
Handicraft help to make unique identity : सारण जिले के जीविका, मांझी के विराट महिला संकुल स्तरीय संघ की सतत जीविकोपार्जन योजना (एस जे वाई) से जुड़ी दीदियों ने स्वरोजगार की ओर एक बेहतरीन कदम उठाया है। बताया गया कि एक वक्त था जब ये सभी 25 दीदियां दो वक्त के खाने के साथ-साथ सामाजिक पहचान के लिए भी मोहताज थीं। चूकिं एस जे वाई योजना से जुड़ने से पूर्व ये दीदियाँ देशी शराब एवं ताड़ी के पारंपरिक व्यापार से जुड़ी हुई थी।
कहा गया कि आज सतत जीविकोपार्जन योजना से जुड़ने के बाद न ही सिर्फ इनका आर्थिक एवं सामाजिक उत्थान हुआ है बल्कि इन्होंने स्वरोजगार के लिए एक नई उड़ान भरी है। ये दीदियाँ सिक्की का उपयोग कर मुख्यतः पारंपरिक डलिया का निर्माण करती थीं। जिला एवं माँझी प्रखण्ड के एस जे वाई टीम के मार्गदर्शन में इन दीदियां सतत जीविकोपार्जन योजना अंतर्गत प्राप्त परिसंपति के माध्यम से जो आमदनी हुई उसका एक छोटा अंशपूंजी लगाकर अपने हस्तकला को कमाई का एक जरिया बनाने के लिए प्रयत्नशील थीं। परन्तु इन्हें न ही उचित बाजार मिल पा रहा था और न ही उचित मूल्य एवं न ही बाजार की मांग के अनुरूप सामान तैयार कर पा रही थी।
बजरंगबली समूह की सीता देवी बताती हैं कि स्थानीय स्तर पर बमुश्किल ही बिक्री हो पाती है जिससे उनकी लागत भी नहीं निकल पाती। तत्पश्चात इस हस्तकला से जुड़ी सभी जीविका दीदियों का एक उत्पादक समूह बनाने का प्रस्ताव रखा गया। फलस्वरूप संकुल स्तरीय संघ की बैठक में इन दीदियों ने एक साथ भाग लेकर उत्पादक समूह का निर्माण किया एवं इसका नाम कुशाग्राम जीविका महिला सिक्की उत्पादक समूह रखा है।
बताया गया कि आज इन्टरनेट एवं एस जे वाई टीम के मार्गदर्शन में पारंपरिक रूप से डलिया निर्माण के साथ साथ पेन स्टैंड, सिक्की पोला चूड़ी, कानबाली, दुल्हन सेट चूड़ी, राखी एवं मांग के अनुरूप गिफ्ट का भी निर्माण करना सीख गई हैं। इस कार्य से दीदियों ने वित्तीय वर्ष 2023-24 में न ही कुल 6,52,000 रुपए की कमाई की है बल्कि एक सामाजिक पहचान स्थापित करने में भी कामयाब हुई हैं। “एकता में अटूट शक्ति निहित होती है” इस पंक्ति को सिक्की कला के व्यापार से जुड़ी इन दीदियों ने चरितार्थ किया है।
सिक्की कला बिहार की एक प्रसिद्ध हस्तकला है, जो विशेषकर मिथिला क्षेत्र में प्रचलित है। इस कला में सिक्की नामक घास का उपयोग होता है, जो नदी किनारे और तालाबों के आसपास उगती है। यह कला न केवल बिहार की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा है, बल्कि ग्रामीण महिलाओं के लिए आजीविका का भी महत्वपूर्ण स्रोत है। सिक्की कला के अंतर्गत मुख्य रूप से विभिन्न प्रकार की वस्तुएं बनाई जाती हैं- डालियाँ, खिलौने, गृह सजावट की वस्तुएं, टोकरी और डिब्बे इत्यादि ।
सिक्की कला से जुड़े कई कारीगर अपनी आजीविका का मुख्य साधन इस हस्तकला को मानते हैं। बताया गया कि यह कला न केवल स्थानीय बाजारों में बल्कि राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी लोकप्रिय हो रही है, जिससे कारीगरों को आर्थिक लाभ हो रहा है। सिक्की कला न केवल बिहार की आर्थिक समृद्धि में योगदान देती है, बल्कि यह राज्य की संस्कृति और परंपरा का प्रतीक भी है। मिथिला पेंटिंग की तरह ही, सिक्की कला भी बिहार राज्य की पहचान है और इसे प्रोत्साहित करने के लिए राज्य और केंद्र सरकारें विभिन्न योजनाएँ चलाती हैं। सिक्की कला का संरक्षण और संवर्धन न केवल हस्तशिल्प को जीवित रखने के लिए आवश्यक है, बल्कि यह ग्रामीण महिलाओं की आर्थिक स्थिति को सुधारने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
