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अपर्णा यादव: मुलायम परिवार की छोटी पुत्रवधू के BJP में शामिल होने की कहानी

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मुलायम सिंह यादव की दूसरी बहू अपर्णा यादव ने आख़िरकार भारतीय जनता पार्टी का साथ चुन लिया।

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पिछले हफ्ते लखनऊ में आईपीएस अधिकारी असीम अरुण के साथ उनकी भी भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने की ख़बरें थीं, लेकिन तब अपर्णा यादव के नज़दीकी लोगों ने इनकार कर दिया था। लेकिन उनकी बातचीत भारतीय जनता पार्टी से जारी थी, इसमें किसी को शक़ शुबहा नहीं था, इसके पीछे महत्वपूर्ण बात ये है क्योंकि अपर्णा यादव जिस लखनऊ कैंट सीट से टिकट की दावेदार हैं वहां की उम्मीदवार रही रीता बहुगुणा जोशी की पार्टी से नाराज़गी की ख़बरें लगातार मीडिया में आ रही थीं।

अपर्णा योगी में कितनी राजनीतिक नजदीकियां

बीजेपी में अपर्णा यादव

हालांकि अपर्णा यादव की भारतीय जनता पार्टी और राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की नज़दीकी की चर्चा पहले भी होती रही हैं।

31 मार्च, 2017 को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपर्णा की सरोजनीनगर स्थित गौशाला पहुंचे थे। तब मीडिया ने अपर्णा से सवाल किया था कि क्या वे बीजेपी में शामिल हो सकती हैं, तब उन्होंने कहा था, “हमारे बड़े बुज़ुर्ग लगातार कहते रहे हैं कि वर्तमान में हम जो भी करें अच्छे से करें, और भविष्य की बातों को भविष्य के गर्भ में छोड़ दें। भविष्य में जो भी होना है, जो भी हो जैसा भी हो, वो तो भविष्य में ही होगा।”

लेकिन पांच साल बाद ही सही, अपर्णा की कही हुई ये बात आखिरकार सच साबित हो गई। अपर्णा अपने अच्छे के लिए भारतीय जनता पार्टी में पहुंच गई हैं। दरअसल अपर्णा यादव के बीजेपी में शामिल होने की एक अहम वजह लखनऊ कैंट विधानसभा सीट भी है, जहां से समाजवादी पार्टी की टिकट पर अपर्णा यादव 2017 का विधानसभा चुनाव बीजेपी की उम्मीदवार रीता बहुगुणा जोशी से हार गई थीं। उधर इस बार रीता बहुगुणा जोशी अपने बेटे को इसी सीट से उम्मीदवार बनाने की मांग कर रही हैं, जिसके लिए ख़ुद के इस्तीफ़े की पेशकश भी कर चुकी हैं।

क्यों है लखनऊ कैंट सीट इतनी महत्वपूर्ण

दूसरी ओर अपर्णा यादव भी इस सीट को लेकर अपनी दावेदारी मज़बूती से रखती आई हैं। क्योंकि इस सीट से अपर्णा यादव के लगाव का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब साल 2017 में अखिलेश यादव ने पिता मुलायम सिंह यादव और चाचा शिवपाल सिंह यादव से अलग रास्ता लिया तो भी उन्होंने लखनऊ कैंट से अपर्णा यादव को ही उम्मीदवार बनाए रखा था। तब बातें थीं कि मुलायम सिंह यादव ने उन्हें उम्मीदवार बनाने का फ़ैसला लिया था और पिता के प्रति नरमी दिखाते हुए अखिलेश ने अपने छोटे भाई की पत्नी का टिकट बनाए रखा था। यह दौर तब था जब एक ही घर में रहने के बावजूद मुलायम सिंह यादव के दोनों ही बेटों के आपसी रिश्ते बहुत सहज नहीं माने जाते थे।

अखिलेश ने तब ना केवल अपने घर की बहू को टिकट दिया था बल्कि उनके क्षेत्र में चुनाव प्रचार भी किया, हालांकि इन सबके बाद भी अपर्णा यादव चुनाव लगभग 34 हज़ार वोटों से हार गई थीं। लेकिन 2022 के चुनाव के मद्देनजर समाजवादी पार्टी के अंदर भी उनकी दावेदारी इस बार मज़बूत नहीं मानी जा रही थी।

