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गुसाईं दत्त से सुमित्रानंदन पंत बनने तक का सफर, नेपोलियन बोनापार्ट से प्रेरित हो कर रखा था हेयर स्टाइल

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सुकुमार भावनाओं के कवि सुमित्रानंदन पंत का जन्म 20 मई 1900 में उत्तराखंड के बागेश्वर जिले के पास बेहद खूबसूरत गांव कौसानी में हुआ था। इनके जन्म के 6 घंटे उपरांत ही इनकी माता की मृत्यु हो गई थी, जिस कारण से इनके पिता पंडित गंगा दत्त पंत और इनकी दादी ने इनका लालन पोषण किया।

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इनके बचपन का नाम गुसाईं दत्त था पर इन्हें ये नाम पसंद नहीं था। शुरुआती पढ़ाई पूरी करने के बाद पंत अल्मोड़ा आ चुके थे और वहां उन्हें नाम लिखवाना था। पंत ने सर्टिफिकेट में लिखे नाम को देखा और सुकुमार कवि कहे जाने वाले पंत ने विद्रोही भाव से अपने नाम को चाकू से खुरच दिया। इस प्रकार उन्होंने अपने आदर्श लक्ष्मण यानी सुमित्रा के नंद के नाम पर अपना नाम सुमित्रा नंदन रख लिया।

महात्मा गांधी से थे प्रभावित

महात्मा गांधी पंत को प्रभावित करने वाले कई प्रमुख नेताओं में से एक थे, जिनमें रवींद्रनाथ टैगोर, कार्ल मार्क्स और अरविंदो भी शामिल थे।

हम पंत की कुछ कविताओं में गांधी से उनके भावनात्मक लगाव को अनुभव कर सकते हैं, उनकी कविता से कुछ पंक्तियाँ जो उन्होंनें बापू को समर्पित की थीं:-

“सुख-भोग खोते अनत सब,

आये तुम करूँ सत खोज;

जग की मिती के पुटल जान,

तुम आत्मा के, मन के मनोज! ”

सुमित्रानंदन पंत

जोशी और पंत की दोस्ती

पीसी जोशी के साथ पंत जी की दोस्ती को उनके जीवन की प्रमुख घटनाओं में से एक माना जाता है| क्योंकि इसने उन्हें एक नई विचारधारा अर्थात् मार्क्सवाद की ओर आकर्षित किया| युगवाणी (1938), पंत गांधीवाद और मार्क्सवाद को मिलाने की कोशिश करते हैं| यह उस समय में कई लेखकों द्वारा सामना की गई बौद्धिक दुविधा थी क्योंकि दोनों ही विचारधाराएं एक दूसरे से अलग थीं।

नेपोलियन बोनापार्ट से प्रेरित हो कर रखा था हेयर स्टाइल

7 वर्ष की उम्र में जब सुमित्रानंदन पंत चौथी कक्षा में पढ़ते थे तब से ही उन्होंने कविताएं और गीत लिखना शुरू कर दिया था| व्यापक रूप से जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला और महादेवी वर्मा के साथ पंत को ‘छायावाद’ के तीसरे स्तंभ के रूप में जाना जाता है| पंत वह व्यक्ति थे जिनकी विलक्षणता उनके लेखन जितनी ही दिलचस्प थी| सुमित्रानंदन पंत ने अपना हेयर स्टाइल फ्रांसीसी सैन्य नेता नेपोलियन बोनापार्ट से प्रेरित हो कर रखा था।

पंत से मिलकर महादेवी वर्मा को आई थी हँसी

महादेवी वर्मा जो  की सुमित्रा नंदन पंत को भाई मानती थीं और उन्हें राखी भी बांधती थीं उनकी सुमित्रानंदन पंत से पहली मुलाकात किसी फिल्म के हास्यप्रधान स्वांग से कम नहीं थी।

महादेवी वर्मा ने पंत से परिचय के बारे में लिखा

अचानक दूसरी ओर बैठे हुए छात्रों और अध्यापकों के पुरुषाकार समूह में कुछ हलचल सी उत्पन्न करती हुई एक कोमल कांत कृशांगी की मूर्ति आविर्भूत हुई। सुमित्रानंदन पंत से मिलने से पहले उन्हें पंत के महिला होने का भ्रम था| महादेवी लिखती हैं ‘कई वर्षों के बाद डॉक्टर धीरेंद्र वर्मा ने अपने विवाह के अवसर पर मुझसे अपने कवि मित्र सुमित्रा नंदन जी का परिचय कराया तब मुझे अपने भ्रम पर इतनी हंसी आई कि मैं शिष्टाचार के प्रदर्शन के लिए भी वहां खड़ी ना रह सकी’।  

