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प्रणब दा राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी कैसे बने?

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प्रणब मुखर्जी भारतीय राजनीति के उन गिने-चुने नेताओं में से है जिन्हें 2019 भारत रत्न से सम्मानित किया गया। उनका राजनीतिक सफर करीब पांच दशक लंबा रहा है। 

राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी
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देश के 13वें राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी जिन्होंने मनमोहन सरकार और मोदी सरकार दोनों के साथ ही बहुत अच्छा तालमेल निभाया। कांग्रेस और देश के दिग्गज नेता रहे प्रणब दा 2012 से 2017 तक भारत के राष्ट्रपति रहे। करीब पांच दशक लंबे अपने राजनीतिक सफर में प्रणब मुखर्जी पांच बार राज्यसभा में रहे, वो देश के वित्त मंत्री और रक्षा मंत्री भी रहे। उन्होंने साबित कर दिया कि वह राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी हैं।

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प्रणब मुखर्जी भारतीय राजनीति के उन गिने-चुने नेताओं में से है जिन्हें 2019 भारत रत्न से सम्मानित किया गया। उन्होंने अपने राजनैतिक सफर में अपने दूरदर्शीता से कई ऐसे मुकाम हासिल किए। जिसकी वजह से हर पार्टी के बीच उनका काफी सम्मान रहा। प्रणब एक कट्टर कांग्रेसी होने के बावजूद भी सबके प्रिय बने रहे।

मुखर्जी राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी

भारत के शीर्ष पद तक पहुंचने की प्रणब मुखर्जी कभी इच्छा नहीं की थी और ना ही उन्होंने कभी सोचा था कि वे एक दिन भारत के पहले नागरिक बनेंगे। प्रणब मुखर्जी राजनीति में आने से पहले कलकत्ते में ही पोस्ट एंड टेलिग्राफ विभाग में अपर डिविजन में क्लर्क थे। इनका राजनीति से पहला वास्ता 1969 में पड़ा। जब उन्होंने मिदनापुर उप​चुनाव में एक निर्दलीय उम्मीदावर के तौर पर खड़े वीके कृष्ण मेनन के लिए चुनाव प्रचार किया।

जिसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी उस उपचुनाव में उनके चुनावी रणनीति कौशल से बहुत ज्यादा प्रभावित हुईं। फिर क्या इंदिरा ने प्रणब को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी का सदस्य बना दिया। इसी साल जुलाई में प्रणब मुखर्जी को कांग्रेस ने राज्यसभा भेज दिया। इस तरह प्रणब मुखर्जी का राजनीति में औपचारिक रूप से प्रवेश हुआ।

प्रधानमंत्री न बन पाने की जीवन भर रही कसक

मुखर्जी राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी माने जाते थे। उनका राजनीतिक सफर करीब पांच दशक लंबा रहा है। अलग-अलग मंत्रालयों में अपनी सेवाएं दे चुके प्रणब मुखर्जी ने कई महत्वपूर्ण टैक्स रिफॉर्म किए हैं। साल 1969 में राज्यसभा जाने वाले प्रणब मुखर्जी 1975, 1981, 1993 और 1999 में वापस राज्यसभा के लिए चयनित हुए।

इंदिरा गांधी सरकार में ही उन्हें पहली बार 1973 में मंत्रिपद मिला था। इसके बाद उन्होंने कई मंत्रालयों में अपनी सेवाएं दीं। इसके बाद 1982 में वो पहली बार वित्त मंत्री बने थे। इसके बाद 1995-96 तक विदेश मंत्री , साल 2004-06 तक रक्षा मंत्री, 2006 में विदेश मंत्री, 2009-11 में वित्त मंत्री रहे। 

लेकिन भारतीय राजनीति की नब्ज पर गहरी पकड़ रखने वाले मुखर्जी आखिरकार प्रधानमंत्री पद क्यों ना पा सके? जबकि कांग्रेस पार्टी में राजनीतिक सीढ़ियां चढ़ते हुए वह इस शीर्ष पद के बहुत करीब पहुंच चुके थे। प्रणब मुखर्जी के राजनीतिक जीवन को देखकर ये कहावत याद आती है हाथ आया मगर मुंह को ना लगा। इसका अर्थ ये की इंदिरा गांधी के खासम खास और कांग्रेस के संकटमोचन होने के बावजूद भी दो दो बार पीएम पद पाते पाते रह गये।

आखिर क्यों नहीं बन पाए देश के प्रधानमंत्री

पहली बार ये तब हुआ जब 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हुई। उस समय तक प्रणब मुखर्जी कांग्रेस में अपनी अच्छी खासी धाक बना चुके थे। सबका यही अनुमान था कि इंदिरा गांधी के बाद प्रणब दा ही प्रधानमंत्री पद के असल दावेदार होंगे लेकिन राजीव गांधी से ज्यादा अनुभवी होने के बाद भी प्रणब दा को पीएम पद नसीब नहीं हुआ।

दोबारा राजीव गांधी के दौर में कांग्रेस से दूरियां बढ़ने और पीवी नरसिम्हा राव के समय कांग्रेस में अपनी जगह पक्की करने वाले प्रणब दा को सोनिया गांधी के नेतृत्व में चल रही कांग्रेस से कुछ उम्मीदें दिखीं। लेकिन सोनिया गाँधी ने खुद प्रधानमंत्री का पद ठुकराने के बाद पार्टी में नंबर दो प्रणब मुखर्जी के स्थान पर राज्यसभा में कांग्रेस के नेता मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री पद के लिए चुन लिया।

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