
KhamarChath Vrat : विविधताओं के देश भारत में हर दिन उत्सव है. यहां हर राज्य में या कभी कभी तो राज्य के अलग अलग हिस्सों में भी विभिन्न संस्कृतियों का परिचय मिलता है.
उत्तर भारत में अभी कजरी तीज का त्योहार मनाया गया जिसे पत्नियां अपने पति की सफलता और दीर्घायु की कामना के लिए रखती हैं. वहीं छत्तीसगढ़ में इस समय खमरछठ मनाई जा रही है. यह व्रत महिलाएं अपनी संतानों के लिए रखती हैं.
देवकी को नारद जी ने बताया था महात्म
मान्यता है कि इस व्रत का प्रारंभ द्वापर युग से हुआ. जब मथुरा के राजा कंस ने देवकी की छह संतानों का वध किया तो स्वयं नारद जी ने इस व्रत के पुण्यफल और महिमा के बारे में देवकी को बताया. उन्होंने देवकी से कहा कि संतान प्राप्ति और उनकी दीर्घायु के लिए आप खमरछठ का व्रत करें.
छत्तीसगढ़ में महिलाएं रखती हैं यह व्रत
छत्तीसगढ़ का बेमेतरा जिला ग्रामीण व शहरी परिवेश वाला जिला है. यहां का मुख्य व्यवसाय कृषि ही है, जिले में छत्तीसगढ़ के तीज त्योहारों के साथ-साथ व्रत का भी बड़ा महत्व है. आज यानि शनिवार को छत्तीसगढ़ में खमरछठ यानि हलषष्ठी है. इस अवसर पर महिलाएं अपने बच्चों की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं.
इस तरह से करतीं है पूजा
बताया गया कि इस दौरान गांव व शहर के मंदिर व किसी के घर के आंगन में सगरी यानि दो तालाब का निर्माण किया जाता है जिसमें भगवान शिव, पार्वती, शंकर और कार्तिकेय की मिट्टी की मूर्ति बनाकर उसकी पूजा अर्चना की जाती है.
व्रत में झलकता प्रकृति से जुड़ाव
इस दौरान दूध से बने सामान का ही उपयोग किया जाता है. जिसमें दूध, दही, घी शामिल है इसके अलावा छह प्रकार की भाजियां जो बिना हल चल हो यानि खलिहान से उत्पादित भाजी का उपयोग किया जाता है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इन सभी पकवानों को पीतल के बर्तन में पकाया जाता है और चम्मच के रूप में महुआ की लकड़ी का उपयोग किया जाता है. इसके अलावा दोना और पत्तल भी महुआ के ही होते हैं, जिसमें पूजा अर्चना के बाद फलाहार किया जाता है.
रिपोर्टः दुर्गा प्रसाद सेन, संवाददाता, बेमेतरा, छत्तीसगढ़
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