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CJI के तौर पर युक्त जस्टिस संजीव खन्ना का आखिरी दिन, जानें उनके संवैधानिक मसलों के बड़े फैसले

Chief Justice of India : भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना का कार्यकाल करीब छह महीने का रहा है, लेकिन उनके न्यायिक फैसले भारतीय न्यायपालिका में पारदर्शिता और जवाबदेही की मिसाल बनकर उभरें हैं.

संजीव खन्ना के कार्यकाल का आज आखिरी दिन है. सीजेआई के तौर पर उन्होंने कई अहम फैसले किए  हैं. बतौर सीजेआई के तौर पर उनका कार्यकाल लगभग सात महीने का रहा. 18 जनवरी 2018 को जस्टिस संजीव खन्ना सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस के तौर पर नियुक्त किए गए. 2005 में जस्टिस खन्ना दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस के रूप में काम कर चुके हैं. उन्होंने दिल्ली से शिक्षा प्राप्त की है. जिसके बाद उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के सीएलसी (कैंपस लॉ सेंटर) से लॉ की पढ़ाई पूरी की.

दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट से वकालत का आगाज

1983 में दिल्ली बार काउंसिल में वकील के तौर पर पंजीकृत होने के बाद उन्होंने दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट से वकालत शुरू की. जिसके चलते वरिष्ठ स्थायी वकील के रूप में आयकर विभाग के लिए उन्होंने लंबे समय तक काम किया साथ ही भूमि कानून, पर्यावरण कानून, वाणिज्यिक कानून, कंपनी कानून, चिकित्सा लापरवाही जैसे मुद्दों पर काम किया. उन्हें 2004 में दिल्ली सरकार के स्थायी वकील के रूप में नियुक्त किया गया.

जस्टिस संजीव खन्ना ने किए कई अहम फैसले

दरअसल उन्होनें कई फैसले दिए है. बता दें कि नवंबर-दिसंबर 2024 में देश में सांप्रदायिक तनाव बढ़ा था,  जिसके चलते कुछ अदालतों ने मस्जिदों के सर्वे के आदेश दिए कि उनके नीचे अवशेष हैं. इस स्थिति में सीजेआई खन्ना ने हस्तक्षेप करते हुए आदेश जारी किया कि भविष्य में धार्मिक स्थलों के खिलाफ कोई नई याचिका दर्ज न कि जाए और निचली अदालतें सर्वे आदेश या अंतरिम आदेश पारित न करें.

समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता

जस्टिस संजीव खन्ना ने एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) बनाम चुनाव आयोग के मामले में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों पर डाले गए 100 प्रतिशत वोटों के वीवीपीएटी सत्यापन की मांग करने याचिका को खारिज कर दिया था. जस्टिस खन्ना ने आदेश जारी करते हुए बताया कि वह स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए सभी सुरक्षा उपायों को रिकॉर्ड में रखना चाहते हैं. EVM की विशेषता को कम करते हुए उन्होंने कहा कि मौजूदा प्रणाली वोटों की त्रुटि मुक्त और गिनती सुनिश्चित करती है.

इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को असंवैधानिक घोषित

दूसरी और फरवरी 2024 में जस्टिस खन्ना ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को असंवैधानिक घोषित करने वाले पांच-न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ का हिस्सा रहे. यह फैसला भ्रष्टाचार की संभावना चिंताओं के कारण लिया गया था. जस्टिस खन्ना ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि बैंकिंग चैनलों के माध्यम से किए गए दान पर दाता की गोपनीयता लागू की जाए. उन्होनें बताया कि बॉन्ड को संभालने वाले बैंक अधिकारियों को दानदाताओं की पूरी पहचान का पता होता है.

न्यायिक स्वतंत्रता और पारदर्शिता के मुद्दे पर बड़ा फैसल

बात साल 2019 की है जब जस्टिस संजीव खन्ना ने न्यायिक स्वतंत्रता और पारदर्शिता के मुद्दे पर भी अहम फैसला सुनाया था. जिसमें कहा गया कि भारत के मुख्य न्यायाधीश का कार्यालय सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत सूचनाओं के अधीन किया जा सकता है. केस में जजों की निजता के साथ-साथ पारदर्शिता होनी चाहिए. वहीं सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी 2021 में सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट अनुमति दी थी. इस प्रोजेक्ट के चलते निर्माण के अलावा दिल्ली में नया संसद भवन भी बनाया गया है. बता दें कि तीन जजों की बेंच ने 2-1 के बहुमत से यह फैसला सुनाया था.

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