वैशाख माह की पूर्णिमा को भगवान बुद्ध (Lord Budhha) का जन्म हुआ था। इसलिए इसे बुद्ध पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस बार बुद्ध पूर्णिमा (Buddha Purnima 2022) 16 मई को मनाई जा रही है। बौद्ध धर्म एक प्राचीन भारतीय धर्म (Indian Religion) है। यह भारत की श्रमण परम्परा से निकला धर्म और दर्शन है। बौद्ध धर्म की स्थापना तथागत भगवान बुद्ध ने करीब 2600 वर्ष पहले की थी। बुद्ध की जन्म-मृत्यु “ईसा पूर्व 536 – ईसा पूर्व 483” मानी जाती है।
लुम्बिनी
गौतम बुद्ध का जन्म यहीं हुआ था। यहां के प्राचीन विहार नष्ट हो चुके हैं। केवल अशोक का एक स्तम्भ है, जिस पर खुदा है- ‘भगवान् बुद्ध का जन्म यहा हुआ था।’ इस स्तम्भ के अतिरिक्त एक समाधि स्तूप भी है, जिसमें बुद्ध की एक मूर्ति है। नेपाल सरकार द्वारा निर्मित दो स्तूप और हैं।
बोधगया
यहां बुद्ध ने ‘बोध’ प्राप्त किया था। भारत के बिहार में स्थित गया स्टेशन से यह स्थान 7 मील दूर है। यहां महात्मा बुद्ध ने बोधि वृक्ष के तले निर्वाण प्राप्त करा था। गौतम बुद्ध को जिस पीपल के वृक्ष के नीच तपस्या करते हुए ज्ञान मिला था, उस पीपल का वंश-वृक्ष आज भी उसी जगह पर मौजूद है।
सारनाथ
बनारस छावनी स्टेशन से 5 मील, बनारस-सिटी स्टेशन से 3 मील और सड़क मार्ग से सारनाथ 4 मील पड़ता है। यह बौद्ध-तीर्थ है। भगवान बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश यहीं दिया था। यहीं से उन्होंने धर्मचक्र प्रवर्तन प्रारंभ किया था। सारनाथ में बौद्ध-धर्मशाला है।
कुशीनगर
गोरखपुर जिले में कसिया नामक स्थान ही प्राचीन कुशीनगर है। यहां खुदाई से निकली मूर्तियों के अतिरिक्त माथाकुंवर का कोटा ‘परिनिर्वाण स्तूप’ तथा ‘ तथा ‘विहार स्तूप’ दर्शनीय हैं। 80 वर्ष की अवस्था में बुद्ध ने दो साल वृक्षों के मध्य यहां महापरिनिर्वाण प्राप्त किया था। यह प्रसिद्ध बौद्ध तीर्थ है।
सांची का स्तूप
सांची का स्तूप भारत के मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से लगभग 52 किलोमीटर दूर स्थित है। सांची स्तूप एक विशाल अर्ध-परिपत्र, गुंबद के आकार का कक्ष है। ये स्तूप विशाल अर्ध गोलाकार गुम्बद हैं जिनमें एक केन्द्रीय कक्ष है और इस कक्ष में महात्मा बुद्ध के अवशेष रखे गए थे। यह सम्राट अशोक की विरासत है, चूंकि वह बौद्ध धर्म को मान चुके थे, इसलिए सांची स्तूप को बौद्ध धर्म से जोड़कर देखा जाता है। सांची का स्तूप भारत में सबसे पुराने पत्थर से बनी इमारतों में से एक है। यूनेस्को ने 1989 में इसे विश्व विरासत स्थल घोषित किया था।
श्रावस्ती का स्तूप
श्रावस्ती बौद्ध एवं जैन दोनों का तीर्थ है। यहां बुद्ध ने चमत्कार दिखाया था और दीर्घकाल तक श्रावस्ती में रहे थे। अब यहां बौद्ध बौद्ध धर्मशाला है और बौद्धमठ भी है। भगवान बुद्ध का मंदिर भी है।
पेशावर
पश्चिमी पाकिस्तान में प्रसिद्ध नगर है। यह स्तूप सम्राट कनिष्क ने बनवाया था। यहां सबसे बड़े और ऊंचे स्तूप के नीचे से बुद्ध भगवान की अस्थियां खुदाई में निकलीं।
कौशाम्बी
इलाहाबाद जिले में भरवारी स्टेशन से 16 मील पर स्थित इस स्तूप के नीचे बुद्ध भगवान के केश तथा नख सुरक्षित हैं।
चांपानेर (पावागढ़)
पश्चिम रेलवे की मुंबई-दिल्ली लाइन में बड़ौदा से 23 मील आगे चांपानेर रोड स्टेशन है। चांपानेर रोड से 12 मील पर पावागढ़ स्टेशन है। इस स्टेशन से पावागढ़ बस्ती लगभग एक मील दूर है। बड़ौदा या गोधरा से पावागढ़ तक मोटर-बस द्वारा भी आ सकते हैं। पावागढ़ में प्रसिद्ध बौद्ध स्तूप हैं।
बामियान
अफगानिस्तान में बामियान क्षेत्र बौद्ध धर्म प्रचार का प्रमुख केंद्र था। बौद्ध काल में हिंदू कुश पर्वत से लेकर कंदहार तक अनेक स्तूप थे।
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