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अब भगवान को चढ़ाए फूलों को फेंकने के बजाय किया जाएगा इस्तेमाल, जानें कैसे

Maharastra: आप जब मंदिर जाते होंगे तो भगवान को फूल आदि जरूर अर्पित करते होंगे। आपके चढ़ाए गए फूल बाद में खराब होने लगते तो उन्हें फेंक दिया जाता है। लेकिन अब इन फूलों को भी उपयोग में लाया जा रहा है और ये हो रहा है महाराष्ट्र के नागपुर स्थित गणेश टेकरी मंदिर में। यहां भगवान पर चढ़ाए फूलों से धूपबत्ती, अगरबत्ती बनाए जा रहे हैं। स्वच्छ भारत अभियान की संकल्पना के तहत नागपुर के गणेश टेकरी मंदिर ने भगवान को चढ़ाएं फूलों से मंदिर परिसर में ही नए उपक्रम की शुरुआत की है। नागपुर के प्रसिद्ध गणेश टेकड़ी मंदिर जहां देश के कोने-कोने से लोग भगवान गणेश के दर्शन के लिए पहुंचते हैं।

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बता दें कि गणेश टेकड़ी मंदिर के प्रबंधन ने भगवान को चढ़ाए गए फूलों से मंदिर परिसर में ही अगरबत्ती एवं धूपबत्ती बनाना शुरू किया है। इसके पीछे मंदिर ट्रस्ट का कहना है कि स्वच्छ भारत अभियान के तहत इसकी शुरुआत की गई है। भगवान को चढ़ाने वाले पहले फूल कचरे के रूप में फेंक दिया जाता था, लेकिन अब उन फूलों से अगरबत्ती, धूपबत्ती बनाकर वहीं पर भक्तों को बेची जा रही है। साथ ही साथ राष्ट्रीय मंदिर सम्मेलन में भी इसकी जानकारी भारत के कोने-कोने से आए मंदिरों के ट्रस्टियों को दी गई हैं।

भक्तों को कम शुल्क में उपलब्ध होगी अगरबत्ती

मंदिर प्रबंधन के अनुसार हर महीने भक्तों द्वारा करीब 200 से 300 किलो फूल चढ़ाए जाते हैं। वहीं, त्योहारों पर इनकी संख्या ज्यादा हो जाती है। अगरबत्ती और धूपबत्ती बनाने के लिए मंदिर परिसर में करीब 5 लोगों को काम का जिम्मा सौंपा गया है। उनका काम सभी फूलों को धूप में सुखाकर उनका पेस्ट बनाकर इत्र, धूप ,घी ,कपूर के साथ अन्य चीजों के मिश्रण से अगरबत्ती और धूपबत्ती तैयार होगी और मंदिर परिसर में ही भक्तों को कम शुल्क में उपलब्ध कराना है।

मंदिर में सेवा करने वाली संस्थाओं को जागरूक होने की जरूरत

महाराष्ट्र में कई मंदिर ऐसे हैं जहां भगवान पर चढ़ाए गए फूलों को कचरे के रूप में फेंक दिया जाता है। इस मामले में गणेश मंदिर प्रबंधन कमेटी का कहना है कि अगर कोई उनसे संपर्क करें तो वह फूलों से धूप या अगरबत्ती कैसे बनाई जाती है इसकी जानकारी उन्हें उपलब्ध बता सकते हैं। मंदिर ट्रस्टी शांति कुमार शर्मा का कहना है कि भगवान पर चढ़ाए गए फूलों का उपयोग कुछ इस कदर करना चाहिए, जिससे फूलों का अनादर न हो, साथ ही दोबारा इसे उपयोग में लाया जा सके। इस मामले को लेकर मंदिर में सेवा करने वाली संस्थाओं को जागरूक होने की जरूरत है।

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