Election: झारखंड में चुनाव की तैयारी शुरु, आदिवासी बहुल क्षेत्रों के मुख्य मुद्दों पर चर्चा
झारखंड में 2024 में होने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में कई मुद्दे चर्चा में रहेंगे, जिसमें आदिवासी बहुल क्षेत्रों में डायन हत्या, मानव तस्करी और पलायन सबसे बड़े मुद्दे हैं।
अनुसूचित जाति और जनजाति को पहले ही सीट आरक्षित
झारखंड में अगले वर्ष लोकसभा और विधानसभा चुनाव होंगे। इन चुनावों से पहले राजनीतिक गतिविधियां बढ़ गई हैं। 14 लोकसभा सीटों में से छह अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों के लिए आरक्षित हैं। पश्चिमी सिंहभूम (चाईबासा), लोहरदगा, दुमका, खूंटी और राजमहल अनुसूचित जाति के लिए हैं, जबकि पलामू लोकसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए है। पलायन, अंधवश्विास, डायन हत्या और ह्यूमन ट्रैफिकिंग संसदीय क्षेत्रों की संख्या दो-चार हो गई है। इन क्षेत्रों में आजादी के बाद भी औद्योगीकरण नहीं हुआ। उन्हें उच्च और तकनीकी शिक्षा नहीं मिली है। सिंचाई का मूल संसाधनों का विवाद अभी भी जारी है। ये इलाके भी नक्सली समस्या से पीड़ित रहे हैं। ये मुद्दे माना जा रहा है कि आगामी चुनाव में शासन करने वाले हैं।
ग्राउंड रिएलिटी को समझने का प्रयास
अनुसूचित जाति और जनजाति के सदस्यों को संविधान के अनुच्छेद-330 में सीट दी गई हैं। उनकी देश के विकास में भागीदारी सुनिश्चित करना इसका उद्देश्य है। विकास आरक्षित क्षेत्र से सीधा संबंध है। आरक्षित क्षेत्र का विकास राष्ट्रनिर्माण में भागीदारी सुनिश्चित करेगा। अनुच्छेद-342 के तहत किसी विशिष्ट जनजाति वर्ग में शामिल करने के लिए सूची इसमें शामिल हैं, अनुच्छेद-330 के तहत देश में कुल 47 संसदीय सीटें हैं। झारखंड में पांच सीटें हैं। इन सीटों के ग्राउंड रिएलिटी को समझने के लिए, यहां उद्योग, रोजगार, कृषि और शिक्षा के संसाधनों की वास्तविकता को जानना महत्वपूर्ण है। यदि इन सब बातों पर विचार किया जाए तो न तो औद्योगिक विकास होगा और न ही शिक्षा क्षेत्र में नए संस्थान बनेंगे।
दुमका और साहिबगंज, मुंडा बहुल खूंटी, हो और संताल बहुल पश्चिमी सिंहभूम, और उरांव बहुल लोहरदगा। झारखंड में संताल, मुंडा, उरांव और हो बहुसंख्यक जनजाति हैं, लेकिन इनके साथ अन्य लोग भी रहते हैं। यह प्रत्येक क्षेत्र, राज्य और देश के विकास के लिए बनाया गया है।