाव में है। अगर बिहार में जातीय जनगणना हो गई, तो फिर इसका असर दूसरे राज्यों पर भी होगा।

बिहार में जातीय जनगणना के पीछे नीतीश कुमार की सियासी मजबूरी भी मानी जा रही है। राज्य में आरजेडी का मुस्लिम-यादव वोटबैंक बेहद मजबूत है। इनकी तादाद करीब 27 फीसदी है। ऐसे में अगर इसके साथ नीतीश कुमार अपने पारंपरिक ओबीसी वोट का कुछ हिस्सा जोड़ लेते हैं तभी महागठबंधन की असली ताकत सामने होगी। ऐसे में नीतीश अपने पिछले, अति पिछड़े वोट बैंक को जातीय जनगणना के जरिए लुभाने के प्रयास में है।
उधर, आरजेडी भी मुस्लिम, यादव से इतर अपने वोट बैंक को बढ़ाने की कोशिश कर रही है। हाई कोर्ट के फैसले के बाद तेजस्वी ने ट्वीट कर कहा- ‘हमारी सरकार के जाति आधारित सर्वे से प्रामाणिक, विश्वनीय और वैज्ञानिक आंकड़े प्राप्त होंगे। इससे अति पिछड़े, पिछड़े और सभी वर्गाें के गरीबों को सर्वाधिक लाभ होगा। हमारी मांग है कि केंद्र सरकार जातीय गणना करवाए।’

बताया जा रहा है कि जनगणना पूरा होने के बाद बिहार सरकार राज्य में ओबीसी के लिए आरक्षण में कोटा बढ़ाने की संभावना पर भी विचार कर सकती है। अभी तक आरक्षण में 50 प्रतिशत की सीमा इसलिए रखी गई है, क्योंकि अलग-अलग जातियों का कोई स्पष्ट आंकड़ा नहीं है। देश में 1931 के बाद जातीय जनगणना नहीं हुई है। महागठबंधन सरकार को लगता है कि कोटा बढ़ाने में ओबीसी लोगों को बड़ा समर्थन मिलेगा।

Advertisement

बता दें कि यूपीए सरकार ने 2011 में जाति जनगणना कराई थी। 2014-15 में इसके आंकड़े आने के बाद भी तब यूपीए और न बाद में एनडीए सरकार ने इसे जारी किया। कहा गया कि इसमें तकनीकी खामियां थी। इसके बाद 2017 में ओबीसी के बीच नए सिरे से वर्गी करने के लिए केंद्र सरकार ने रोहिणी कमीशन बनाई, जिसे तब 6 महीने के अंदर रिपोर्ट देने को कहा गया। लेकिन तब से लेकर अब तक मुद्दा भी ठंडा बस्ते है। जाति जनगणना के साथ उस रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की भी मांग तेज हो सकती है।

ये भी पढ़ें: खुशखबरी! बिहार को एक और वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेन की मिली सौगात

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *