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Kairana Nahid Hasan: स्कूल से ऑस्ट्रेलिया…फिर पिता की अंतिम विदाई…विधायक से लेकर जेल तक…जानिए नाहिद हसन की पूरी कहानी  

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यूपी में विधानसभा का नगाडा बज चुका है. चुनाव में सीएम के चेहरों को लेकर जितनी चर्चा है. उससे भी ज्यादा चर्चा इस समय कैराना विधानसभा सीट से सपा प्रत्याशी नाहिद हसन को लेकर हो रही है.  नाहिद हसन पश्चिमी यूपी के कैराना से महज एक सपा विधायक हैं और आगामी चुनाव के लिए समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी हैं. लेकिन उनके नाम के साथ विवाद भी काफी हैं. इसके अलावा उनके पास एक बड़ी राजनीतिक विरासत भी है.  

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हसन परिवार का राजनीतिक इतिहास

आपको बता दे कि, सपा नेता नाहिद हसन और उनके परिवार का लंबा राजनीतिक इतिहास है. नाहिद के दादा से लेकर माता-पिता, चाचा-चाची और चचेके भाई बहन तक, सब स्थानीय चुनाव से लेकर सांसद और विधायक तक निर्वाचित होते रहे हैं. पूरा कुनबा सियासी कुनबा है. यूपी से हरियाणा तक की राजनीतति में हसन परिवार का दबदबा रहा है.

नाहिद हसन के चाचा कंवर हसन

मौजूदा यूपी चुनाव के लिए सपा के उम्मीदवारों की पहली सूची में जब नाहिद हसन का नाम आया तो सियासी बवाल बच गया. बीजेपी की ओर से कैराना का पलायन और मुजफ्फरनगर दंगों का जिक्र छिड़ गया. इसी बीच नाहिद हसन गैंगस्टर केस में जेल भी चले गए. उनका एक वीडियो भी हर तरफ दिखाई दिया, जिसने विरोधियों को उनके खिलाफ एक और बड़ा हथियार दे दिया.

नाहिद के स्कूल से ऑस्ट्रेलिया तक

बहरहाल हम आपको मौजूदा हालात से बाद में रूबरू कराएंगे, अभी आपको हम थोड़ा पीछे लिए चलते है. बताते है कि कैसे ऑस्ट्रेलिया में BBA की पढ़ाई करने वाला एक छात्र विधायक बनकर गैंगस्टर एक्ट में जेल में चला गया. क्षेत्र में रूतबा भी इतना है कि सपा जेल से नाहिद को चुनाव लड़वा रही है.

चलिए, आपको पूरी कहानी बताते हैं नाहिद हसन के पिता चौधरी मुनव्वर हसन की शादी सहारनपुर की बेगम तबस्सुम से 1986 में हुई थी. नाहिद अपने घर में बड़े हैं. उनकी एक छोटी बहन चौधरी इकरा हसन हैं, जो 2021 में ही इंटरनेशनल लॉ में लंदन से पढ़ाई करके लौटीं हैं.

नाहिद हसन की मां तबस्सुम बंगम

34 साल के नाहिद हसन ने जिस मुस्लिम गुर्जर परिवार में जन्म लिया, वहां राजनीति उनसे पहले ही दस्तक दे चुकी थी. नाहिद हसन के दादा चौधरी अख्तर हसन कैराना लोकसभा सीट से 1984 में कांग्रेस के टिकट पर सांसद बने थे. वो नगर पालिका के चेयरमैन भी रहे थे. चौधरी अख्तर की विरासत को नाहिद के पिता चौधरी मुनव्वर हसन ने आगे बढ़ाया. वह चारों सदनों के सदस्य रहे.

मरहूम सांसद चौधरी मुनव्वर हसन ने 1991 और 1993 के विधानसभा चुनाव में कैराना सीट पर जीत दर्ज की. उन्होंने दोनों चुनाव में जनता दल के टिकट पर लड़ते हुए बाबू हुकुम सिंह को हराया. हुकुम सिंह तब कांग्रेस में हुआ करते थे. इन सबके बीच यूपी में हालात बदल गए और मुलायम सिंह यादव ने जनता दल से अलग होकर समाजवादी पार्टी का गठन कर लिया. लगातार कैराना विधानसभा से दो बार विधायक निर्वाचित होने के बाद अब मुनव्वर हसन सपा में आ गए और 1995 में कैराना लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत गए.

मरहूम चौधरी मुनव्वर हसन

हालांकि, साल 1998 और 1999 के लोकसभा चुनाव में वो लगातार दो बार हारे. इस बीच वो 1998-2003 तक राज्यसभा सांसद रहे और फिर MLC रहे. साल 2004 में जब लोकसभा चुनाव हुआ तो मुनव्वर हसन को सीट बदलनी पड़ी. कैराना सीट से RLD के टिकट पर अनुराधा चौधरी लड़ीं और जीत गईं. जबकि मुनव्वर हसन सपा के टिकट पर मुजफ्फरनगर सीट से विजयी हुए.

वेस्ट यूपी की जाट बेल्ट में चौधरी परिवार की राजनीति वर्षों से बोल रही थी. इसी बीच देश की राजनीति में हलचल हुई, इंडो-यूएस न्यूक्लियर डील के विरोध में लेफ्ट ने मनमोहन सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया और यूपीए पर बहुमत साबित करने की नौबत आई. सपा तब यूपीए के साथ थी. लेकिन चौधरी मुनव्वर हसन ने सपा सांसद होते हुए भी क्रॉस वोटिंग की, जिसके बाद उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया गया. इसके बाद वो बसपा की तरफ चले गए.

2008 में हुई मुनव्वर हसन की मौत

इसी बीच चौधरी हसन परिवार को एक बड़ा झटका लगा. दिसंबर 2008 में हरियाणा के पलवल में एक सड़क हादस में चौधरी मुनव्वर हसन का 44 साल की उम्र में इंतकाल हो गया. इतनी कम उम्र में ही मुनव्वर हसन लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा और विधानपरिषद यानी चारों सदनों के सदस्य रहे.

मुनव्वर हसन की जब मौत हुई, तब नाहिद हसन ऑस्ट्रेलिया में BBA की पढ़ाई कर रहे थे. वो अपने पिता के जनाज़े में शामिल होने आए और बाद में वापस लौटकर पढ़ाई पूरी की. ऑस्ट्रेलिया जाने से पहले नाहिद ने दिल्ली के अलग-अलग स्कूलों से पढ़ाई की थी. इसके बाद ही वह BBA की पढ़ाई के लिए ऑस्ट्रेलिया गए थे.

साल 2011 के बाद राजनीति में सक्रिय हुए नाहिद हसन

विदेश से पढ़ाई पूरी करने के बाद साल 2011 में नाहिद हसन वापस वतन लौटे. उनके लौटने से पहले ही परिवार की सियासी विरासत को मां बेगम तबस्सुम हसन ने संभाल लिया था. साल 2009 के लोकसभा चुनाव में वो बसपा के टिकट पर कैराना से लड़ीं और सांसद बन गई. साल 2018 के उपचुनाव में भी तबस्सुम हसन कैराना सीट से सांसद बनीं.

इतना ही नहीं, नाहिद हसन के चाचा और परिवार के दूसरे लोग भी राजनीति में सक्रिय रहते हैं. नाहिद के चाचा अनवर हसन फिलहाल नगर पालिका के चेयरमैन हैं. इनके दूसरे चाचा-चाची जिला पंचायत सदस्य भी रहे हैं. मां भी जिला पंचायत सदस्य रही हैं. एक चाचा अरशद हसन भी विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं. दूसरे चाचा कंवर हसन भी लोकसभा और विधानसभा का चुनाव लड़ चुके हैं. नाहिद की मौसी के बेटे अकरम खान हरियाणा सरकार में मंत्री रहे हैं और मुख्यमंत्री के OSD भी रहे हैं. यानी नाहिद हसन जब युवा हो रहे थे तो अपने आसपास पूरा सियासी माहौल देख रहे थे.

