रूस की जीत, भारत की ‘विजय’ !
युद्ध एक ऐसा शब्द है, जिसके जहन में आते ही आंखों में सिर्फ तबाही की तस्वीरें तैरती है. दुनिया का सर्वश्रेष्ठ तर्क भी युद्ध को सही नहीं ठहरा सकता. जब बात राष्ट्र और मानवता के बीच चयन की आ जाए तो हमेशा मानवता के साथ खड़ा होना चाहिए, लेकिन रूस यूक्रेन युद्ध में भारत यूक्रेन के साथ नहीं खड़ा है. अगर इसे राष्ट्र हित में देखे तो भारत के इस निर्णय से भविष्य में देश को मजबूती मिलेगी.
मानवता और राष्ट्र के बीच भारत का चुनाव
अब उन आधारों को देखते है, जिनके चलते भारत को मानवता और राष्ट्र के बीच में राष्ट्र को चुनना पड़ रहा है. भारत दो तरफ से दुश्मनों से घिरा हुआ है. अगर भारत को एक साथ पाकिस्तान और चीन से निपटना पड़े तो अमेरिका पर भरोसा किया जा सकता है ? क्या अमेरिका सीधे और खुले तौर पर भारत के साथ खड़ा हो सकता है ? यूक्रेन को उदाहरण मान लें तो सबसे पहले अमेरिका ने ही अपना दूतावास खाली किया था.
भारत और चीन विवाद में UNGC ने क्यों नहीं दिखाई थी रूस-यूक्रेन युद्ध जैसी तेजी ?
अब ज्यादा अतीत में जाने की जरूरत नहीं है, जब पिछले साल चीन ने भारत की सीमा पर 50 हजार से ज्यादा की फौज तैनात कर दी थी, क्या उस वक्त संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद महासभा और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन ने वैसी तेजी दिखाई थी, जैसी कि आज रूस के खिलाफ दिखती है. ये भी याद कर लीजिए कि तब भारत को पर्दे के पीछे से रूस से ही मदद मिली थी. यानि भारत के पास केवल रूस ही है जो भारत-चीन के मामलों में सकारात्मक भूमिका निभा सकता है.
भारत का परखा हुआ दोस्त है रूस
इतना ही नहीं, बीते कई दशकों पर निगाह डालकर देखिए तो पता चलेगा कि दर्जन भर से ज्यादा मौकों पर रूस ने वैश्विक स्तर पर भारत की लाज बचाई होगी. इसलिए अमेरिका की तुलना में रूस ज्यादा भरोसेमंद है और परखा हुआ दोस्त है. इस मामले में इस पहलू को भी देखिए कि यदि भारत रूस का साथ न दे तो रूस, चीन और पाकिस्तान का गठजोड़ बनने में कितनी देर लगेगी. ऐसे गठजोड़ का भारत के पास कोई तोड़ नहीं होगा और देश हित के लिए सही नहीं होगा.
बीच मझदार में छोड़ने वाला सुपरपावर
अब ऐसे हालात में यह मानना बचकाना होगा कि रूस के हाथ खींच लेने पर अमेरिका तत्काल इसकी भरपाई कर देगा. अभी ज्यादा पीछे जाने की जरूरत नहीं है. अफगानिस्तान का उदाहरण ज्यादा पुराना नहीं है कि अमेरिका किस तरह और कितनी आसानी से निकल भागता है. अब यूक्रेन को देख लीजिए, युद्ध के सप्ताह बीत जाने के बाद भी कितनी अमेरिकी सहायता मिलती है. आज UNHRC में यूक्रेन को लेकर वोटिंग हुई. जिसमें भारत ने दूरी बनाए रखी.
अपने हितों को देखने वाला देश अमेरिका
अब तक अमेरिका के बारे में जितना पढ़ा और सुना, उससे एक बात ही साफगोई से कही जा सकती है कि अपने हितों के लिए न युद्ध से परहेज करता और न ही दोस्त बदलने से. अमेरिका जैसे देश की न दोस्ती अच्छी है और न दुश्मनी. इसलिए भारत के अब तक के रुख को देखें तो वो हर तरह से सही और संतुलित है. भारत ने यूक्रेन को मानवीय सहायता उपलब्ध कराई है. दोनों पक्षों से शांति स्थापित करने का अनुरोध भी किया है. यूक्रेन के विपक्ष में वैश्विक मंचों पर कोई वोट नहीं दिया है. भारत का रुख इसलिए भी सराहनीय है कि अतीत में जब भी भारत को यूक्रेन की जरूरत पड़ी है, वह हमेशा विरोधी खेमे में ही रहा है.
नितिन (रवि) उपाध्याय