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Basant Panchami 2022: 5 फरवरी को है वसंत पंचमी का त्यौहार, जानें क्यों की जाती है मां सरस्वती की अराधना

वसंत पंचमी
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वसंत पंचमी के त्यौहार का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है। इस दिन विद्या की देवी सरस्वती मां की पूजा की जाती है। इस त्यौहार को पूर्वी भारत, पश्चिमोत्तर बांग्लादेश, नेपाल और कई राज्यों में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन लोग पीले वस्त्र धारण करते हैं। शास्त्रों में वसंत पंचमी का उल्लेख ऋषि पंचमी के नाम से किया गया है। पुराणों और शास्त्रों में इसका उल्लेख अलग- अलग तरीके से किया गया है।

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वसंत पंचमी की कथा

उपनिषदों की कथा के अनुसार, सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान शिव की आज्ञा से भगवान ब्रह्मा ने जीवों, खासतौर पर मनुष्य योनि की रचना की। लेकिन अपनी संरचना से वे संतुष्ट नहीं थे, उन्हें लगता था कि कुछ कमी रह गई है। जिसके कारण चारों ओर मौन छाया रहता है। हालांकि उपनिषद व पुराण ऋषियों का अपना-अपना अनुभव है। अगर यह हमारे पवित्र ग्रंथों से मेल नहीं खाता तो यह मान्य नहीं है।

तब ब्रह्मा जी ने इस समस्या के निवारण के लिए अपने कमण्डल से जल अपनी हथेली में लेकर संकल्प स्वरूप उस जल को छिड़ककर भगवान श्री विष्णु की स्तुति करनी आरम्भ की। ब्रम्हा जी के किये स्तुति को सुनकर भगवान विष्णु तत्काल ही उनके सम्मुख प्रकट हो गए और उनकी समस्या जानकर भगवान विष्णु ने आदिशक्ति दुर्गा माता का आह्वाहन किया। विष्णु जी के द्वारा आह्वाहन होने के कारण भगवती दुर्गा वहां तुरंत ही प्रकट हो गयीं। तब ब्रम्हा एवं विष्णु जी ने उन्हें इस संकट को दूर करने का निवेदन किया।

ब्रम्हा जी तथा विष्णु जी की बातों को सुनने के बाद उसी क्षण आदिशक्ति दुर्गा माता के शरीर से स्वेत रंग की एक तेज निकली और वह तेज एक दिव्य नारी के रूप में बदल गई। यह स्वरूप एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री का था, जिनके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी।

आदिशक्ति श्री दुर्गा के शरीर से उत्पन्न तेज से प्रकट होते ही उस देवी ने वीणा का मधुरनाद किया। इससे संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया। पवन चलने से सरसराहट होने लगी। तब सभी देवताओं ने शब्द और रस का संचार कर देने वाली उस देवी को वाणी की अधिष्ठात्री देवी “सरस्वती” कहा।

फिर आदिशक्ति भगवती दुर्गा ने ब्रम्हा जी से कहा कि मेरे तेज से उत्पन्न हुई ये देवी सरस्वती आपकी पत्नी बनेगी, जैसे लक्ष्मी श्री विष्णु की शक्ति हैं, पार्वती महादेव शिव की शक्ति हैं उसी प्रकार ये सरस्वती देवी ही आपकी शक्ति होंगी। ऐसा कह कर आदिशक्ति श्री दुर्गा सब देवताओं के देखते – देखते वहीं अंतर्धान हो गयीं। इसके बाद सभी देवता सृष्टि के संचालन में संलग्न हो गए।

सरस्वती को वागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। ये विद्या और बुद्धि प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी हैं। बसन्त पंचमी के दिन को इनके प्रकटोत्सव के रूप में भी मनाते हैं। ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है-

प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु।

अर्थात ये परम चेतना हैं। सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं। हममें जो आचार और मेधा है उसका आधार भगवती सरस्वती ही हैं। इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है। पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण ने सरस्वती से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया था कि वसंत पंचमी के दिन तुम्हारी भी आराधना की जाएगी और तभी से इस वरदान के फलस्वरूप भारत देश में वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की भी पूजा होने लगी जो कि आज तक जारी है।

Photo : Magicpin

कैसे करें मां सरस्वती की पूजा

  • इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और पिले वस्त्र धारण करें।
  • शुभ मुहूर्त में किसी शांत स्थान या मंदिर में पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें।
  • दीप-धूप जलाएं और पीले पुष्प, पीले मिष्ठान अर्पित करें।
  • शिक्षा से संबंधित चीजें जैसे कॉपी, किताब और कलम आदि पर रोली से तिलक करके अक्षत चढ़ाकर मां सरस्वती के समक्ष रखें।
  • जो लोग संगीत प्रेमी हो उन्हें इस दिन वाद्य यंत्रों की पूजा भी करनी चाहिए।
  • अपने सामने लकड़ी के एक बाजोट पर सफेद वस्त्र को बिछाकर उस पर मां सरस्वती के चित्र को स्थापित करें।
  • बाजोट पर एक थाली में कुमकुम या केसर से रंगे हुए चावलों को रख लें।
  • इन चावलों पर प्राण-प्रतिष्ठित एवं चेतनायुक्त शुभ मुहूर्त में सिद्ध किया हुआ सरस्वती यंत्र स्थापित करें।

इसके पश्चात् सरस्वती को पंचामृत से स्थान करवाएं। सबसे पहले दूध से स्नान करवाएं। उसके बाद दही से, फिर घी से और इसके बाद शक्कर और शहद से स्नान करायें। केसर या कुमकुम से यंत्र तथा चित्र पर तिलक करें। इसके बाद दूध से बने हुए नैवेघ का भोग अर्पित करें। अब अपनी आंखें बंद करके मां सरस्वती का ध्यान करें। उनके मंत्रों का 11 बार जाप करें।

माँ सरस्वती की पूजा मंत्र

ॐ ऐं सरस्वत्यै ऐं नमः।

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महासरस्वती देव्यै नमः।

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं वीणा पुस्तक धारिणीम् मम् भय निवारय निवारय अभयम् देहि देहि स्वाहा।

ऐं नमः भगवति वद वद वाग्देवि स्वाहा।

ॐ ह्रीं ऐं ह्रीं सरस्वत्यै नमः।

वसंत पंचमी का शुभ मुहूर्त

पंचमी तिथि प्रारंभ- 5 फरवरी सुबह 3 बजकर 48 मिनट से शुरू होकर 6 फरवरी सुबह 3 बजकर 46 मिनट तक रहेगा।

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