2012 में ठोकी पहली बार चुनावी ताल

अब जब चौधरी नाहिद हसन की उम्र हो गई तो वो चुनावी मैदान में उतर गए. साल 2012 में सहारनपुर की गंगोह सीट से बसपा ने उन्हें प्रत्याशी बना दिया, लेकिन चुनाव से ऐन पहले बसपा ने नाहिद का टिकट काट दिया और शगुफ्ता खान को दे दिया. नाहिद हसन ने निर्दलीय चुनाव लड़ा. वो चुनाव हार गए. कांग्रेस के प्रदीप कुमार यहां से जीते. नाहिद हसन को 33,288 वोट मिले और वो चौथे नंबर पर रहे. इस तरह नाहिद हसन अपना पहला ही चुनाव ही बुरी तरह हार गए.

इसके बाद यूपी में 2012 में अखिलेश यादव के नेतृत्व में सपा की सरकार बनीं और मायावती सत्ता से बेदखल हो गईं. सत्ता बदलते ही नाहिद ने भी पाला बदल लिया. वो सपा पार्टी में चले गए. साल 2014 का लोकसभा चुनाव कैराना सीट से सपा के टिकट पर लड़ा. ये वो वक्त था जब 2013 का मुजफ्फरनगर दंगा हो चुका था और नाहिद हसन भी राजनीति में पूरी तरह सक्रिय हो गए थे. हालांकि, नाहिद हसन के कैराना विधानसभा क्षेत्र या बिल्कुल नजदीक के गांव में हिंसा नहीं हुई लेकिन मुजफ्फरनगर के पड़ोसी होने का असर यहां भी दिखाई दिया. एक तरफ दंगे का असर, ध्रुवीकरण और मोदी लहर, कैराना सीट से बीजेपी के टिकट पर दिग्गज नेता हुकुम सिंह चुनाव जीत गए. यानी ये दूसरा चुनाव भी नाहिद हसन हार गए.

नाहिद हसन और उनकी बहन इकरा हसन

बाबू हुकुम सिंह कैराना विधानसभा से विधायक भी थे, इसलिए जब वो मई में सांसद बन गए तो कैराना विधानसभा सीट खाली हो गई. और इसी साल के आखिर में कैराना विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुआ. इस उपचुनाव में नाहिद हसन फिर सपा के टिकट पर लड़े और इस बार जीत दर्ज कर ली. नाहिद ने बीजेपी प्रत्याशी अनिल चौहान को हरा दिया. हालांकि बीजेपी प्रत्याशी से क्षेत्र की जनता खुश नहीं थी और कई कारणों से अनिल चौहान को हार झेलनी पड़ी.

मुजफ्फरनगर दंगों के बाद विवादों से जुड़ा नाता

इस पहली जीत और मुजफ्फरनगर दंगों की आंच के साथ ही नाहिद हसन और विवादों का नाता भी शुरू हो गया. नाहिद हसन इलाके की राजनीति और सामाजिक गतिविधियों में खुलकर सामने आने लगे. साल 2017 का विधानसभा चुनाव भी सपा के टिकट पर कैराना सीट से जीता. हालांकि, प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में बीजेपी की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी. जिसके बाद हसन पर दबाव बढ़ गया.

सपा विधायक नाहिद हसन ने नामांकन के वक्त चुनाव आयोग के समक्ष जो हलफनामा दायर किया है, उसमें उनके ऊपर लंबित मामले 16+ एक NCR दर्शाए गए हैं. एक मामले को शून्य बताया गया है, जिसमें न्यायालय ने कोई संज्ञान नहीं लिया है. ये भी बताया गया है कि अब तक किसी भी मामले में नाहिद हसन पर दोष सिद्ध नहीं हुआ है.

