
पूर्वांचल के मतदाता दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजों को अंतिम रूप से प्रभावित करेंगे। ये मतदाता अलग-अलग धर्म और जाति के भी हैं। मगर, पूर्वांचल गौरव अगर जगता है और वे एकजुट मतदान करते हैं तो किसी भी पार्टी को जिता सकते हैं। इसके विपरीत अगर पूर्वांचल के गौरव पर अपमान जैसा नकारात्मक फैक्टर हावी हुआ तो किसी भी पार्टी को हरा भी सकते हैं। दिल्ली में जिन सीटों पर पूर्वांचली खासा असर रखते हैं उनकी संख्या 22 है।
पूर्वांचलियों का अपमान बड़ा मुद्दा
ताजा विधानसभा चुनाव में पूर्वांचलियों के अपमान का मुद्दा बड़ा रहा है। एक मुद्दा राज्यसभा में जेपी नड्डा का बयान था जिसमें उन्होंने घुसपैठिया और रोहिंग्या का जिक्र करते हुए पूर्वांचलियों को भी उनसे जोड़ दिया। तत्काल आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह ने इस मुद्दे को भुनाया। उन्होंने कहा कि पूर्वांचली ये अपमान नहीं सहेंगे और चुनाव में इसका जवाब देंगे।
हालांकि बीजेपी ने भी पलटवार किया जब अरविन्द केजरीवाल की प्रेस ब्रीफिंग में नई दिल्ली में अचानक मतदाता सूची में नाम जोड़ने की चर्चा हुई। इस क्रम में बिहार-यूपी से लोगों को लाकर मतदाता सूची में नाम जोड़वाने की कोशिश का आरोप उन्होंने लगाया। उदाहरण के साथ बताया कि एक-एक सांसद और मंत्री के आवास से दो से चार दर्जन तक वोटर हैं या फिर वोटर बनने के लिए आवेदन दिए गये हैं। हालांकि आम आदमी पार्टी ने इसे मुद्दा बनने नहीं दिया। पार्टी नेताओं ने कहा कि इस बयान में पूर्वांचलियों के लिए अपमान जैसी कोई बात नहीं थी।
पूर्वांचलियों के अपमान का मुद्दा तब बड़ा चुनावी मुद्दा बन गया जब बीजेपी के प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने आम आदमी के प्रवक्ता ऋतुराज झा के टाइटल से अपशब्द निकाला जिसका भाव ब्राह्मण या मैथिल ब्राह्मण के अपमान करने जैसा था। इस बात को लेकर आम आदमी पार्टी इस तरह हमलावर हुई कि खुद बीजेपी के नेता और पूर्वांचली मनोज तिवारी को अपनी ही पार्टी के प्रवक्ता से माफी मांगने के लिए कहना पड़ा। ये मुद्दा अब भी गरम है और पूर्वांचलियों ने, खासकर ब्राह्मण समुदाय के लोगों ने इसे बेहद गंभीरता से लिया है। बीजेपी को चुनाव में इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
अंबेडकर का अपमान भी नहीं भूले हैं वोटर
बाबा साहेब अंबेडकर को लेकर संसद में की गई अमित शाह की टिप्पणी भी पूर्वांचली दलित वोटरों के दिलों को ठेस पहुंचाने वाली साबित हो सकती है। आम आदमी पार्टी ने अमित शाह की टिप्पणी के जवाब में ही बाबा साहब अंबेडकर स्कॉलरशिप योजना की शुरूआत की। इसके तहत जो दलित बच्चा विदेश पढ़ने जाएगा उसका सारा खर्च दिल्ली सरकार उठाएगी। पूर्वांचली वोटरों में दलित वोटरों की अच्छी खासी तादाद है। इसलिए यह मुद्दा भी दिल्ली विधानसभा चुनाव नतीजे को प्रभावित कर सकता है।
आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में पूर्वांचलियों ने बीजेपी को प्राथमिकता न देकर हमेशा आम आदमी पार्टी को प्राथमिकता दी है। 2020 के चुनाव नतीजों को देखें तो आम आदमी पार्टी पूर्वांचलियों के प्रभाव वाली 22 सीटों में 15 सीटों पर 50 फीसदी से ज्यादा वोट हासिल किए हैं। चार सीटों पर तो 60 फीसदी से ज्यादा वोट हासिल किए हैं। इन 22 सीटों में आम आदमी पार्टी ने 20 पर कब्जा जमाया है। बीजेपी के पास केवल बदरपुर और करावलनगर की सीटें हैं।
पूर्वांचलियों के प्रभाव वाली 22 सीटों पर ‘आप’ की है मजबूत पकड़
दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 के नतीजे
विधानसभा सीट आप बीजेपी आप-बीजेपी
(आंकड़े प्रतिशत में) (बीते तीन चुनावों में प्रदर्शन)
बदरपुर 45.11 47.05 2-1
करावलनगर 46.29 50.59 1-2
सीमापुरी (एसी) 65.82 27.58 3-0
राजेंद्र नगर 57.06 37.70 2-1
पटपड़गंज 49.33 47.07 3-0
गोकलपुर 53.22 41.50 2-1
