गांधीजी की पुण्यतिथि विशेष: बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा बोले- गांधी जी ने अपने बर्ताव से अहिंसा और करुणा के सिद्धांतों का उदाहरण पेश किया

आज राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 74वीं पुण्यतिथि है। गांधीजी के निधन के कई साल बाद भी उनके विचार लोकप्रिय और प्रासंगिक हैं। तिब्बत के बौद्ध धर्म गुरु दलाई लामा ने गांधी जी के जीवन को बहुत अधिक महत्वपूर्ण बताया।
बौद्ध धर्म गुरु दलाई लामा ने कहा कि मेरे लिए गांधी जी अहिंसा और करुणा के प्रतीक हैं। उन्होंने अपने जीवन बर्ताव से अहिंसा और करुणा के सिद्धांतों का उदाहरण पेश किया है। मैं उन्हें अपना गुरु और खुद को एक छोटा सा अनुयायी मानता हूं।
दलाई लामा ने कहा कि बचपन में हम सिर्फ गांधी जी के बारे में सुनते थे। पोटाला पैलेस में एक बार मैं उनसे सपने में मिला। उनसे मेरी कोई बात नहीं हुई। सपने में मुस्कुराते हुए गांधी जी से मिला।
महात्मा गांधी की 74वीं पुण्यतिथि के मौके पर दलाई लामा ने कहा कि 1956 में जब मैं पहली भारत यात्रा पर आया तो मैं दिल्ली यमुना नदी के तट पर राजघाट भी गया, जहां महात्मा गांधी का अंतिम संस्कार किया गया था। जब मैं वहां प्रार्थना में खड़ा हुआ, तो मुझे उनसे व्यक्तिगत रूप से न मिल पाने का बहुत अफसोस हो रहा था।
दलाई लामा ने कहा कि मेरी ख्वाहिश थी कि मैं उनसे मिलता तो पैर छूकर उन्हें प्रणाम करता और समाधान पूछता कि चीन से कैसे निपटा जाए। 1989 में ओस्लो में नोबेल शांति पुरस्कार स्वीकारते हुए मैंने गांधी जी को श्रद्धांजलि देते हुए कहा था, ‘गांधी के जीवन ने मुझे सिखाया और प्रेरित किया।
दलाई लामा ने कहा कि गांधी जी 20वीं सदी के सबसे प्रभावशाली व्यक्ति थे। उन्होंने अहिंसा और करुणा की 3000 साल पुरानी भारतीय परंपरा को अपनाया और इसके माध्यम से भारत की स्वतंत्रता के लिए लड़कर इसे जीवंत और प्रासंगिक बना दिया। उन्होंने कहा कि उस समय कुछ लोगों को लगा होगा कि गांधी की अहिंसा कमजोरी की निशानी थी, लेकिन कठिन परिस्थितियों में अहिंसा एक ताकत है, कमजोरी नहीं।
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