नाहिद हसन के एडवोकेट राव मैराजुद्दीन ने नाहिद पर लगे केसों को लेकर कहा कि 2017 में योगी सरकार आने से पहले नाहिद हसन पर जितने भी केस थे, उनमें ज्यादातर आचार संहिता उल्लंघन और जन आंदोलन से जुड़े हुए थे. जबकि एक केस सरकारी कर्मचारियों से बदसलूकी का था. एडवोकेट राव का कहना है कि साल 2017 से पहले नाहिद हसन पर 7 मुकदमे थे और ये सभी वो थे जो आमतौर पर नेताओं पर सार्वजनिक जीवन में हो जाते हैं.

नाहिद समेत उनकी मां पर लगी गैंगस्टर एक्ट

लेकिन आपराधिक गतिविधियों में कई बार नाहिद हसन संलिप्त रहे, इसके बाद फरवरी 2021 में नाहिद हसन और उनकी मां तबस्सुम हसन समेत 40 लोगों के खिलाफ गैंगस्टर एक्ट लगाई गई. जब नाहिद हसन और उनकी मां ने सरेंडर नहीं किया तो नॉन बेलेबल वॉरंट जारी हो गया. कैराना सीट से टिकट घोषित होते ही नाहिद हसन को गिरफ्तार कर लिया गया. फिलहाल, वो गैंगस्टर एक्ट में जेल में बंद हैं.

नाहिद हसन के टिकट को लेकर बवाल

जेल में जाने के बाद सपा ने चौधरी नाहिद हसन के टिकट को नहीं काटा और सपा नाहिद हसन को जेल से ही चुनाव लड़वा रही है. जिसको लेकर बीजेपी लगातार नाहिद हसन पर निशाना साध रही है. बीजेपी का कहना है कि ऐसी प्रदेश में दंगे ही करवा सकती है जिसके कई प्रत्याशी जेल से ही चुनाव लड़ रहे हैं. इतना ही नहीं प्रदेश के मुखिया भी कई बार नाहिद हसन को लेकर निशाना साध चुके हैं. यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने एक ट्वीट में कहा है, ”कैराना से तमंचावादी पार्टी का प्रत्याशी नाहिद हसन धमकी दे रहा है, यानी गर्मी अभी शांत नहीं हुई है! मार्च के बाद गर्मी शांत हो जाएगी.”

स्वर्गीय बाबू हुकुम सिंह और नाहिद हसन का परिवार एक

इसके आगे आपको बताते है कि कैराना का बाबू हुकुम सिंह और हसन के परिवार के बारे में एक दिलचस्प बात. अक्सर दोनों परिवारों के पूर्वज एक ही है. कहा जाता है कि हुकुम सिंह और चौधरी मुनव्वर हसन का परिवार कलस्यान गोत्र से है. करीब 200 साल या उससे कुछ ज्यादा वक्त पहले मुनव्वर हसन के पूर्वजों ने इस्लाम कबूल कर लिया था. लेकिन आज भी कैराना में दोनों परिवारों के बीच एक अदब और रिश्ता नजर आता है.

नाहिद हसन की मां तबस्सुम बेगम और स्वर्गीय बाबू हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह

संबोधन में भी झलकते हैं रिश्ते

मरहूम चौधरी मुनव्वर हसन हुकुम सिंह को चाचा कहते थे और नाहिद हसन मृगांका सिंह को बुआ कहते हैं. इस इलाके की एक और दिलचस्प बात ये है कि एक तरफ मुस्लिम गुर्जरों का समर्थन हुकुम सिंह और उनके परिवार को मिलता रहा है तो दूसरी तरफ नाहिद हसन के परिवार को भी हिंदू गुर्जर सिर-आंखों पर बिठाते रहे हैं. जिससे जाट बेल्ट की इस सीट पर हमेशा से ही हसन और हुकुम सिंह परिवार का वर्चस्व रहा है. मौजूदा चुनाव में भी बीजेपी ने स्वर्गीय नेता बाबू हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह को प्रत्याशी बनाया है. यानी मौजूदा चुनाव भी पुराने इतिहास को फिर से दोहरा रहा है.

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