“ मैं आजाद हूं”
बड़ी बड़ी आंखें,
बलवान शरीर,
मझला कद,
चेहरे पर स्वाभिमान,
और देश प्रेम की चमक,
तनी हुई नुकीली मूंछें,
ऊपर से कठोर,
अंदर से कोमल, चतुर और कुशल निशानेबाज….
इन सभी शब्दों से जो तस्वीर बनती है,
वो हैं भारत के शेर चंद्रशेखर आजाद। वही चंद्रशेखर आजाद को भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन की एक निरुपम विभूति हैं। देश की आजादी के लिए उनका अनन्य देश प्रेम, अदम्य साहस, प्रशासनिक चरित्रबल, हमें एक शाश्वत आदर्श प्रेरणा देते रहेंगे।
कहते हैं न जैसा नाम वैसा काम। चंद्रशेखर ने अपने नाम के आगे आजाद लगा कर उसे ही अपने जीवन का लक्ष्य मान लिया, और मरते दम तक वो आजाद हीं रहे।
27 फरवरी 1931 को जब ब्रिटिशों ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया। तब! आजाद के पिस्टल में अंतिम गोली बची थी, पूरी तरह से घायल हो चुके आजाद को जब बचने का कोई रास्ता न दिखा, तो ब्रिटिशों के हाथ लगने से पहले उन्होंने वो बची अंतिम गोली खुद पर ही चला ली। देश प्रेम के लिए ऐसी शक्सियत रखने वाले आजाद के बारे में आज भी जब हम पढ़ते या सुनते हैं, तो हमारा सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है।
आज उनकी पुण्यतिथि पर चंद्रशेखर आजाद को हमारा शत शत नमन…