Mahatma Gandhi Death Anniversary: राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्यतिथि आज, जानें इसका इतिहास

नई दिल्ली: देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की आज 30 जनवरी को पुण्यतिथि (Mahatma Gandhi Death Anniversary) मनाई जा रही है। आज ही के दिन मोहनदास करमचंद गांधी (Mohandas Karamchand Gandhi) की मृत्यु 30 जनवरी 1948 को हुई थी। इस साल देश गांधी जी की 74वीं पुण्यतिथि (74th death anniversary Gandhiji) मना रहा है। गांधी जी ने भारत के लिए वो किया है जो पूरा देश हमेशा याद रखेगा। उन्होनें अहिंसा की प्रेरणा, सत्य की ताकत ने अंग्रेजों को भी झुकने को मजबूर कर दिया। इसी योगदान के कारण गांधीजी आज महात्मा गांधी के नाम से जाने जाते हैं।

Mahatma Gandhi Death Anniversary
30 जनवरी 1948 को उस समय जब गांधी जी की नाथूराम गोडसे (Nathuram Godse) द्वारा गोली मारकर हत्या कर दी गई जब वे नई दिल्ली के बिड़ला भवन बिरला हाउस के मैदान में रात चहलकदमी कर रहे थे। गांधी का हत्यारा नाथूराम गोड़से हिन्दू राष्ट्रवादी थे जिनके कट्टरपंथी हिंदु महासभा के साथ संबंध थे जिसने गांधी जी को पाकिस्तान को भुगतान करने के मुद्दे को लेकर भारत को कमजोर बनाने के लिए जिम्मेदार ठहराया था।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्यतिथि आज
गोड़से और उसके उनके सह षड्यंत्रकारी नारायण आप्टे को बाद में केस चलाकर सजा दी गई तथा 15 नवंबर 1949 को गोड़से को फांसी दे दी गई। राज घाट, नई दिल्ली, में गांधी जी के स्मारक पर “देवनागरी में हे राम ” लिखा हुआ है। ऐसा व्यापक तौर पर माना जाता है कि जब गांधी जी को गोली मारी गई तब उनके मुख से निकलने वाले ये अंतिम शब्द थे। हालांकि इस कथन पर विवाद उठ खड़े हुए हैं। जवाहरलाल नेहरू ने रेडियो के माध्यम से राष्ट्र को संबोधित किया।

शहीद दिवस क्यों मनाया जाता है? जानें इसका इतिहास
महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) की हत्या 30 जनवरी, 1948 को शाम की प्रार्थना के दौरान बिड़ला हाउस में गांधी स्मृति में नाथूराम गोडसे (Nathuram Godse) ने की थी। उस समय गांधी 78 साल के थे। इस दिन को शहीद दिवस (Martyrs Day) के रूप में भी मनाया जाता है। बापू (Bapu) भारत को एक धर्मनिरपेक्ष और एक अहिंसक राष्ट्र के रूप में बनाए रखने के प्रबल समर्थक थे, जिसके कारण उन्हें आलोचनाओं का काफी सामना करना पड़ा था। 23 मार्च को भी शहीद दिवस के रूप में चिह्नित किया जाता है, क्योंकि उस दिन भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गई थी।