 ऐसा नहीं है कि सिर्फ महादेवी वर्मा ही उन्हें महिला समझती थीं बल्कि काफ़ी लोग जो उन्हें व्यक्तिगत रूप से नहीं जानते थे वो उनके नाम के कारण उन्हें महिला समझ लेते थे।अपनी कविता “भारतमाता ग्रामवासिनी” में उन्होंने अपने मन में उत्पन्न हुई भारत माता की छवि को बड़ी ही खूबसूरती से शब्दों में पिरो कर लिखा है:

“खेतों में फैला है श्यामल

धूल भरा मैला सा आँचल

गंगा यमुना में आंसू जल

मिट्टी की प्रतिमा उदासीनि ”

सुमित्रानंदन पंत

इस कविता का उद्देश्य ये स्पष्ट करना है कि असली भारत तो गांवों में निवास करता है| परन्तु भारत के गांवों में बसने वाले उन ग्रामीणों की दशा अत्यन्त दयनीय है। उनके पास पहनने को ना तो पर्याप्त वस्त्र हैं और ना ही खाने को भरपेट भोजन, वो अशिक्षित, पीड़ित और शोषित हैं और उनको सदैव दबाया जाता रहा है। भारतमाता प्रवासिनी बन कर रह गयी हैं। इस कविता की कुछ पंक्तियाँ सभी भारत वासियों को अंग्रेजी हुकूमत के मुश्किल दौर की याद दिलाती हैं।

प्रकृति प्रेमी पंत कई सालों तक पहाड़ियों और बाहरी इलाकों समय बिताया

उनकी कविताओं से प्रकृति के लिए असीम प्रेम साफ झलकता है| पंत का प्रकृति प्रेम और शब्दों से घनिष्ठ मित्रता का आरंभ उनके जीवन के शुरुआती दौर में ही हो गया था| प्रकृति के कवि कहे जाने वाले पंत ने अपने जीवन के कई साल पहाड़ियों और बाहरी इलाकों में बिताए और उन्होंने बड़ी ही खूबसूरती से अपने प्रकृति के साथ बिताए अनुभवों को बहुत ही सहजता के साथ शब्दों से सजाया था| अल्मोड़ा से स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद पंत उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए काशी चले गए।

मैट्रिक के बाद, पंत इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई करने के लिए इलाहाबाद चले गए, लेकिन उन्होंने इसे बीच में ही छोड़ दिया और महात्मा गांधी का समर्थन करने के लिए सत्याग्रह आंदोलन में शामिल हो गए| हालाँकि, उन्होंने घर पर अंग्रेजी, संस्कृत और बंगाली साहित्य पढ़कर अपनी शिक्षा जारी रखी।

अमिताभ बच्चन का किया नामकरण

सुमित्रानंदन की हरिवंशराय बच्चन के साथ अच्छी दोस्ती थी। सदी के महानायक अमिताभ बच्चन को तो हम सभी जानते हैं| लेकिन यह कुछ लोगों को ही पता है कि सुमित्रानंदन पंत ने ही कवि हरिवंश राय बच्चन को सुझाव दिया था कि अपने बेटे इंकलाब का नाम लेने के बजाय वह अमिताभ पर विचार कर सकते हैं और उसके बाद जो हुआ वह इतिहास है। पंत को राष्ट्रीय प्रसारक, दूरदर्शन नाम देने का भी श्रेय दिया जाता है| सुमित्रानंदन पंत ने ना सिर्फ प्रकृति के सौंदर्य को महसूस किया बल्कि उस सौंदर्य को बड़ी ही खूबसूरती से सटीक शब्दों में संजोकर हम सबके सामने प्रस्तुत किया। पंत ने अपनी कविता “सुख-दुख” में जीवन की असलियत समझाने की कोशिश की है।

सुख-दुख के मधुर मिलन से जीवन संपूर्ण हो जाता है

सुख-दुख के मधुर मिलन से

यह जीवन हो परिपूरन;

फिर घन में ओझल हो शशि,

फिर शशि से ओझल हो घन !

मैं नहीं चाहता चिर-सुख,

मैं नहीं चाहता चिर-दुख,

सुख-दुख की खेल मिचौनी

खोले जीवन अपना मुख !

जग पीड़ित है अति-दुख से

जग पीड़ित रे अति-सुख से,

मानव-जग में बँट जाएँ

दुख-सुख से औ’ सुख-दुख से !

अविरत दुख है उत्पीड़न,

अविरत सुख भी उत्पीड़न;

दुख-सुख की निशा-दिवा में,

सोता-जगता जग-जीवन !

यह साँझ-उषा का आँगन,

आलिंगन विरह-मिलन का;

चिर हास-अश्रुमय आनन

रे इस मानव-जीवन का !

