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150 रुपये मज़दूरी करने से लेकर PhD डिग्री तक का सफ़र, जानें कौन हैं साले भारती

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वह खेत में काम कर पसीना बहाती थीं, गाय के गोबर से उपले बनाती थीं, दिहाड़ी मज़दूरी कर परिवार संभालती थीं और रात में जब पति और बच्चे थककर सो जाते तो वह अपने सपनों को साकार करने में लग जाती थीं। हालात लाख हमारे ख़िलाफ़ हों लेकिन अगर आपमें दृढ़ निश्चय है तो सफलता की राह खुद ब खुद बन जाती है! यह कोई मनगढंंत बात नहीं आंध्र प्रदेश की एक युवा महिला मज़दूर किसान साके भारती ने इसे साबित करके दिखा दिया है ।

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भारती ने शिक्षा के सीमित अवसरों और संसाधन की कमी जैसी तमाम चुनौतियों का सामना किया; फिर भी रसायन विज्ञान में पीएचडी पूरी करके एक मिसाल पेश कर दी। बचपन में गरीबी ने उनकी पढ़ाई में तमाम अड़चनें खड़ी कीं। भारती की 12वीं तक की पढ़ाई सरकारी स्कूल से पूरी हुई और इसके बाद पिता ने पारिवारिक परिस्थितियों के कारण उनकी शादी कर दी।

ससुराल में आकर पति से पढ़ने की इच्छा जताई। फिर अपने पति के प्रोत्साहन से उन्होंने वो सब हासिल किया जो वह चाहती थीं भारती के पति शिवप्रसाद ने उन्हें हमेशा पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। इसी दौरान वह माँ भी बनीं, फिर भी पढ़ाई के लिए अपनी निष्ठा नहीं छोड़ी। भारती को पढ़ना था सो उन्होंने न सिर्फ़ घर संभाला बल्कि खेतों में मज़दूरी की। बच्चों की परवरिश के साथ-साथ उन्होंने काम और पढ़ाई को जारी रखा और इस सबके साथ अनंतपुर के SSBN कॉलेज से अपना ग्रेजुएशन और पोस्टग्रेजुएशन पूरा किया।

डाॅ. लगाने का सपना देखा और इस सपने को पूरा कर दिखाया

सुबह जल्दी उठकर घर का काम करने के बाद वह कई किलोमीटर पैदल चलकर और फिर बस से कॉलेज जाती थीं। घर लौटकर वह खेतों में काम करती थीं। अपने शिक्षकों के कहने पर उन्होंने पीएचडी में दाखिला लिया और अब डिग्री पूरी करके सबका नाम रोशन किया है। भारती अब कॉलेज में प्रोफेसर बनना चाहती हैं। उन्होंने साबित कर दिया कि गरीबी या हालात शिक्षा में बाधा नहीं हैं। अब भारती की सफलता की कहानी कई लोगों को प्रेरणा दे रही है। उस महिला को सलाम, जिसने जीवन के संघर्षों के सामने हार नहीं मानी और अपने नाम के आगे डाॅ. लगाने का सपना देखा और इस सपने को पूरा कर दिखाया।

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