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Christmas 2023: कैसे और क्यों मनाते हैं क्रिसमस, कब हुई थी इसकी शुरुआत जानें इसकी कहानी..

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Christmas 2023: 25 दिसंबर को क्रिसमस का पर्व पूरी दुनिया में मनाया जाता है। क्रिसमस, प्रभु ईसा मसीह का जन्मदिन सद्भाव और प्रेम से मनाया जाता है। इस दिन लोग क्रिसमस मनाने के लिए केक काटते हैं और एक दूसरे को उपहार देते हैं।

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क्या होता है क्रिसमस के दिन

आज 25 दिसंबर, सोमवार को क्रिसमस का पर्व पूरी दुनिया में मनाया जाएगा। क्रिसमस, प्रभु ईसा मसीह का जन्मदिन सद्भाव और प्रेम से मनाया जाता है। क्रिसमस, जो ईसाई धर्म का एक प्रमुख त्योहार है, अब हर धर्म और समाज में मनाया जाता है। इस दिन लोग क्रिसमस मनाने के लिए केक काटते हैं और एक दूसरे को उपहार देते हैं। क्रिसमस ट्री, केक और उपहारों के अलावा इस पर्व में बहुत महत्वपूर्ण है। क्रिसमस के दिन लोग घरों में क्रिसमस के पेड़ लगाते हैं। साथ ही, क्रिसमस ट्री को रंग-बिरंगी रोशनी और खिलौनों से सजाया जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि क्रिसमस पर क्रिसमस ट्री का इतना महत्व क्यों है? चलिए इसकी रोचक कहानी जानते हैं..

क्रिसमस की कहानी

दरअसल, क्रिसमस ट्री के बारे में बहुत सारी मान्यताएं हैं। ईसाई धर्म को 16वीं सदी में सुधारने वाले मार्टिन लूथर ने इसकी शुरुआत की थी। 24 दिसंबर की शाम को मार्टिन लूथर एक बर्फीले जंगल से जा रहे थे, जहां उन्होंने एक सदाबहार पेड़ देखा। चांद की रोशनी से पेड़ की डालियां चमक रही थीं। बाद में मार्टिन लूथर ने अपने घर में भी एक सदाबहार का पेड़ लगाया, जिसे छोटे-छोटे कैंडल से सजाया गया था। उन्होंने जीसस क्राइस्ट के जन्मदिन के सम्मान में एक बार फिर इस सदाबहार पेड़ को सजाया और कैंडल की रोशनी से उसे प्रकाशित किया। माना जाता है कि क्रिसमस ट्री लगाने की परंपरा तभी से शुरू हुई।

722 ईसवी में क्रिसमस ट्री का जन्म हुआ है। माना जाता है कि जर्मनी में क्रिसमस ट्री सजाने की परंपरा सबसे पहले शुरू हुई। जर्मनी के सेंट बोनिफेस को एक बार पता चला कि कुछ लोग एक बच्चे को एक विशाल ओक ट्री के नीचे कुर्बानी देंगे। यह पता चलते ही सेंट बोनिफेस ने बच्चे को बचाने के लिए ओक ट्री को काट डाला। बाद में फर ट्री या सनोबर का पेड़ उसी ओक ट्री की जड़ के पास उग गया। इस पेड़ को लोगों ने चमत्कार के रूप में देखा। सेंट बोनिफेस ने लोगों को बताया कि यह एक पवित्र देव वृक्ष है और इसकी डालियां स्वर्ग की ओर संकेत करती हैं।मान्यता है कि तब से लोग हर साल प्रभु यीशु के जन्मदिन पर उस पवित्र वृक्ष को सजाने लगे।

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