सपा के पास है मजबूत दावेदार

पार्टी के अंदरुनी सूत्रों के अनुसार लखनऊ कैंट सीट से इलाके के स्थानीय पार्षद राजू गांधी का दावा इस सीट पर अपर्णा यादव से कहीं ज़्यादा मज़बूत है और दावेदारी मजबूत होने पर बहुत संभव है कि पार्टी उन्हें ही अपना उम्मीदवार बनाए। हालांकि पिछले नौ-दस सालों से अपर्णा इसी इलाके में जीव आश्रय नामक एनजीओ चला रही हैं।

अपर्णा यादव

NGO की मदद से गाय, भैंस और कुत्तों को कान्हा उपवन ले जाया जाता है और वहां पर उनकी देखभाल होती है। लेकिन उनकी इस सक्रियता से वह राजनीतिक तौर पर मज़बूत हुई हों, यह बात काफी भरोसे से नहीं कही जा सकती। क्योंकि अपर्णा यादव की लोकप्रियता, मुलायम सिंह की छोटी बहू के रूप में अधिक है।

न सपा कार्यकर्ता होंगे नाराज, न बीजेपी में कोई ख़ास खुशी

राज्य की राजनीति पर नज़र रखने वाले जानकारों की बात माने तो, “आप कह सकते हैं कि अपर्णा यादव के बीजेपी में जाने से समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता भी नाराज़ नहीं होंगे और बीजेपी के कार्यकर्ता भी उतने खुश नहीं होंगे। क्योंकि कैंट की सीट पर पहले से ही बीजेपी के पास दो मज़बूत उम्मीदवार हैं, एक तो रीता बहुगुणा जोशी अपने बेटे के लिए टिकट मांग रही हैं और राज्य के उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा की सीट भी यही बनती है।”

वैसे यहां पर एक औऱ दिलचस्प बात यह भी है कि समाजवादी पार्टी के टिकट पर यहां से अपर्णा यादव के लिए चुनाव जीतना शायद मुश्किल होता, लेकिन बीजेपी के टिकट पर वह विधानसभा पहुंचने के अपने सपने को शायद साकार कर सकती हैं।

समर्थन का गणित

3.15 लाख वोटरों वाली इस सीट पर 60 हज़ार ब्राह्मण हैं, 50 हज़ार दलित, 40 हज़ार वैश्य और 30 हज़ार पिछड़े वर्ग के मतदाता शामिल हैं। दिलचस्प ये भी है कि इस सीट से समाजवादी पार्टी ने कभी चुनाव भी नहीं जीता है और यह बीजेपी का गढ़ माने जाने वाली सीट है। इस लिहाज से देखा जाए तो अपर्णा यादव के बीजेपी में शामिल होने से अपर्णा यादव को ज़्यादा फ़ायदा होता दिख रहा है।

बीजेपी को उनसे क्या फ़ायदा होगा, इस बारे में जानकार बताते हैं, “बीजेपी के अंदर इस बात को महसूस किया गया है कि शिवपाल यादव के साथ समझौता नहीं करने की जो ग़लती हुई है, उसकी भरपाई होनी चाहिए और इसी वजह से अपर्णा को शामिल किया गया है। वोटों की राजनीति पर इसका भले ही कोई असर न हो, लेकिन लोगों के परसेप्शन में यह बात जाएगी ही कि अखिलेश यादव का परिवार बिखरा हुआ है, उनसे उनका खुद का परिवार नहीं संभल रहा है।”

सार्वजनिक तौर पर देखा जाए तो अपर्णा यादव अब तक अखिलेश यादव सम्मान से पेश आती रही हैं, ऐसे में यह देखना भी बेहद दिलचस्प होगा कि वह राजनीतिक घमासान में अखिलेश यादव पर किस तरह से हमलावर होती हैं।

अपर्णा की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं

वैसे अपर्णा यादव ख़ुद भी कई दफा राजनीतिक तौर पर अपनी महत्वाकांक्षाएं समय-समय पर ज़ाहिर करती रही हैं। वह कई मर्तबा सार्वजनिक मंचों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ़ कर चुकी हैं। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से भी उनके अपने परिवार की नज़दीकुयां रही हैं। इसके अलावा उन्होंने आरक्षण विरोधी बयान देकर भी राजनीतिक सुर्ख़ियां कई बार बटोरी थीं।

