करवा चौथ का व्रत पूरे भारतवर्ष में सुहागिन स्त्रियों द्वारा किया जाता है। हिंदू धर्म के अनुसार, इस दिन महिलाएं अखण्ड सौभाग्य के लिए माँ पार्वती की पूजा करती हैं। करवा चौथ (Karwa Chauth 2022) हर साल कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन को कर्क चतुर्थी भी कहा जाता है। विवाहित महिलाएं इस दिन निर्जला व्रत करती हैं और रात के समय चंन्द्रमा को अर्घ्य देकर व्रत खोलती हैं।
करवा चौथ को लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं। बताया जाता है कि जब यमराज सत्यवान के प्राण लेने धरती पर आए तो सावित्री ने उनसे अपने पति के प्राणों की भीख मांगी और जोर-जोर से विलाप करने लगी। लेकिन यमराज ने उनकी बात नहीं मानी। जिसके बाद सावित्री ने अन्न-जल सब त्याग दिया। सावित्री की इस हालत को देखकर यमराज को उनपर दया आ गई। यमराज ने सावित्री से कहा कि वह अपने पति के जीवन के बजाय कोई दूसरा वर मांग ले।
इसपर सावित्री ने कहा कि मुझे कई बच्चों की मां बनने का वरदान दीजिए। जिसके बाद यमराज ने उन्हें यह वर दे दिया। सावित्री पतिव्रता होने के नाते किसी दूसरे पुरुष के बारे में सोच भी नहीं सकती थी। वचनबद्ध होने के कारण यमराज को सत्यवान के प्राण लौटाने पड़े। जिसके बाद से ही सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं।
करवा चौथ की एक और कहानी द्रौपदी से जुड़ी बताई जाती है। कहा जाता है कि जब अर्जुन नीलगिरी की पहाड़ियों पर तपस्या के लिए गए थे तो बाकी चार पांडवों को बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ा। जिसके बाद द्रौपदी ने अपने पतियों के सम्मान की रक्षा के लिए श्रीकृष्ण को अपनी समस्या बताई। श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को करवा चौथ का व्रत रखने सलाह दी। जिसके बाद द्रौपदी ने निर्जला व्रत रखा और भगवान शिव और मां पार्वती की अराधना की। द्रौपदी के इस कठिन तप से अर्जुन सुरक्षित लौट आए और बाकी पांडवों के मान-सम्मान की रक्षा हो गई।
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एक साहूकार के सात लड़के और एक लड़की थी। एक बार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को सेठानी सहित उसकी सातों बहुएं और उसकी बेटी ने भी करवा चौथ का व्रत रखा। रात्रि के समय जब साहूकार के सभी लड़के भोजन करने बैठे तो उन्होंने अपनी बहन से भी भोजन कर लेने को कहा। इस पर बहन ने कहा अभी चांद नहीं निकला है। चांद के निकलने पर उसे अर्घ्य देकर ही मैं भोजन करूंगी। चूंकि वो अपने भाइयों की बहुत प्यारी थी इसलिए भाइयों को अपनी बहन का भूख से व्याकुल चेहरा देख बेहद दुख हुआ।
साहूकार के बेटे नगर के बाहर चले गए और वहां एक पेड़ पर चढ़कर अग्नि जला दी। घर वापस आकर उन्होंने अपनी बहन से कहा- देखो बहन, चांद निकल आया है। अब तुम चांद को अर्घ्य देकर भोजन ग्रहण करो। साहूकार की बेटी ने अपनी भाभियों से कहा- देखो, चांद निकल आया है तुम लोग भी अर्घ्य देकर भोजन कर लो। ननद की बात सुनकर भाभियों ने कहा- बहन अभी चांद नहीं निकला है, तुम्हारे भाई धोखे से अग्नि जलाकर उसके प्रकाश को चांद के रूप में तुम्हें दिखा रहे हैं।
इस प्रकार उनकी बहन का व्रत टूट गया और उसके पति को बीमारी ने घेर लिया। साहूकार की बेटी को जब अपने किए हुए दोषों का पता लगा तो उसे बहुत पश्चाताप हुआ। उसने गणेश जी से क्षमा प्रार्थना की और फिर से विधि-विधान पूर्वक चतुर्थी का व्रत शुरू कर दिया। उसने उपस्थित सभी लोगों का श्रद्धानुसार आदर किया और तदुपरांत उनसे आशीर्वाद ग्रहण किया। इस प्रकार उस लड़की के श्रद्धा-भक्ति को देखकर भगवान गणेश जी प्रसन्न हो गए और उसके पति को जीवनदान दिया। तभी से करवा चौथ व्रत का चलन शुरू हुआ।
साल 2022 में करवा चौथ व्रत 13 अक्टूबर को सुबह 1.59 बजे से लेकर 14 अक्टूबर को सुबह 3:08 बजे तक है।
करवा चौथ के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। इस दिन स्वच्छ कपड़ों को धारण करें। उसके बाद तैयार होकर करवा चौथ के व्रत का संकल्प लें। व्रत का संकल्प लेने के बाद ‘मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये’ मंत्र का जाप करें।
करवा चौथ से जुड़ी अवाश्यक पूजन साम्रगी को एकत्र कर लें। करवा चौथ की पूजा के दौरान मां पार्वती को श्रृंगार का सामान चढ़ाएं और सुंदर वस्त्रों और श्रृंगार की चीजों से उन्हें सजाएं। फिर पूरे मन से भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना करें। करवा चौथ पर 13 बिंदी रखें और गेहूं या चावल के 13 दाने हाथ में लेकर कथा सुनें।
कथा सुनने के बाद बड़ों का पैर छूकर आशीर्वाद लें। गेहूं के तेरह दाने और पानी का लोटा या टोंटीदार करवा अलग रख लें। रात्रि में चन्द्रमा निकलने के बाद छलनी की ओट से चन्द्रमा को देखें और चन्द्रमा को अर्घ्य दें। इसके बाद पति का आशीर्वाद लें। पूजा खत्म होने के बाद पति के हाथ से पानी पीकर या निवाला खाकर अपना व्रत खोलें। इस तरह पूर्ण विधि-विधान से व्रत करने से व्रत का पूरा फल प्राप्त होता है।
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