
रियो 2016 में दीपा कर्माकर ओलंपिक खेलों में देश का प्रतिनिधित्व करने वाली पहली महिला जिमनास्ट बनीं थीं, और उन्होंने अपने बेहतरीन प्रदर्शनों से कई लोगों को प्रेरित किया। कर्माकर 6 साल की उम्र से ही जिमनास्टिक में प्रशिक्षण शुरू कर दिया था। इसके बाद 14 वर्ष की उम्र में ही उन्होंने जूनियर नेशनल जीतते हुए अपनी नज़र अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गड़ा ली थी।
भारत के पहले जिमनास्टिक पदक
2010 में दिल्ली में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में जिमनास्टिक दल का हिस्सा रही एक किशोरी कर्माकर ने आशीष कुमार के प्रदर्शनों को करीब से देखा था, जिन्होंने कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत के पहले जिमनास्टिक पदक पर कब्जा जमाया था। यहां से कर्माकर ने अपनी पहचान बनाना शुरू कर दी थी और धीरे धीरे वॉल्ट एक्सपर्ट के साथ साथ जिमनास्टिक के सबसे ख़तरनाक मूव में से एक माने जाने वाले प्रोदुनोवा पर भी दीपा ने महारत हासिल कर ली थी।
प्रोदुनोवा को ‘वॉल्ट ऑफ़ डेथ’ के नाम से भी जाना जाता है, जिमनास्टिक में इसे सबसे कठिन चालों में से एक माना जाता है, इसमें एक हैंड्स्प्रिंग और फिर दो समरसॉल्टस होते हैं। जोखिम है तो फिर इनाम भी है क्योंकि इस वॉल्ट को सफ़ाई से हासिल करने के लिए ऊंचाई से नीचे कूदना होता है।
ओलंपिक के लिए क्वालिफ़ाई करने वाली भारत की पहली महिला जिमनास्ट
दीपा कर्माकर केवल पांच महिलाओं में से एक हैं जिन्होंने इसे सफलतापूर्वक निष्पादित किया है, इसी वॉल्ट के ज़रिए दीपा ने ग्लासगो में 2014 के राष्ट्रमंडल खेलों में पोडियम फ़िनिश करते हुए कांस्य पदक जीता था। 2016 के ओलंपिक जिमनास्टिक टेस्ट इवेंट में दीपा कर्माकर ने एक बार फिर इसी वॉल्ट का कमाल दिखाते हुए ओलंपिक के लिए क्वालिफ़ाई कर लिया था और इस तरह वह ओलंपिक के लिए क्वालिफ़ाई करने वाली भारत की पहली महिला जिमनास्ट बन गईं थीं। जिसने ओलंपिक इतिहास में भारतीय भागीदारी के 52 साल के लंबे इंतजार को ख़त्म किया।
2017 के बाद से दीपा कर्माकर घुटने की चोटों से जूझ रही हैं, लेकिन अगर वह फिट हो जाती हैं तो फिर अगरतला की रहने वाली ये जिमनास्ट एक बड़ी ताकॉत हैं। तुर्की के मेर्सिन में एफआईजी आर्टिस्टिक जिमनास्टिक वर्ल्ड चैलेंज कप 2018 की वॉल्ट स्पर्धा में कर्मकार ने स्वर्ण पदक हासिल किया था जबकि जर्मनी में आर्टिस्टिक जिमनास्टिक वर्ल्ड कप 2018 में उन्हें कांस्य पदक मिला था।