जीवन भर श्वेत वस्त्र पहनने वाली कवियत्री जिसने पूरा जीवन हिंदी साहित्य के नाम कर दिया, महादेवी वर्मा की पुण्यतिथि आज

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नई दिल्ली: आज हिंदी साहित्य की सबसे प्रभावशाली महिला साहित्यकार महादेवी वर्मा की पुण्यतिथि है। उन्हें हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक माना जाता हैं। लोग महादेवी वर्मा की रचनाओं को उनके पशु प्रेम की वजह से जानते हैं। महादेवी वर्मा को कवि सुर्यकांत त्रिपाठी निराला ने हिन्दी के विशाल मन्दिर की सरस्वती की उपमा से अलंकृत किया था। उन्हें आधुनिक मीरा के नाम से भी जाना जाता है।

फ़र्रुख़ाबाद जिले में हुआ जन्म

उनका जन्म 26 मार्च 1907 को उत्तर प्रदेश के फ़र्रुख़ाबाद जिले में हुआ था।  बता दें उनके परिवार में लगभग 200 वर्षों या सात पीढ़ियों के बाद पुत्री का जन्म हुआ था। उनके पिता श्री गोविंद प्रसाद वर्मा भागलपुर के एक कॉलेज में प्राध्यापक थे। उनकी माता का नाम हेमरानी देवी था। महादेवी वर्मा ने अपने एक लेख में बताया है कि सुमित्रानन्दन पंत एवं सुर्यकांत त्रिपाठी निराला उनसे जीवन भर राखी बंधवाते रहे।

जीवन भर श्वेत वस्त्र पहना, तख्त पर सोईं और कभी शीशा नहीं देखा

1916 में महादेवी के बाबा ने इनका विवाह बरेली के पास नबाव गंज कस्बे के निवासी श्री स्वरूप नारायण वर्मा से कर दिया।  स्वरूप नारायण वर्मा इण्टरमीडिएट की पढाईं करके लखनऊ मेडिकल कॉलेज में बोर्डिंग हाउस में रहने लगे। महादेवी उस समय क्रास्थवेट कॉलेज इलाहाबाद के छात्रावास में रहकर पढ़ाई कर रही थी। कहते है कि महादेवी वर्मा को वैवाहिक जीवन में रुचि कम थी। लेकिन उनके रिश्ते हमेशा ही मधुर रहे। दोनों कभी-कभी चिट्ठियों के जरिए संवाद भी कर लेते थे। महादेवी वर्मा ने जीवन भर श्वेत वस्त्र पहना, तख्त पर सोईं और कभी शीशा नहीं देखा। स्वरूप नारायण वर्मा ने महादेवी के कहने पर भी दूसरा विवाह नहीं किया। सन् 1966 में पति की मृत्यु के बाद वो स्थायी रूप से इलाहाबाद में रहने लगीं।

महादेवी वर्मा की रचनाएं

उन्होनें गद्य और पद्य दोनों में रचनाएं की। उनकी प्रमुख पद्य रचनाओं में से  दीपशिखा, प्रथम आयाम, नीहार, सांध्यगीत, सप्तपर्णा, अग्निरेखा है। वहीं गद्य रचनाओं में अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएं, गिल्लू, गौरा, शृंखला की कड़ियाँ, क्षणदा इत्यादि हैं।

महादेवी की काव्य रचनाओं को छायावाद के रचनाओं के तौर पर देखा जाता है

साथ ही महादेवी की काव्य रचनाओं को छायावाद के रचनाओं के तौर पर देखा जाता है। उन्हें महादेवी वर्मा को ‘नीरजा’ के लिये 1934 में ‘सक्सेरिया पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया । 1943 में ‘मंगलाप्रसाद पारितोषिक’ एवं ‘भारत भारती’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। सन् 1956 में भारत सरकार ने उनकी साहित्यिक सेवा के लिये ‘पद्म भूषण’ की उपाधि दी। 1971 में साहित्य अकादमी की सदस्यता ग्रहण करने वाली वे पहली महिला थीं। सन् 1988 में मरणोपरांत भारत सरकार की पद्म विभूषण उपाधि से उन्हें सम्मानित किया गया।

11 सितम्बर 1987 को छायावाद की चौथी स्तंभ ने दुनिया को अलविदा कह दिया

11 सितम्बर 1987 को छायावाद की चौथी स्तंभ ने दुनिया को अलविदा कह दिया। महादेवी वर्मा ने जीवन भर लोगों के बेहतरी के लिए लिए काम करती रहीं।  उन्होंने भाषा साहित्य और दर्शन तीनों क्षेत्रों में ऐसा महत्त्वपूर्ण काम किया जिसने आनेवाली एक पूरी पीढ़ी को प्रभावित किया।

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