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अखिल भारतवर्षीय यादव महासभा के बदलाव से अखिलेश के सामने खड़ी हुई चुनौती, कहीं बिगड़ ना जाए सपा का खेल

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उत्तर प्रदेश की सरकार जाति की तरफ सिमटी हुई है लेकिन ऐसे में भी यादव महासभा जो सपा के लिए सियासी तौर पर खाद-पानी देने का काम किए हुए थी अब वो अखिलेश यादव की पकड़ से बाहर निकल रही है। दरअसल अखिल भारतवर्षीय यादव महासभा की कमान सपा नेता के हाथों से निकलकर बंगाल के डॉ. सगुन घोष के सौंप दी गई है।

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जहां एक तरफ इन दिनों सियासत में आगामी चुनावों को लेकर हलचल मची हुई तो दूसरी तरफ सपा के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पर एक अलग ही मुसीबत की गाज गिरी हुई है। वो लगातार सियासी चक्रव्यूह में फंसते जा रहें हैं। जहां सपा से अलग हो चुके शिवपाल ने अखिलेश को झटका देते हुए सपा के यादव कोर वोटबैंक में सेंधमारी करते हुए ‘यदुकुल मिशन’ शुरू किया है।

वहीं भाजपा की नजरें भी यादव वोट की तरफ है। ऐसे में अखिल भारतवर्षीय यादव महासभा भी अब सपा के पकड़ से बाहर निकलती जा रही है। जिससे अखिलेश यादव की चुनौतियां बढ़ती ही जा रही हैं। ऐसे में यादव महासभा ने एक बड़ा बदलाव किया है कार्यकारी समिति की बैठक के बाद कोलकाता के डॉ. सगुन घोष को राष्ट्रीय अध्यक्ष और बसपा सांसद श्याम सिंह यादव को कार्यकारी अध्यक्ष चुना गया है. यादव समाज के सबसे बड़े संगठन की कमान सपा के किसी नेता के हाथ में नहीं होगी जबकि मुलायम सिंह यादव ने हमेशा महासभा पर अपनी पकड़ को मजबूत बनाए रखा था।

अखिलेश यादव के सामने हुई खड़ी हुई चुनौती

अखिल भारतवर्षीय महासभा के इस बदलाव से अखिलेश के सामने चुनौती खड़ी हो गई है दरअसल  मुलायम सिंह यादव और शिवपाल यादव किसी न किसी रूप में यादव महासभा से अपना नाता जोड़े रखा, लेकिन अखिलेश यादव उसे आगे नहीं बढ़ा सके यादव महासभा के अध्यक्ष रहे उदय प्रताप सिंह के साथ अखिलेश यादव मंच शेयर करते थे, लेकिन सपा की यादव परस्त वाली छवि को तोड़ने की कवायद भी कर रहे थे इस तरह से यादव समुदाय के बैठकों से खुद को दूरी बनाए रखा, जिसका असर यह हुआ कि यादव महासभा उनकी पकड़ से निकल गई अब यादव महासभा भी खुद को सपा की बी-टीम के तमगे को खत्म करने की दिशा में है।

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