नवरात्रि के चौथे दिन आज मां कुष्मांडा की पूजा की जा रही है। अपनी मंद मुस्कान द्वारा ‘अण्ड’ यानी ‘ब्रह्मांड’ की उत्पत्ति करने के कारण इन्हें कुष्मांडा कहा गया है। मान्यता है कि जब दुनिया नहीं थी, तब इन्होंने ही अपने हास्य से ब्रह्मांड की रचना की थी इसीलिए इन्हें सृष्टि की आदिशक्ति कहा गया है। मान्यता है कि जो मनुष्य सच्चे मन से और संपूर्ण विधिविधान से मां की पूजा करते हैं, उन्हें आसानी से अपने जीवन में परम पद की प्राप्ति होती है। यह भी माना जाता है कि मां की पूजा से भक्तों के समस्त रोगों का नाश होता हैं।
कैसे पड़ा मां कुष्मांडा नाम
ये नवदुर्गा का चौथा स्वरूप हैं। अपनी हल्की हंसी से ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इनका नाम कुष्मांडा पड़ा। ये अनाहत चक्र को नियंत्रित करती हैं। मां की आठ भुजाएं हैं, इसलिए इन्हें अष्टभुजा देवी भी कहते हैं। संस्कृत भाषा में कुष्मांडा को कुम्हड़ कहते हैं और माता कुष्मांडा को कुम्हड़ के विशेष रूप से प्रेम है। ज्योतिष में मां कुष्माण्डा का संबंध बुध ग्रह से है।
मां कुष्मांडा की पूजा का महत्व
ऐसी मान्यता है कि मां की पूजा करने से निरोगी और सुंदर काया का आशीर्वाद मिलता है। माता के इस स्वरुप के पूजन से समस्त रोग दोष मिट जाते हैं और मन प्रसन्न रहता है। मां के ध्यान और पूजन मात्र से किसी भी बड़ी समस्या का हल सामने आ जाता है और पाप दूर होते हैं।
मां कुष्मांडा का भोग
माता कुष्मांडा को कुम्हड़े यानी कद्दू अति प्रिय है। माना जाता है कि इस देवी को कद्दू की बलि देने से प्रसन्न होती है और साधक की मनोकामनाएं पूरी होती है। कहते है माता को इस दिन मालपुआ का प्रसाद चढ़ाने से सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।
मां का मंत्र
ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः॥
या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