नांगलोई जाट 49.21 41.53 2-1
मॉडल टाउन 52.58 41.46 3-0
जनकपुरी 54.43 42.48 2-1
उत्तम नगर 54.57 43.75 2-1
देवली (एससी) 61.59 34.86 3-0
बुराड़ी 62.81 23.14 (जेडीयू) 3-0
किराड़ी 49.77 46.51 2-1
संगम विहार 64.58 28.13 (जेडीयू) 3-0
विकासपुरी 55.95 38.38 3-0
द्वारका 52.08 41.53 2-1
पालम 59.15 38.26 2-1
लक्ष्मीनगर 48.04 47.40 2-1
मटियाला 53.20 42.45 2-1
रिठाला 52.53 44.33 2-1
मंगोलपुरी 58.53 34.76 3-0
बादली 49.67 28.81 3-0
औसत 54.34 39.51
(स्रोत : चुनाव आयोग, संकलन व प्रस्तुति- लेखक)
अगर हम 2013, 2015 और 2020 में हुए विधानसभा चुनाव नतीजों के आइने में पूर्वांचलियों के बीच विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रभाव पर नजर डाले तो आम आदमी पार्टी के सामने बीजेपी कहीं दिखाई नहीं पड़ती। कांग्रेस की तो चर्चा ही नहीं बनती। बीते दो चुनावों में कांग्रेस को शून्य सीटें मिली हैं।
पूर्वांचल प्रभावित 22 सीटों में 9 सीट कभी आम आदमी पार्टी नहीं हारी
पूर्वांचलियों के प्रभाव वाली सीटों में 9 सीटें ऐसी हैं जहां बीते तीन चुनावों से आम आदमी पार्टी लगातार जीतती रही हैं। इनमें शामिल हैं सीमापुरी, पटपड़गंज, मॉडल टाउन, देवली (सुरक्षित), बुराड़ी, संगम विहार, विकासपुरी, मंगोलपुरी और बादली।
बीजेपी के लिए संतोष की बात है कि पूर्वांचलियों के प्रभाव वाली 22 सीटों में 13 सीटें ऐसी हैं जिन पर वह बीते तीन चुनावों में कभी न कभी जीत जरूर दर्ज की है। इन 13 सीटों में शामिल हैं बदरपुर, करावलनगर, राजेंद्रनगर, गोकलपुर, नांगलोई जाट, जनकपुरी, उत्तमनगर, किराड़ी, द्वारका, पालम, लक्ष्मीनगर, मटियाला, रिठाला।लेकिन गौर करने वाली बात ये है कि पिछले तीन चुनावों में इन सभी 13 सीटों पर 2 बार आम आदमी पार्टी को जीत मिली है।
पूर्वांचलियों को टिकट देने में आप आगे
पूर्वांचलियों को टिकट देने के मामले में भी आम आदमी पार्टी आगे रही है। 2015 में आम आदमी पार्टी के सभी 12 पूर्वांचली उम्मीदवार विधायक बन गये थे। 2020 में आम आदमी पार्टी ने 10 पूर्वांचली उम्मीदवार को टिकट दिए थे। इनमे से 9 पर जीत मिली थी। 2025 में होने जा रहे विधानसभा चुनाव में भी आम आदमी पार्टी ने पूर्वांचल के 12 उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे हैं। आम आदमी पार्टी के मुकाबले बीजेपी बमुश्किल 5 उम्मीदवार 2025 में उतार सकी है। इससे पहले भी ये आंकड़े इसके आसपास रहे हैं।
पूर्वांचली अपने बीच के प्रत्याशी को देखकर निश्चित रूप से आम आदमी पार्टी की ओर आकर्षित रहते हैं। इसके अलावा यह भी सच है कि पूर्वांचली आबादी का बड़ा हिस्सा झुग्गी में रहता है और वे गरीब भी हैं। आम आदमी पार्टी की मुफ्त योजनाओं का सबसे ज्यादा लाभ भी इन्हीं पूर्वांचलियों को मिलता है। ऐसे में जब बीजेपी के नेता पूर्वांचलियों के लिए कोई अपमानजक बात करते हैं तो आम आदमी पार्टी उसका लाभ उठाने में कामयाब रहती है।
पूर्वांचल की 22 सीटों पर आप को 54.34 फीसदी वोट
दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 में आंकड़ों पर नज़र डालें तो आम आदमी पार्टी को 22 सीटों पर कुल 54.34 फीसद वोट हासिल हुए हैं। पार्टी इनमें से 20 सीटें जीतने में कामयाब रही। वहीं, बीजेपी को 39.51 फीसद वोट इन 22 सीटों पर मिले जबकि सीटें महज दो हासिल हो सकीं। वोट फीसदी का ये अंतर 20.83 फीसदी वोटों का है जो बहुत बड़ा है। कांग्रेस इन सीटों पर बीते तीन चुनाव में 2 से 4 प्रतिशत वोट ही प्राप्त कर सकी है।
दिल्ली विधानसभा चुनाव के पूर्वांचली वोटरों के बीच राजनीति में इतना बड़ा परिवर्तन नहीं हुआ है कि आम आदमी पार्टी के पास से 20 प्रतिशत से ज्यादा की बढ़त इतना प्रभावित हो जाए कि उसे सीटों का नुकसान हो। यही आम आदमी पार्टी की ताकत है। पूर्वांचली अगर साथ हैं तो सत्ता की राह के कांटे भी साफ हैं।
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