राजस्थान पूरे विश्व में वीरो की भूमि , देवी देवताओं की भूमि, सूफी संतो की भूमि के नाम से मशहूर है । यह ऐसी कर्म भूमि है यहां पर कई वीर सपूतों ने और देवी देवताओं ने जन्म दिया । यही कारण है कि राजस्थान में बीकानेर को छोटी काशी के नाम से जाना जाता है। हमारे देश में कई प्रसिद्ध मंदिर है । जहां लोग विदेशों से भी दर्शन करने के लिए आते हैं । इन मंदिर का इतिहास बहुत ही रोचक होता है । ये मंदिर राजस्थान के बीकानेर शहर से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है । जिसका नाम देशनोक हैं.
देशनोक मंदिर में करणी माता की पूजा की जाती हैं । यहां रहने वाले लोगों का मानना है कि करणी माता लोगों की रक्षा करने वाली देवी दुर्गा का अवतार हैं । करणी माता मंदिर का निर्माण 20वीं शताब्दी की शुरुआत में बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह द्वारा किया गया था । मंदिर की पूरी संरचना संगमरमर से बनी है और इसकी वास्तुकला मुगल शैली से मिलती जुलती है। बीकानेर की करणी माता की मूर्ति मंदिर के अंदर गर्भगृह के भीतर विराजमान है । जिसमें वह एक हाथ में त्रिशूल धारण किए हुए हैं । देवी की मूर्ति के साथ उनकी बहनों की मूर्ति भी दोनों ओर है । आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इस मंदिर में करीब 25 हजार से भी ज्यादा चूहे मौजूद हैं । जिनको पूजा के बाद भोग लगया जाता है । जिनमें कुछ सफेद चूहे भी हैं । बीकानेर में करणी माता का मंदिर पर्यटकों के बीच काफी मशहूर है ।
माता करणी के इस मंदिर में कई सारे चूहों को विभिन्न तरह के पकवानों का भोग लगावाया जाता है । बाद में चूहों द्वारा लगाए गए भोग के झूठे प्रसाद को भक्तजनों के बीच बाँटा जाता है । मान्यता है कि माता के मंदिर में जो भी आता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं । माता को चढ़ाए जाने वाले प्रसाद को यहां पर चूहे भोग लगाते हैं और लोग उसे प्रसाद मान कर ग्रहण करते हैं । चूहों के लिए लोग यहां पर एक बड़ी सी परात में खाने के लिए मूंगफली और दूध आदि देते हैं।
माता को चढ़ने वाले प्रसाद पर पहला अधिकार इन्हीं चूहों को होता है । करणी माता का अवतरण के बारे में लोगों की मान्यता है कि लगभग साढ़े छः सौ साल पहले माता ने एक चारण परिवार में बालिका रिधु बाई के रूप में जन्म लिया था। माता के मंदिर में पूजा अर्चना भी चारण लोगों द्वारा ही की जाती है । मान्यता है कि किसी भी चारण की मृत्यु के पश्चात उसका पुर्नजन्म काबा यानी चूहे के रूप में होता है । फिर बाद में वही काबा अपनी मृत्यु के बाद किसी चारण परिवार में जन्म लेता है । यही कारण है कि काबा या फिर कहें चूहों को मंदिर के भीतर काफी आदर के साथ देखा जाता है । मंदिर में चूहे होने के पीछे की मान्यता ये है कि, अगर कोई देपावत चारण मरता है तो वो करणी माता के मंदिर में चूहा बनकर जन्म लेता है । मंदिर के नियम के हिसाब से अगर किसी भक्त का पैर किसी भी चूहे के ऊपर पड़ गया और वह मर गया तो यह एक घोर पाप माना जाता है । मंदिर आने वाले भक्तोंा को घसीटते हुए चलना होता है तब भक्त करणी माता की मूर्ति तक पहुँच पाते हैं । चूहों के मरने परपाप का भुगतान करने के रूप मे अपराधी को एक सोने या चांदी के चूहे की मूर्ति खरीद कर मंदिर में ही रखनी पड़ती है । तब उसे पाप से मुक्त माना जाता है ।
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