पंजाब केसरी लाला लाजपत राय की जयंती आज, ‘अंग्रेजों वापस जाओ’ का दिया था नारा

लाला लाजपत राय का जन्म 28 जनवरी 1865 को पंजाब के मोगा जिले में हुआ था। इनके पिता का नाम लाला राधाकृष्ण अग्रवाल था। जो पेशे से अध्यापक और उर्दू के प्रसिद्ध लेखक थे। लाला लाजपत राय को लेखन और भाषण में काफी रुची थी। हिसार और लाहौर से इन्होंने अपनी वकालत की पढ़ाई की। 1897 में आए अकाल के समय ब्रिटिश सरकार ने कोई कदम नही उठाए जिसके बाद लाला लाजपत राय पीड़ितों की सेवा में लग गए। इन्होनें स्थानीय लोगों के साथ मिलकर अनेक स्थानों पर अकाल शिविर लगाकर सेवा की।
आंदोलन को आगे बढ़ाने में लाला लाजपत राय की अहम भूमिका
सन् 1904 में लाला लाजपत राय ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर एक राष्ट्रवादी दैनिक पत्र ‘द पंजाबी’ को शुरु किया। 1905 में जब बंगाल का विभाजन हुआ तो लाला लाजपत राय ने सुरेंद्रनाथ बनर्जी और विपिनचंद्र पाल जैसे आंदोलनकारियों से हाथ मिला लिया और जमकर अंग्रेजों के इस फैसले की जमकर बगावत की। उन्होंने आंदोलन को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई थी। लाला लालजपत राय को सन् 1914 से लेकर 1920 तक भारत आने की इजाजत नहीं दी गई। प्रथम विश्वयुद्ध के समय ये भारत के सैनिकों की भर्ती के खिलाफ थे।

जब अंग्रेजों ने लाला लाजपत राय को भारत नहीं आने दिया तो वह अमेरिका चले गए। न्यूयार्क में इन्होंने इंडियन इनफार्मेशन ब्यूरो की स्थापना की। साथ ही ‘यंग इंडिया’ पत्रिका का संपादन और प्रकाशन किया। इसके अतिरिक्त दूसरी संस्था इंडिया होमरूल भी स्थापित की।
1920 में लाला लाजपत राय जब वापस भारत आए तो कलकत्ता में कांग्रेस के एक विशेष सत्र में वह गांधी जी के संपर्क में आए और अहसहयोग आंदोलन का हिस्सा बन गए।
30 अक्टूबर, 1928 को इंग्लैंड के प्रसिद्ध वकील सर जॉन साइमन की अध्यक्षता में एक सात सदस्यीय आयोग लाहौर आया। जिसके सभी सदस्य अंग्रेज थे। जिसका सभी भारतीय विरोध कर रहे थे। साइमन कमीशन का विरोध करते हुए उन्होंने ‘अंग्रेजों वापस जाओ’ का नारा दिया तथा कमीशन का डटकर विरोध जताया। जिसके बाद अंग्रेजों ने लाठी चार्ज किया।
पुलिस की लाठियों और चोट की वजह से 17 नवम्बर, 1928 को उनका देहान्त हो गया।