‘दुखी हूं कि आलाकमान को मुझ पर भरोसा नहीं, जिस पर भरोसा हो उसे नेतृत्व सौंपे’- कैप्टन अमरिंदर सिंह

Captain Amarinder Singh

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चंडीगढ़: पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने थोड़ी देर पहले सूबे के राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित से मुलाक़ात कर CM पद से इस्तीफ़ा दे दिया है।

अमरिंदर सिंह के बेटे रनिंदर सिंह ने खुद ट्विटर पर इसकी जानकारी दी थी कि पिताजी राज्यपाल को इस्तीफा सौंपने जा रहे हैं।

उन्होंने न केवल मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा सौंपा बल्कि काउंसिल ऑफ़ मिनिस्टर्स यानी कैबिनेट से भी इस्तीफ़ा दे दिया है।

शनिवार शाम पांच बजे पंजाब के सभी कांग्रेस विधायकों की बैठक चंडीगढ़ के प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में रखी गई थी, लेकिन उससे कुछ मिनटों पहले ही कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपना इस्तीफ़ा सौंप दिया है।

इससे पहले आज सुबह पंजाब कांग्रेस के पूर्व प्रमुख सुनील जाखड़ ने ट्वीट करके ऐसे संकेत भी दे दिए थे कि कैबिनेट में कुछ बड़ा बदलाव होने जा रहा है।

उन्होंने ट्वीट किया था, “एक कठिन और जटिल समस्या को सिकंदर वाले समाधान का पंजाबी संस्करण इस्तेमाल करने के लिए श्री राहुल गांधी की प्रशंसा होनी चाहिए। इतना बड़ा साहसिक नेतृत्व निर्णय न केवल पंजाब कांग्रेस की उलझन सुलझाएगा बल्कि कांग्रेस कार्यकर्ताओं को भी रोमांचित करेगा लेकिन यह अकालियों की रीढ़ में कंपकंपी ज़रूर ला देगा।”

‘दुखी हूं कि आलाकमान को मुझ पर भरोसा नहीं, जिस पर भरोसा हो उसे नेतृत्व सौंपे

राजभवन से बाहर निकलने के बाद अमरिंदर सिंह ने पत्रकारों के सामने कहा कि उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष को सुबह ही सूचित कर दिया था कि वो अपना इस्तीफ़ा सौंपने जा रहे हैं।

उन्होंने कहा, “ये पहली दफा नहीं हुआ है, ये तीसरी बार है जब मेरे नेतृत्व पर संदेह किया गया है। मैं अपमानित महसूस कर रहा हूं और यही कारण है कि मैंने इस्तीफ़ा देने का फ़ैसला किया।”

कैप्टन ने आगे कहा, “मैंने अपना इस्तीफ़ा दे दिया है, अब आलाकमान जिसे चाहे प्रदेश का नेतृत्व सौंपे।”

हालांकि उन्होंने अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर कुछ नहीं कहा है। उन्होंने कहा कि मैं अपना सहयोगियों से बात करने के बाद ही इस पर कुछ कह सकूंगा और साथ ही मैं अभी कांग्रेस में ही हूं।

कैप्टन का राजनीतिक कद

अमरिंदर सिंह का राजनीतिक कद काफी बड़ा है। वो एक ऐसी सख्सियत हैं जो राजनीति के दिग्गज माने जाने वालों को शिकस्त दे चुके हैं।

2014 में जब ऐसी धारणा थी कि कांग्रेस के बड़े नेता लोकसभा चुनाव लड़ने से कतरा रहे थे, उस वक्त भी सोनिया गाँधी के कहने पर अमरिंदर ने ही अरुण जेटली के ख़िलाफ़ अमृतसर से लोकसभा चुनाव लड़ा था और अंततः जेटली को हराया।

इस चुनाव लड़ने के समय अमरिंदर पंजाब विधानसभा में विधायक थे।

2017 के विधानसभा चुनाव में कैप्टन अमरिंदर सिंह की अगुवाई में कांग्रेस ने खासा अच्छा प्रदर्शन किया था। कांग्रेस ने पंजाब में कुल 117 सीटों में से 77 सीटों पर जीत हासिल कर सत्ता में 10 साल बाद वापसी की थी।

अमरिंदर सिंह की यह जीत इस लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण थी कि 2014 में केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार बनने के बाद बीजेपी लगातार कई राज्यों में अपनी सरकार बनाती जा रही थी। इनमें हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड, असम, गुजरात, हिमाचल प्रदेश जैसे राज्य कई बड़े राज्य शामिल थे।

लेकिन पंजाब में कांग्रेस की वापसी कर अमरिंदर सिंह बीजेपी के विजय रथ को रोकने वाले गिनती के चंद नेताओं में शुमार हो गए।

वहीं जब 2019 के लोकसभा चुनाव में हर तरफ़ मोदी लहर थी। नतीजों में भी साफ़ दिखा कि जनादेश स्पष्ट तौर से बीजेपी को मिला। लेकिन मोदी लहर के बावजूद कांग्रेस ने पंजाब की 13 लोक सभा सीटों में से 8 सीटों पर जीत हासिल की। जिससे अमरिंदर का कद और ऊंचा हो गया।

सिद्धू से मतभेद

नवजोत सिंह सिद्धू और पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के बीच काफ़ी समय से विवाद चला आ रहा है। माना जाता है कि सिद्धू जब बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए थे तभी से इस टकराव की शुरुआत हो गई थी।

हालांकि, सिद्धू को कैप्टन सरकार में मंत्री पद भी दिया गया था लेकिन दोनों के बीच लगातार होतो तल्ख़ रिश्तों के बाद उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया था।

इसके बाद कैप्टन की नाराज़गी के बाद भी कांग्रेस ने सिद्धू को इसी साल जुलाई में प्रदेश अध्यक्ष का पद सौंपा था जिसके बाद दोनों के बीच एकबार फिर टकराव देखने को मिला। तब प्रदेश प्रभारी हरिश रावत ने समझा-बूझा कर मामले को रफा-दफा किया था।

साथ ही अमरिंदर को तीन बार दिल्ली भी बुलाया गया लेकिन मामला सुलझा नहीं।

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