लखनऊ के राजनीतिक गलियारे में यह बात मुसलसल कही जाती रही है कि अपर्णा की राजनीतिक महत्वाकांक्षा, मुलायम सिंह यादव की दूसरी पत्नी साधना गुप्ता की देख-रेख में पनपी और परवान चढ़ती रही हैं क्योंकि अपर्णा यादव के पिता अरविंद सिंह बिष्ट कई बार यह दावा कर चुके हैं कि उनकी बेटी मुलायम परिवार के फ़ैसलों को ही मानती आयी है।

अखिलेश मुलायम के उत्तराधिकारी की हेडलाइन से मचा था बवाल

लखनऊ के वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार वीरेंद्र भट्ट ने मीडिया से मार्च, 2017 में बताया था, “2007 में एक अख़बार अखिलेश मुलायम के उत्तराधिकारी हेडलाइन में ख़बर छपी थी। इस हेडलाइन पर मुलायम की दूसरी पत्नी साधना गुप्ता ने इतना सख्त विरोध किया कि अख़बार को बाद में स्पष्टीकरण छापना पड़ गया था। वे अपर्णा को आगे बढ़ा रही हैं। ऐसी कोशिश 2014 में आजमगढ़ से मुलायम के दूसरे बेटे प्रतीक यादव को उम्मीदवार के तौर पर देने पर हुई थी, लेकिन प्रतीक यादव की ख़ुद राजनीति में बहुत दिलचस्पी नहीं है।”

योगी आदित्यनाथ की अनुपस्थिति के मायने क्या हैं

“देखिए अपर्णा की अब तक की पहचान यही है कि वे मुलायम सिंह की बहू हैं। जबकि अखिलेश यादव एक बड़ी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर अपनी पहचान स्थापित कर चुके हैं, इसलिए अब उनको चुनौती नहीं दी जा सकती है।”

देखिए अपर्णा के परिवार की योगी आदित्यनाथ के साथ नज़दीकी जग ज़ाहिर है लेकिन आप देखिए जब अपर्णा पार्टी ज्वाइन कर रही हैं तो योगी आदित्यनाथ की मौजूदगी नहीं है। वहां केशव प्रसाद मौर्या और स्वतंत्र देव सिंह नज़र आ रहे हैं। पिछले दिनों जो पिछड़े वर्ग के नेताओं से जो नुक़सान हुई है, उस नुक़सान की भरपाई की कोशिश करती हुई बीजेपी दिख रही है।”

हालांकि कयास यह भी लगाए जा रहे हैं कि अपर्णा यादव ने बीजेपी का दामन उस समझौते के तहत थामा है जिसमें आय से अधिक संपत्ति रखने के मामले में उनके पति यानी मुलायम सिंह यादव के दूसरे बेटे प्रतीक यादव के ख़िलाफ़ जांच को मैनेज किया जा सके।

लेकिन समाजवादी पार्टी कैंप के एक नेता ने नाम ना ज़ाहिर करने की शर्त पर बताया, “परिवार में क्या कुछ हुआ होगा, ये हमलोग नहीं बता सकते. लेकिन हमारा नेतृत्व अखिलेश यादव कर रहे हैं और वे ऐसी चुनौतियों से निपटने में सक्षम हैं.”

व्यक्तित्व

32 साल की अपर्णा बिष्ट 2011 में मुलायम परिवार की पुत्रवधू बनीं। अपर्णा और प्रतीक का विवाह प्रेम विवाह हुआ था और दोनों के बीच स्कूली दिनों से ही प्रेम था। बाद में दोनों ने इंग्लैंड में साथ-साथ पढ़ाई की।

अपर्णा यादव

सार्वजनिक जीवन में दिलचस्पी रखने वाली अपर्णा की संगीत में भी बेहद रूचि दिखाती हैं। वह क्लासिकल और सेमीक्लासिकल संगीत की शिक्षा ले चुकी हैं और अच्छी सिंगर भी हैं। संगीतकार साजिद-वाजिद के निर्देशन में उनका एक म्यूज़िकल एल्बम आ चुका है जिसे सैफ़ई महोत्सव में मुलायम सिंह ख़ुद ज़ारी किया था।

ANI

Input Source: BBC Hindi

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