Delhi NCRक्राइम

Delhi News: उच्च स्तर पर हो रही है किडनियों की ब्लैक मार्केटिंग, जानें किडनी ट्रांसप्लांट का असली खेल

Delhi News: द टेलीग्राफ नामक ब्रिटिश अखबार ने दिल्ली के एक प्रसिद्ध अस्पताल पर किडनी रैकेट चलाने का आरोप लगाया। यह रिपोर्ट, जिसका नाम कैश-फॉर-किडनी था, इसने कहा कि म्यांमार से गरीब लोगों को लाकर उनकी किडनी उच्च कीमत पर बेची जा रही हैं। फिलहाल, ऑर्गन तस्करी में बार-बार किडनी का उल्लेख होता है, इसलिए जांच कमेटी इसके बारे में निर्णय ले सकती है।

Delhi News: GFI का अनुमान

Global Finance Institute (GFI) का अनुमान है कि 10 प्रतिशत से अधिक ट्रांसप्लांट अवैध ढंग से होते हैं। यही कारण है कि अंग देने वाले, भले ही डोनर कहलाएं, अपनी इच्छा से अंग नहीं देते; इसके बजाय, उन्हें धन के लालच से मजबूर किया जाता है। मानव तस्करी, जिसमें मानव अंगों को जबरन निकाला जाता है। किडनी तस्करी भी इसमें सर्वश्रेष्ठ है।

किडनियों की तस्करी

बता दें, WHO का डेटा भयानक स्थिति में सामने आया है। डेटा के अनुसार हर साल ब्लैक मार्केट में 10 हजार से अधिक किडनियों की खरीद-फरोख्त होती है, दूसरे शब्दों में, हर घंटे 1 से अधिक किडनी तस्करी से आती है। भारत में भी हर साल 2 हजार से अधिक किडनियां बेची जाती हैं। इसके बावजूद, ये आंकड़े कम-ज्यादा हो सकते हैं क्योंकि इस प्रकार की कार्रवाई बिल्कुल गोपनीय होती है।

किडनी ट्रांसप्लांट

खराब लाइफस्टाइल के कारण बहुत से लोगों में उच्च रक्तचाप, मधुमेह और गुर्दे की बीमारियां होने लगी हैं। ऐसे में जब दोनों किडनियां जवाब देती हैं। डायलिसिस के बाद किडनी ट्रांसप्लांट ही एकमात्र विकल्प है। एक अतिरिक्त कारण यह है कि दो किडनियां हैं। ऐसे में, एक स्वस्थ आदमी को अपनी एक किडनी डोनेट करने से उसके स्वास्थ्य पर बहुत कम असर होता है। यही कारण है कि किडनी डोनर को ट्रैप करते हुए भी तस्कर को बहुत डर नहीं लगता।

तस्कर पूरा करने के मकसद से लोगों को फंसाना

भारत, नेपाल, बांग्लादेश में किडनी 17 लाख से 40 लाख रुपये में मिलती है। वहीं चीनी ब्लैक मार्केट में इसकी कीमत सीधे चालिस लाख से लेकर करोड़ों में जाती है। चीन पर भी आरोप लगाए जा रहे हैं कि वह उइगर मुस्लिमों और अन्य जातीय समूहों के साथ जबर्दस्ती ऐसा करता है। इसके बावजूद, चीन इसे लगातार खारिज करता रहा। तस्कर इसे पूरा करने के लिए लोगों को फंसाते हैं क्योंकि डिमांड अधिक है और सप्लाई कम है।

कहां से शुरु होता है किडनी ट्रांसप्लांट का असली खेल

अस्पतालों में सबसे पहले मरीज या रिक्वेस्ट आते हैं। ये किडनी की जरूरत वालों के लिए हैं। ऑर्गन बैंक या ऐसे लोगों को खोजने से पहले अस्पताल डोनेट करने को तैयार होना चाहिए। आम तौर पर, वेटिंग में मात्र इतने लोग होते हैं कि सालों तक नंबर नहीं आते। यही कारण है कि जब किडनी के मरीज चाहते हैं कि उन्हें तुरंत ऑर्गन मिल जाए, तो वे महंगी कीमत दे सकते हैं। सारा खेल यहीं से शुरू होता है।

ह्यूमन ट्रैफिकर्स का संगठन अस्पताल, एजेंट्स, फार्मेसी के क्षेत्रों में काम करता है। वे कमजोर लोगों को लक्षित करते हैं और उन्हें अस्पताल ले जाते हैं। अस्पतालों, करप्ट डॉक्टरों और एजेंटों को भी पैसे मिलते हैं। तो, अगर डोनर को आधे पैसे मिल रहे हैं, तो आधे सीधे बंटवारे में जाते हैं। किडनी ट्रांसप्लांट बड़े अस्पतालों में किया जाता है। लेकिन किडनी पहले कहां निकाली जाए? खुलकर ऐसा करने पर प्रशासन को खबर लग सकती है या पुलिस रेड कर सकती है। ऐसे में अस्पताल मेक-शिफ्ट हॉस्पिटल बनाते हैं, ताकि उनका नाम बदनाम न हो। यह कुछ ऐसा ही है जैसे कुंभ मेले में पोर्टेबल बायो-टॉयलेट। ये कमरे छोटे हैं। ये बेसमेंट भी हो सकते हैं, जहां गुपचुप काम किया जा सकता है।

ये भी पढ़ें- Delhi-NCR: दिल्ली में सर्दी से बचाने के लिए बेघर लोगों के लिए बनाया गया रैन बसेरा, जानें सुविधाओं के बारे में…

Related Articles

Back to top button