सुमित्रानंदन पंत

कविता का भावार्थ

जीवन सुख-दुख पूर्ण है| सुख-दुख के मधुर मिलन से जीवन संपूर्ण हो जाता है। निरंतर सुख और निरंतर दुख दोनों पीड़ा देने वाले हैं। सुख-दुख रूपी दिन-रात में संसार का जीवन सोता और जागता है| इस संध्या और उषा के आंगन में विरह और मिलन का आलिंगन हो रहा है। मानव जीवन का मुख सदा हंसी और आंसू से भरा है।

पंत की रचनाएं

उनकी पहली काव्य संग्रह वीणा नाम के काव्य संग्रह में प्रकाशित हुई। इसके बाद उनकी कविताएं पल्लव में प्रकाशित हुईं।सुमित्रानंदन पंत की कुछ अन्य काव्य कृतियां हैं: ग्रंथि, गुंजन, ग्राम, युगांत, स्वर्ण किरण, स्वर्ण धूली, कला और बूढ़ा चांद, लोकायतन, सत्यकाम आदि। कला और बूढ़ा चाँद सुमित्रानंदन पंत का कविता संग्रह है।

पंत की कविताओं में प्रकृति और कला के सौंदर्य को प्रमुखता मिली है। इस कृति के लिए पंत को 1960 में साहित्य अकादमी पुरस्कार द्वारा सम्मानित किया गया था। अपनी कविता “यह धरती कितना देती है!” में पंत जी बतातें हैं कि बचपन में उन्होंने कुछ पैसे बोये थे क्योंकि उनको आशा थी कि वे पैसों की फसल प्राप्त करके एक आमिर सेठ बन जायेंगे। लेकिन उनकी यह इच्छा पूर्ण नहीं हुई और धरती में से पैसे नहीं उगे। कई मौसम बीत गए, कई पेड़ उगे, उनमें फल लगे और पतझड़ में वे झड़ गए लेकिन पैसों का कोई पेड़ नहीं उगा। इस बार कवि ने अपने आँगन के एक कोने में गीली मिट्टी में कुछ सेम के बीज दबा दिए। और फिर एक दिन उन्होंने देखा कि वहां नन्हे-नन्हे पौधे खड़े हैं। उन्होंने सोचा कि यह धरती हम लोगों को कितना देती है

यह धरती कितना देती है!

यह धरती कितना देती है! धरती माता

कितना देती है अपने प्यारे पुत्रों को!

नहीं समझ पाया था मैं उसके महत्व को,

बचपन में छिः स्वार्थ लोभ वश पैसे बोकर!

रत्न प्रसविनी है वसुधा, अब समझ सका हूँ।

इस में सच्ची समता के दाने बोने हैं;

इसमें जन की क्षमता का दाने बोने हैं,

इस में मानव-ममता के दाने बोने हैं,

जिससे उगल सके फिर धूल सुनहली फसलें

मानवता की, जीवन श्रम से हँसे दिशाएँ-

हम जैसा बोयेंगे वैसा ही पायेंगे।

सुमित्रानंदन पंत

दिल का दौरा पड़ने से हुआ निधन

पंत 1968 में प्रतिष्ठित ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित होने वाले पहले हिंदी कवि थे, जो साहित्य का सबसे बड़ा पुरस्कार है। कवि को भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया था। 1977 में दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गई। पंत जी के जीवनकाल में कुल 28 किताबें प्रकाशित हुईं जिनमें कविता के साथ-साथ पद और नाटक भी शामिल थे।

सुमित्रानंदन पंत के नाम पर संग्रहालय

सुमित्रानंदन पंत के नाम पर कौसानी में, जहां बचपन से सुमित्रानंदन पंत रहा करते थे, उसे वीथिका के नाम से एक संग्रहालय के रूप में परिवर्तित कर दिया गया है। यहां उनके कपड़ों, कविताओं की मूल पांडुलिपियों, छाया चित्रों, पत्रों और पुरस्कारों को प्रदर्शित किया गया है।  यहां स्थित एक पुस्तकालय में उनसे संबंधित किताबों को भी रखा गया है।

पंत भारतीयों के दिल में जिंदा रहेंगे

साहित्य में उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। उनके सरल व्यक्तित्व, मधुर वाणी, स्नेहशील और मित्रवत स्वभाव के कई लोग कायल थे।  लेकिन प्रकृति के बनाए गए नियमों के अनुसार ही सूर्य की भाँति इस कवि का जीवन भी एक दिन अस्त हो गया। किंतु इनकी लिखी गईं समस्त कविताएँ सूर्य की किरणों की तरह समाज में प्रकृति के प्रति आदर और समर्पण के भाव की रौशनी हमेशा बिखेरती रहेंगी।

रिपोर्ट- वंशिका सक्सेना

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