किताबें झाँकती हैं बंद अलमारी के शीशों से, महीनों अब मुलाकातें नहीं होतीं…
गुलजार साहब की यह पंक्ति बिहार(Bihar) के राज्यपाल(Governor) द्वारा कही गई बात को सार्थक करती है। दरअसल पटना के एक होटल में आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि समाज में साहित्य पढ़ने वालों की संख्या कम हो रही है। उन्होंने माताओं से भी आह्वान किया कि वे अपने बच्चों से मातृभाषा में बात करें।
भाषा की विविधता से संपन्न है बिहार
आखर बिहार उत्सव के दौरान राज्यपाल ने कहा कि भाषा की विविधता को लेकर बिहार बहुत ही समृद्ध है। यहां पांच प्रमुख प्रकार की मातृ भाषाएं हैं। मातृ भाषाओं को संरक्षित रखने के लिए जरूरी है कि माताएं घर में अपने बच्चों से मातृभाषा में बातें करें। आजकल हिंदी समाचारों में अंग्रेजी शब्दों का अधिक प्रयोग हो रहा है। हम इस प्रकार अपनी भाषा को खत्म करेंगे तो आने वाली पीढ़ी को हम क्या साहित्य देंगे। घर में बच्चों को किताबें पढ़ने की आदत डालने के लिए किताबों को टेबल पर इधर-उधर रखें ताकि बच्चे घूमते फिरते किताबों को हाथ में उठाएं और कुछ पन्ने पढ़े।
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