जयराम रमेश ने मोदी सरकार पर साधा निशाना, कहा- बजट में मनरेगा को इग्नोर किया गया

Jairam Ramesh On MGNREGA Budget :

Jairam Ramesh On MGNREGA Budget : जयराम रमेश ने मोदी सरकार पर साधा निशाना, कहा- बजट में मनरेगा को इग्नोर किया गया

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Jairam Ramesh On MGNREGA Budget : कांग्रेस ने रविवार (2 फरवरी 2025) को केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि मनरेगा का बजट स्थिर रखने से ग्रामीण आजीविका की उपेक्षा उजागर होती है। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के लिए 86,000 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है, जो पिछले वर्ष के समान है।

मनरेगा का बजट न बढ़ाने का आरोप

बजट दस्तावेज के अनुसार, 2023-24 में मनरेगा के लिए 60,000 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया था, लेकिन सरकार ने अतिरिक्त धनराशि प्रदान की थी, जिसके परिणामस्वरूप वास्तविक व्यय 89,153.71 करोड़ रुपये तक पहुंचा। 2024-25 के लिए मनरेगा का बजट बिना किसी अतिरिक्त आवंटन के 86,000 करोड़ रुपये पर स्थिर रखा गया। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने एक्स पर पोस्ट कर कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ते संकट के बावजूद सरकार ने 2024-26 के लिए मनरेगा का बजट नहीं बढ़ाया, जिससे यह योजना पहले से कम प्रभावी हो रही है। उन्होंने इसे वास्तविक (मूल्य वृद्धि के लिए समायोजित) आवंटन में गिरावट के रूप में देखा।

‘गरीब ग्रामीण श्रमिक की अनदेखी’

कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा, “ऊपर से चोट पर नमक छिड़कने के लिए, अनुमान बताते हैं कि बजट का लगभग 20 फीसदी पिछले वर्षों के बकाए को चुकाने के लिए खर्च किया जाता है।” कांग्रेस नेता ने कहा कि यह प्रभावी रूप से मनरेगा की पहुंच को कम कर देता है, जिससे सूखा प्रभावित और गरीब ग्रामीण श्रमिक अधर में ही रह गए हैं। उन्होंने कहा कि यह श्रमिकों को दिए जाने वाले वेतन में किसी भी वृद्धि को रोकता है।

जयराम रमेश ने लिखा, “इस चालू वित्तीय वर्ष में भी न्यूनतम औसत अधिसूचित मजदूरी दर में केवल सात फीसदी की वृद्धि की गई। यह ऐसे समय में है जब उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) मुद्रास्फीति पांच फीसदी होने का अनुमान है, इसलिए मनरेगा राष्ट्रीय वेतन में जो ठहराव का संकट है उसका आधार बन गया है।”

मनरेगा की महत्ता और महामारी के दौरान भूमिका

कांग्रेस नेता ने कहा कि मनरेगा के प्रति सरकार की उपेक्षा ग्रामीण आजीविका के प्रति उसकी उदासीनता को प्रदर्शित करती है। मनरेगा के तहत प्रत्येक परिवार के एक सदस्य को वित्तीय वर्ष में 100 दिन की मजदूरी की गारंटी दी जाती है। कोविड महामारी के दौरान 2020-21 में लॉकडाउन के दौरान मनरेगा ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार का महत्वपूर्ण स्रोत साबित हुआ था, जब लाखों लोग अपने घरों को लौटने के लिए मजबूर हुए थे। उस दौरान इस योजना पर 1 लाख 11,169 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे।

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