माँझी का बरेजा गाँव सरयू नदी के तट पर अवस्थित है जिसके कारण जंगली सिक्की घास की उपज प्रचूर मात्रा में होती है। अतः यहाँ के स्थानीय लोग सिक्की कला में पूर्व से ही निपुण थे। लेकिन इस कला को लोगों ने डलिया निर्माण तक ही सीमित कर रखा था। सारण जिला के एस जे वाई टीम के द्वारा लाभार्थियों के क्षमतावर्धन के दौरान यह पाया गया कि बरेजा गाँव की कुछ दीदियाँ हैं जो इस कला में रूचि रखती हैं। ऐसे 25 जरूरतमंद एवं हुनरमंद दीदियों का पहचान कर उन्हें इन्टरनेट के माध्यम से सिक्की घास से जुड़ा अन्य उत्पाद बनाने के लिए प्रेरित किया गया। फलस्वरूप इनके द्वारा पेन स्टैंड, सिक्की पोला चूड़ी, कानबाली, दुल्हन सेट चुड़ी एवं मांग के अनुरूप गिफ्ट का निर्माण शुरू किया गया है।
कहा गया कि महिला उद्यमिता के संदर्भ में “एकता में शक्ति” एक महत्वपूर्ण अवधारणा है जो यह दर्शाती है कि जब महिलाएं मिलकर काम करती हैं, तो वे न केवल व्यक्तिगत सफलता प्राप्त कर सकती हैं, बल्कि सामूहिक रूप से भी प्रभावशाली परिवर्तन ला सकती हैं। अतः इन 25 हुनरमंद दीदियों ने मिलकर एक उत्पादक समूह का निर्माण किया ताकि इनके सामूहिक वित्तीय पहल से इस कला को नया आयाम दिया जा सके । इस उत्पादक समूह की देखरेख एवं समय समय पर मार्गदर्शन हेतु प्रमुख रूप से एस जे वाई एम आर पी को कार्य सौपा गया है इसके साथ हीं प्रखण्ड एवं जिला की एस जे वाई टीम समय समय पर समीक्षा तथा हर संभव मदद प्रदान करती है।
गांधी मैदान, वित्तीय वर्ष 2023-24 एवं 2024-25 के दौरान पटना में आयोजित सरस मेला के दौरान 80,159 रुपए का सिक्की उत्पादका बिक्री किया गया, उसके बाद क्रमशः मुख्यमंत्री समाधान यात्रा, छपरा में 9400 रुपए, बिहार दिवस के दौरान गांधी मैदान, पटना में आयोजित मेले में 21,590 रुपए की बिक्री की गयी, जीविका राज्य कार्यालय के कार्यक्रम हेतू भी 4850 रुपए का गिफ्ट आइटम आर्डर किया गया तथा साथ हीं जिला प्रेक्षागृह सारण में वित्तीय समावेशन संबंधित एक कार्यक्रम के दौरान लगभग 6330 रुपए की बिक्री हुई जिस से उनका उत्साह काफी बढ़ा है। रक्षाबंधन के शुभ अवसर पर इनके द्वारा पवित्र कुश से राखी बनाने का कार्य भी किया जा रहा है।
जीविका सारण के अलग अलग प्रखंडों से लगभग 6 हजार 2 सौ राखियों का आर्डर दिया गया था जिस से लगभग 55,800 रुपए की आमदनी हुई थी। कुश निर्मित इन राखियों की कीमत 10 रुपए से लेकर 40 रुपए तक होती है। इस उत्पादक समूह की सदस्य दीदियों ने बताया कि वो इस सिक्की कला को राष्ट्रीय स्तर पर ले जाना चाहती हैं जिसके लिए हम सभी हर संभव प्रयास कर रहे हैं। आगामी रक्षाबंधन के लिए पूर्व योजना बनायी जा चुकी है जिसके अंतर्गत सभी जीविका प्रखण्ड कार्यालय के साथ साथ जिला के अन्य सभी विभागों से समन्वय स्थापित कर लगभग 40 से 50 हजार राखियों की बिक्री की जाएगी।
कहा गया कि बहुत ही जल्द परियोजना के मदद से जीविका दरभंगा अंतर्गत शिल्पग्राम प्रोडूसर कंपनी एवं नाबार्ड के माध्यम से इनके लिए प्रशिक्षण का आयोजन किया जाएगा जहाँ उन्हें वर्तमान बाजार विपणन प्रवृति के अनुसार अलग अलग उत्पाद बनाना सिखाया जाएगा तथा बेहतर पैकेजिंग एवं मार्केटिंग में भी दक्ष बनाया जाएगा जिस से इस कला में सभी सदस्य दीदियां और भी निपुण होंगी तथा भविष्य में इनका लाखों का कारोबार होगा।
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