Girmitiya: जानिए गिरमिटिया मजदूरों के बारे में, यूपी-बिहार से पलायन कर आज इन देशों में जी रहे हैं ज़िंदगी

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नई दिल्ली: दास व्यापार( Slave Business) और उसके उन्मूलन के स्मरण के लिए 23 अगस्त को अंतर्राष्ट्रीय दिवस के तौर पर मनाया जाता है इस दिन को यूनेस्को ने मनाने की घोषणा की थी। 1820 के दशक तक यूरोप में बंधुआ मजदूरी और दास प्रथा को खत्म कर दिया था।

यूरोप का समाज तब तक इसे अमानवीय मानने लगा था। लेकिन उसी समय अंग्रेजी उपनिवेशकों को अंग्रेजी हकूमत के विस्तार के लिए श्रमिकों की जरुरत थी और इसके लिए अंग्रेजों ने अनुबंध श्रम की एक नई अवधारणा की परिभाषा को गढ़ा।

अनुबंध श्रम के तहत किसी भी श्रमिक को निश्चित समय तक किसी दूसरे देश में काम करना होता था। अनुबंध श्रम के तहत काम करने वाले मजदूर को गिरमिटिया मजदूर (Girmitiya) कहा गया। भारत में अधिकत्तर पूर्वी उत्तरप्रदेश और पश्चिमी बिहार से सबसे अधिक लोगों को गिरमिटिया मजदूर बनाया गया।

कम मानदेय पर काम

भारत में एक समय ऐसा आया था जब देश में बेरोजगारी, भुखमरी और गरीबी से लोग त्राहिमाम कर रही थी। देश के लोगों के इस हालत का फायदा अंग्रेजों ने उठाया और गरीब लोगों के लाचारी का फायदा उठा कर उन्हें अपने दूसरे उपनिवेश देशों में श्रम करने के लिए भेज दिया गया। जानकार बताते है कि गिरमिटिया मजदूरों को अंग्रेजी अफसरों ने वादे के मुताबिक कम मानदेय पर काम कराया।

गिरमिटिया मजदूरों की पहली खेप प्रशांत महासागर के द्वीप देश फीजी भेजी गयी। उसके बाद मॉरीशस, सूरीनाम, मलेशिया और श्रीलंका जैसे देशों में भारतीय प्रवासियों की विशाल विरासत ने विकास का काम किया। ये सिलसिला कई सालों तक जारी रहा। कुछ मजदुर तो अपना अनुबंध खत्म कर वापस भारत लौट आए मगर गरीबी के कारण बाकी मजदूर के लिए फिर से पलायन करना आसान नही था इसलिए वे अपने देश लौटने की चाहत को मन में दबाये वही रह गए।

इन देशों में गिरमिटिया मजदूरों (Girmitiya) ने धीरे-धीरे अपने नए सामाजिक ताने-बाने को विकसित किया। कड़ी मेहनत और अथक प्रयत्न के बाद आज गिरमिटिया समुदाय के लोग शीर्ष स्थानों पर पहुंच गए है। वे लोग शिक्षा, कला, मनोरंजन और राजनीति के हर क्षेत्र में आज उन्नति हासिल कर रहे हैं । कई देशों के राष्ट्रप्रमुख गिरमिटिया समुदाय के लोगों में से ही बने हैं। गिरमिटिया (Girmitiya) समुदाय के लोग अपने साथ भोजपुरी भाषा, खान-पान, धार्मिक पुस्तकें और रीति रिवाज लेकर गए।

महात्मा गांधी ने इस प्रथा का किया था विरोध

गोपाल कृष्ण गोखले ने 1912 में गिरमिटिया मजदूरों के साथ हो रहे अमानवीयता के खिलाफ इंपीरीयल लेजिस्लेटिव काउंसिल में प्रस्ताव प्रस्तुत किया । काउंसिल के 22 सदस्यों ने यह ठान लिया इस प्रथा के खिलाफ तब तक प्रस्ताव लाते रहेंगे जब तक इस कु-प्रथा का अंत नहीं होता । महात्मा गांधी ने 1916 के कांग्रेस अधिवेशन में ‘भारत सुरक्षा और गिरमिट प्रथा अधिनियम’ प्रस्ताव रखा था । ब्रिटिश सरकार ने गिरमिटिया प्रथा को मार्च 1917 तक खत्म कर दिया। हालांकि इसका चलन 1922 तक चलता रहा।

मॉरीशस में भारतीयों की कुल आबादी 68 फीसदी, फीजी में 50 फीसदी लोग भारतीय

मॉरीशस की आबादी के लगभग 68 फीसदी लोग भारतीय हैं। वही फीजी के 50 फीसदी लोग भारतीय है। फीजी की राष्ट्रीय भाषा फीजियन हिंदी है। साल 2015 में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मॉरीशस की यात्रा की थी। उन्होंने मॉरीशस को 500 मिलियन डॉलर की मदद का ऐलान किया था। साल 2017 में मॉरीशस के प्रधानमंत्री प्रविंद कुमार जगन्नाथ ने अपने भारत की यात्रा के दौरान चार समझौता किया था। उन्होंने मॉरीशस में सिविल सर्विसेज कॉलेज बनाने का करार, मैरीन साइंस और टेक्लॉलजी फील्ड में करार, सोलर अलायंस से जुड़ा समझौता, 500 मिलियन डॉलर का लाइन ऑफ क्रेडिट का समझौता किया।

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